आप मैं कलह ,एक पूर्ण सत्य – धर्मेन्द्र राय
एक सवाल हर मन में और मीडिया में उठ रहा है की आंदोलन से जन्मी पार्टियां यूँही क्यों टूट जाती है। असल बात अभी तक यह सामने आई है कि आंदोलन के वक्त ऐसे लोगो को ढून्ढ ढून्ढ कर जोड़ा जाता है जिनकी बात का असर जनता पर पड़ता हो जो खुद पहले से किसी ना किसी छेत्र में एक ब्रांड हो। आंदोलन के वक़्त तो जनता को जोड़ने के लिए काम आएं इनके चेहरों का स्तेमाल खूब किया जाता है। और बाद में उन्हें किनारे लगा दिया जाता है। जैसे अरविन्द मनीष संजय , इनकी ना कोई पहचान थी ना ही कोई उपलब्धि, तब उन्होंने, सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना, किरण, योगेन्द्र, शांति, प्रशांत, मयंक, आनंद, साजिया,मेधा ताई, रामदास,पंकज पुष्कर, धर्मवीर गांधी , सेहरावत और ना जाने कितने चहरों की पहचान चरणबद्ध तरीके से चुरा कर अपनी पहचान बनाई, और जब इन का असल मकसद पूरा हो गया तब उन्हें लात मारदी। दुखद है
धर्मेन्द्र राय