कुछ मित्रों ने कहा आज २ अक्टूबर पर गांधी पर कुछ क्यों नहीं लिखा…
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क्या लिखूं ??
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मेरे पिता एक कॉंग्रेसी थे और कट्टर गांधीवादी…लेकिन थे बड़े ही प्रैक्टिकल आदमी….मुझे याद है बचपन की हमारे घर की बैठक (जिसे अब ड्राइंग रूम कहते हैं) में दस बारह गत्ते के बोर्ड थे जिसमे गांधीजी की हस्तलिपि (प्रिंटेड) में उनकी शिक्षाएं छपी थी..गुजराती वाली हिन्दी थी…बहुत ही खराब हैण्डराइटिंग और शब्दों के ऊपर कोई लाइन नहीं….पिताजी पर गांधीवाद का गहरा असर था….((वर्धा आश्रम में फिरोज गांधी के साथ वो दो तीन लड़के रूम शेयर करते थे))…..अब पूरे बोर्ड तो याद नहीं लेकिन अस्पृश्यता और सहिष्णुता वाले दो बोर्ड मुझे आज भी याद हैं…….पिताजी उन शिक्षाओं का मतलब हमें सिखाते थे….बचपन से मिली शिक्षाओं के फलस्वरूप बड़े होने तक गांधी हमारे लिए एक पूज्य व्यक्ति हुआ करते थे……
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बड़े होने पर बहुत सी बातें पता चली..कहीं से पढ़कर या किसी ने बताया…..अब अपन भी अपने पिता से गांधी के बारे में ऊलजलूल सवाल पूछने लगे….एक दिन उन्होंने समझाया ——–
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“””गांधी एक मनुष्य थे और एक मनुष्य में जो कमियाँ हो सकती हैं वो सब उनमे थी….वो भारत भी इसीलिए आये क्योंकि दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन से धक्का मार बाहर निकाल दिया गया…. अगर वो घटना उनके साथ ना होती तो शायद वो भी बैरिस्टर वाले जीवन के सुख ले रहे होते…..बहाना ही सही लेकिन वो आन्दोलन में आये…कोई माने ना माने लेकिन उनका योगदान तो कोई नकार तो नहीं सकता…इसी तरह उन्होंने १९४७ के बाद कबाइलियों के हमले में जनसंघ के योगदान के बारे में भी बताया जो कि कहीं किसी किताब में पढने को नहीं मिलता……””
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अब कोई व्यक्ति मूलतः कैसा है ये उसके जन्म और प्रकृति पर निर्भर है…..हाँ आप किसी व्यक्ति विशेष से नफरत कर सकते हैं लेकिन उसके अच्छे विचारों से नहीं….भले ही वो खुद उनका पालन ना करता हो ना हो……
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इंदिरा जी तक मेरे पिता कॉंग्रेसी ही रहे उसके बाद उनका कौंग्रेस से मोहभंग हुआ….फिर मरते दम तक भाजपाई रहे…..लेकिन गांधी की शिक्षाओं के साथ उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया……और मुझे उन शिक्षाओं में कभी कोई खराबी भी नहीं लगी…शिक्षा शिक्षा है चाहे वो किसी के भी द्वारा दी जाए………
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मोदी भी गांधी की नहीं बल्कि गांधीवाद की बात करते हैं…भ्रम में ना रहें….
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लो भाई डाल दी पोस्ट……….तुमको मुझे गाली खिलवाये बिना चैन वैसे भी नहीं पड़ना था……..
राजेश भट्ट
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