
सुप्रीम कोर्ट ने साझा विधि प्रवेश परीक्षा (क्लैट) आयोजित करने के लिए एक स्थायी इकाई स्थापित करने की मांग करने वाली याचिका पर जवाब देने में बार काउंसिल आॅफ इंडिया (बीसीआइ) के विफल रहने के कारण उस पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर व न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने एक जनहित याचिका पर आदेश पारित किया और कहा कि बीसीआइ ने अंतिम अवसर दिए जाने के बावजूद कोई उत्तर नहीं दिया।
याचिका में पिछले वर्षों में परीक्षा आयोजन में विभिन्न खामियों को रेखांकित किया गया है। नए विधि स्नातकों के लिए क्लैट का आयोजन किया जाता है और परीक्षा में पास होना कानूनी प्रैक्टिस के लाइसेंस के लिए एक पूर्व शर्त है। अदालत ने कहा कि भारत सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त महान्यायवादी ने अपील की और जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया जाता है। प्रतिवादी नंबर-2 (बार काउंसिल आॅफ इंडिया) के विद्वान वकील ने उद्देश्य के लिए अंतिम अवसर दिए जाने के बावजूद कोई जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया है।
जजों ने कहा कि प्रतिवादी नंबर-2 की तरफ से पेश हुए वकील ने अपील की और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आॅन रिकॉर्ड वेल्फेयर ट्रस्ट में खर्च के रूप में 25 हजार रुपए जमा करने के विषय में जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए चार हफ्ते का समय और दिया जाता है। शीर्ष अदालत ने आठ जुलाई को केंद्र और बीसीआइ सहित प्रतिवादियों को जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया था। याचिका शमनाद बशीर ने दायर की है। इसमें क्लैट की कार्यप्रणाली की समीक्षा करने और संस्थागत सुधार सुझाने के लिए कानूनी क्षेत्र से महत्त्वपूर्ण साझेदारों की एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की मांग की गई है।