मौसम विभाग के तमाम अनुमानों पर पानी फेरते हुए कमजोर मानसून का खतरा अब सूखे जैसे हालत में बदलता जा रहा है। देश के ज्यादातर इलाके बारिश के लिए तरस रहे हैं।
जुलाई के 11 दिन गुजरने के बाद भी मध्य और उत्तर-पश्चिमी भारत को सामान्य से आधी बारिश भी नसीब नहीं हुई है। पश्चिमी यूपी में सामान्य से 73 फीसदी कम बारिश हुई है, जबकि पंजाब में सामान्य के मुकाबले 57 फीसदी कम बारिश है।
मानसून की बेरुखी के चलते देश पांच साल के सबसे भयंकर सूखे के मुहाने पर खड़ा है। कृषि आयुक्त जे.एस. संधू का कहना है कि मौसम विभाग ने जुलाई के पहले और दूसरे हफ्ते में मानसून सक्रिय होने की उम्मीद जताई थी। लेकिन अभी तक पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में काफी कम बारिश हुई है।इसके मद्देनजर राज्यों को पूरी तरह अलर्ट कर दिया गया है। खरीफ की बुवाई को सूखे की मार से बचाने की पूरी कोशिश की जा रही है। सन 1918 और 2009 में पिछले सौ साल का सबसे भयंकर सूखा पड़ा था।
इन वर्षों में सामान्य से क्रमश: 24.9 और 21.8 फीसदी कम बारिश हुई। जबकि इस साल 11 जुलाई तक सामान्य से 43 फीसदी कम बारिश हुई है। पिछले पांच साल में सिर्फ एक बार 2012 में औसत से कम बारिश रही।
अभी तक देश में 14.78 सेंटीमीटर बारिश हुई है, जबकि आमतौर पर इस दौरान 26.1 सेंटीमीटर बारिश होती है। मौसम विभाग ने 13 जुलाई तक हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और पश्चिमी यूपी में गर्म हवाएं चलने की चेतावनी दी है।मौसम विभाग ने अब 14 जुलाई के बाद उत्तर भारत के कई राज्यों में बारिश की उम्मीद जताई है। मौसम विभाग के निदेशक बीपी यादव का कहना है कि बंगाल की खाड़ी में बने कम दबाव के क्षेत्र से मानसून प्रभावित हुआ है।
उत्तर-पश्चिमी और मध्य भारत में 15 जुलाई से मानसून आने की संभावना है। तब तक इन क्षेत्रों में गर्म हवाओं का असर रहेगा।
मानसून की बारिश कम होने से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में सूखे जैसी स्थिति पैदा हो गई है। ये राज्य, गन्ना, कपास, दालों, सोयाबीन, फल और सब्जियों के प्रमुख उत्पादक हैं। दक्षिणी तटों पर मानसून अपने निर्धारित समय से पांच दिन से देर से पहुंचा है।
देश के आधे हिस्से तक यह चार यानी 19 जून को पहुंचा। इसके बाद से इसका फैलाव रुक गया, जिससे खरीफ की बुवाई पिछड़ गई। कृषि मंत्री देश राधा मोहन सिंह पहले ही देश के पश्चिमी राज्यों में सूखे जैसे हालात पैदा होने की चेतावनी दे चुके हैं।सरकार के पास गेहूं और चावल का तो पर्याप्त भंडार है। लेकिन उसे फल, सब्जी और दूध के दाम में बढ़ोतरी से पैदा होने वाली समस्या से जूझना होगा। जाहिर है सरकार के सामने पहले से ही बेकाबू खाद्य महंगाई की चुनौती और बड़ी हो जाएगी।
इराक में गृहयुद्ध की वजह से सरकार को महंगा तेल खरीदना पड़ सकता है। उस पर मानसून की खराब स्थिति सरकार के लिए महंगाई के मोर्चे पर खासी मुश्किल खड़ी कर देगी। 2009 में भी देश को चार दशक के सबसे भयंकर सूखे का सामना करना पड़ा था। उस वक्त उसे चीनी और खाद्य तेल का आयात करना पड़ा था। इससे सरकार का आयात बिल काफी बढ़ गया था।
सरकार ने 7 जुलाई के बाद की स्थिति सुधरने की उम्मीद जताई है लेकिन सूखे की आशंका बढ़ते देख इसने 500 जिलों के लिए फौरी योजना तैयार कर ली है।