कांग्रेस में टीम राहुल और पुराने नेताओं के बीच चल रही खींचतान के बीच पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व ने युवा नेताओं को सधा हुआ जवाब दिया है। पार्टी सचिवों ने कांग्रेस के महासचिवों को पत्र लिखकर मीडिया में सार्वजनिक तौर पर उस तरह की टिप्पणी देने से परहेज करने के लिए कहा था, जो राहुल गांधी की लीडरशिप पर सवाल खड़े कर सकता है। 14 सचिवों के लिखे गए पत्र का जवाब देते हुए कांग्रेस के महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने उन्हें सार्वजनिक तौर पर पार्टी नेतृत्व को सलाह देने से बचने के लिए कहा है। द्विवेदी खुद ही राहुल ब्रिगेड के निशाने पर हैं। उनके इस आदेश को एक तरह से पार्टी के युवा नेताओं पर लगाम लगाने की कोशिश माना जा रहा है।
पाटी के भीतर चल रही खींचतान के बीच टीम राहुल को साफ कर दिया है कि कांग्रेस में दो तरह के नियम नहीं हो सकते। कांग्रेस के भीतर पैदा हुई इस स्थिति को संभालने में द्विवेदी ने काफी सूझ-बूझ से काम लिया और इस दौरान उन्होंने संगठन के अपने लंबे अनुभव का इस्तेमाल किया। मंगलवार को पार्टी के सचिवों के एक समूह ने जनार्दन द्विवेदी को पत्र सौंपा था ताकि वह उसे अन्य महासचिवों को भेजें।
शुक्रवार को इस मामले में थोड़ा आगे बढ़ते हुए उन्होंने इस पत्र की कॉपी पार्टी महासचिवों के साथ वर्किंग कमिटी के सदस्यों, पार्टी स्टेट प्रेजिडेंट और कांग्रेस के सभी संगठनों के प्रमुखों को भेजी। 14 सचिवों को दिए गए जवाब से द्विवेदी ने यह साफ करने की कोशिश की है कि वह भी उसी परिपाटी के समर्थक हैं, जिसके खिलाफ उन्हें पत्र लिखा गया है। उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेताओं को इन 14 सचिवों के खिलाफ नोटिस जारी किए जाने की जानकारी दी है। इस पत्र के साथ द्विवेदी ने पार्टी के महासचिवों को एक पत्र और लिखा है जिसमें कहा गया है, ‘मुझे इस बात का भरोसा है कि मेरे सभी साथी इस मसले को संवदेनशीलता के साथ उठाएंगे। मैं उन्हें (14 सचिवों को) एक अलग पत्र लिखकर मीडिया के जरिए सार्वजनिक तौर पर सलाह देने से बचने की सलाह दे रहा हूं।’
द्विवेदी ने जो कुछ भी लिखा है, वह 14 सचिवों को आगे से कुछ नहीं बोलने का आदेश दिए जाने जैसा है। हालांकि उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से उम्मीद जताई है कि वह अपने जूनियर नेताओं के विचारों को पूरी संवेदनशीलता के साथ समझने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा, ‘हां, मैं इससे सहमत हूं और मेरा मानना है कि किसी को भी गलत बातें नहीं कहनी चाहिए।’ द्विवेदी के पत्र का तात्कालिक असर यह हुआ कि इन 14 सचिवों में से कोई भी अब सार्वजनिक तौर पर टिप्पणी करने को तैयार नहीं है और पार्टी के भीतर दूसरे नेता भी फिलहाल इन्हें अपना समर्थन देते नजर नहीं आ रहे हैं।