
दिल्ली का चुनावी रण जीतने के लिए भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। दिल्ली चुनाव से जुड़े रहे भाजपा के एक सांसद के मुताबिक अगर चुनाव प्रचार, सारी रैलियों, नुक्कड सभाओं, विज्ञापनों, नेताओं और बाहरी कार्यकर्ताओं के आवागमन, होटलों में ठहराने, खाना पीना और वाहनों का कुल खर्च जोड़ा जाए तो कम से कम इस चुनाव में घोषित अघोषित करीब चार सौ करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जाने का अनुमान है।
इसके बावजूद जो नतीजा आया, उससे ऊपर से नीचे तक सब सन्न हैं। एक स्थानीय भाजपा नेता के मुताबिक अगर कुल खर्च को दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में बांट दें तो यह प्रति सीट करीब पांच करोड़ रुपए बैठता है। हालाकि पार्टी प्रवक्ता इस अनुमान को यह कहते हुए गलत बताते हैं कि पार्टी चुनाव खर्च का पूरा हिसाब चुनाव आयोग को देगी। भाजपा सूत्रों के मुताबिक करीब तीन सौ सांसद, 35 केंद्रीय मंत्री, सभी केंद्रीय व राज्य पदाधिकारी, अन्य राज्यों के सैकड़ों भाजपा विधायकों समेत हर विधानसभा क्षेत्र में करीब एक हजार लोगों को तैनात किया गया। इनमें भाजपा कार्यकर्ता और संघ के पूर्णकालिक प्रचारक शामिल हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चार रैलियों और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की सभाओं समेत सांसदों और विधायकों की करीब 2400 से ज्यादा छोटी बड़ी सभाओं, बैठकों, जनसंपर्क यात्राओं का भी दिल्ली के मतदाताओं पर कोई असर नहीं पड़ा। सिर्फ भाजपा पिछले विधानसभा चुनावों का अपना मत प्रतिशत काफी हद तक बचा पाने में ही कामयाब रही।भाजपा में लंबे समय तक प्रभावशाली रहे पार्टी के एक पूर्व महासचिव का कहना है कि दिल्ली के नतीजों से भले ही भाजपा नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भौंचक हों, लेकिन आम कार्यकर्ता से लेकर नेता और मंत्री भी इसे लेकर परेशान नहीं नजर आए। क्योंकि जिस तरह से पूरा चुनाव लड़ा गया वह भाजपा की रीति नीति के अनुरूप नहीं था।
दिल्ली केही एक भाजपा सांसद के मुताबिक इस चुनाव में फैसले लेने का इस हद तक केंद्रीयकरण हुआ। स्थानीय नेतृत्व को नजरंदाज करके किरण बेदी को थोप दिया गया और स्थानीय कार्यकर्ताओं को यह कहते हुए घर बिठा दिया गया कि उनकी जरूरत नहीं है जिससे पार्टी का पूरा स्थानीय तंत्र ही निष्क्रिय हो गया और पूरा चुनाव बाहर से आए उन लोगों पर जिन्हें दिल्ली के गली मुहल्ले भी नहीं पता थे, उनके भरोसे लड़ा गया।
टिकट वितरण में भाजपा की सामाजिक नीति भी गड़बड़ा गई। पार्टी ने अनुसूचित जाति केलिए सुरक्षित 12 सीटों पर आठ टिकट जाटव को और चार टिकट वाल्मीकि समुदाय के लोगों को दिए गए। जबकि दिल्ली में दलितों में पासी,रजक, खटिक समुदाय के लोगों की भी खासी संख्या है और वह लोकसभा चुनाव में उनका ज्यादातर वोट भाजपा को ही गया था। इस टिकट वितरण से इन समुदायों की भी नाराजगी भाजपा से हो गई क्योंकि जाटव और वाल्मीकि समुदाय का वोट कांग्रेस और बसपा के बीच में बंटा था।