जमीनी सच : साप्ताहिक बंदी समाप्त, लेकिन बाजार के हालत सुधारने के लिए भी प्रयास की जरूरत, अवैध निर्माण पर अथार्टी अधिकारियों की चुप्पी भी नोएडा की बरबादी की जिम्मेदार

आखिरकार उत्तर प्रदेश में कई महीनों से चली आ रही साप्ताहिक बंदी को समाप्त कर दिया गया अप्रैल के महीने में लगे लॉकडाउन के बाद शनिवार रविवार की साप्ताहिक बंदी को धीरे-धीरे खत्म करते हुए पूर्णतया समाप्त कर दिया गया है लेकिन विधान सभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा उत्तर प्रदेश का शो विंडो कहा जाने वाला नोएडा ग्रेटर नोएडा का व्यापारी वर्ग और आम आदमी फिलहाल टूट चुका है
केंद्र और उत्तर प्रदेश की सरकार गरीबों के लिए 5 किलो चावल और 5 किलो अन्य का स्कीम तो ले आई है लेकिन मध्यम वर्ग जो खुद स्वरोजगार कर रहा था उसके लिए अभी तक कोई राहत नहीं नोएडा और ग्रेटर नोएडा दोनों ही जगह होटल रेस्टोरेंट्स जैसे व्यवसाय से जुड़े लोगों के हाल अभी भी नहीं सुधरे दुकानें खुल रही है मगर उसमें ग्राहक नहीं है अगर ग्राहक आ भी रहा है तो उसके पास सामान खरीदने के लिए पैसे नहीं है नोएडा ग्रेटर नोएडा में अवैध दुकानों ने जहां एक और इन्वेस्टर के हालत खराब कर रखी है वही दुकानों को लेने वाले लोगों पर स्थानीय भू-माफिया और तथाकथित किसानों ने कहर ढाया हुआ है एनसीआर खबर को मिली जानकारी के अनुसार नोएडा और ग्रेटर नोएडा में इस समय माल्स, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और सोसाइटी की दुकानों में इन्वेस्ट किए लोगो की स्थिति भी बहुत खराब है । लोगों को जहां एक और समय से किराए नहीं मिल पा रहे हैं वहीं उनकी ईएमआई लगातार देनी पड़ रही है वही मुख्य सड़कों से जुड़ी आबादी की जगह पर गांववालो और भूमाफिया द्वारा बनाई गई अवैध मार्केट और दुकानों ने किरायों को अधिकृत दुकानों और मॉल्स के किरायों के मुकाबले एक चौथाई करके मार्केट हो और खराब किया हुआ है
रियल स्टेट से जुड़े अमित ने एनसीआर खबर को बताया कि रियल एस्टेट इन्वेस्टर नोएडा ग्रेटर नोएडा में दो तरफ से मारा जा रहा है पहले इन्वेस्टर को दुकानें यह कहकर बेची गई कि उनको एक पर्सेंट किराया आएगा ऐसे में उसके दुकान का किराया ज्यादा होने के कारण कोरोना के बाद लोगों ने दुकानें नहीं ली जिसका सीधा असर नोएडा में पैसा लगाने वाले लोगों के कमाई पर हुआ है दूसरी मुख्य समस्या शॉपिंग कंपलेक्स मॉल्स और सोसाइटी की दुकानों के आसपास गांव के आबादी की जमीन पर बनी अवैध दुकानों के मालिकों ने की हुई है यह दुकाने अथार्टी से बिना किसी नक्शे को पास कराए बनाई गई है और लगातार बनाई जा रही है
दोनो ही अथॉरिटी के अधिकारियों की इन पर कोई नजर नहीं होती है ना ही अथॉरिटी लोग इनके डिमोलिशन को लेकर कोई कार्यवाही करते हैं साथ ही पुलिस भी इन सभी दुकानों से अपना हफ्ता बांध लेती है जिसके चलते नोएडा और ग्रेटर नोएडा में एक समानांतर अर्थव्यवस्था शुरू हो गई है जो यहां के इन्वेस्टर के लिए बहुत घातक है
अधिकारी किसानों के भेष में इन भू माफियाओं से कुछ कहते नहीं है और कभी-कभी यही लोग नेताओं के रूप में अधिकारियों को दबा लेते हैं या फिर पैसे से सैटल मेंट हो जाता
वहीं दुकानों में छोटा छोटा व्यापार करने वाले लोगों की भी समस्याएं अलग ही है । ऐसी दुकानों में राशन का काम करने वाले संजय कहते हैं कि सस्ते किराए के चलते इन दुकानों को ले तो लिया जाता है लेकिन स्थानीय गुंडागर्दी और दबाव हमेशा इन पर हावी रहता है ।
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में ऐसे दुकानों के मालिक स्थानीय होने के कारण और जमीन बेचकर पैसा आने के कारण दबंग हो गए हैं और वह किराए में एक भी दिन लेट होने पर दुकानदारों को गालियां तक देने लगते हैं यही नहीं उनको पता होता है कि दुकानदार की दुकानदारी जम जम गई है तो वह मजबूरी में वही रहना चाहेगा और ऐसे समय पर यह लोग उसका किराया दुगना कर देते हैं । बाहर से आया हुआ गरीब आदमी रोजी रोटी के लिए यह सब दबाव से आता रहता है कोरोना के दौरान भी नोएडा ग्रेटर नोएडा में किसी भी दुकान का किराया ना तो कम किया गया और ना ही उसको छोड़ा गया है ऐसे में लगभग 20 से 30% दुकानें बंद होने के कगार पर हैं या फिर कर्ज लेकर इनको किराया दे रहे है
ऐसे लोगो के लिए ना तो नोएडा ग्रेटर नोएडा अथार्टी ना ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कोई कदम उठाए जा रहे है, नोएडा ग्रेटर नोएडा किस जगह पर है छोटे व्यवसाय करने वालों के बच्चों की स्कूल फीस तक देने के पैसे उनके पास नहीं है घरों के किराए देने के लिए पैसे नहीं है लेकिन उनके समस्याओं को सुनने वाला भी कोई नहीं है
नोएडा में रहने वाले यूके भारद्वाज पूछते है कि क्या ५% आबादी के जिन भूखंडों पर बहुमंज़िला व्यवसायिक इमारत बनी हैं क्या वैध हैं? डूब क्षेत्र में हज़ारों की संख्या में भूमाफ़ियाओं द्वार प्लोटिंग हो रही है क्या वैध है?नोएडा के भी किसी संपादक, वरिष्ठ पत्रकार को @noida_authority में खुलेआम हो रहे क़ानूनों के उल्लंघन नज़र नहीं आते है
नोएडा में भारत जागरूक संगठन के अध्यक्ष शैलेंद्र वर्णवाल कहते हैं की नोएडा की इकॉनमी में गांव और शहर का अंतर अब बढ़ता जा रहा है शहरी आदमी यहां नौकरी करके या अपना पैसा लगाकर व्यवसाय करने की कोशिश करता है लेकिन उसके बावजूद बहुत बड़ा मुकाम हासिल नहीं कर पाता है वही जो गांव के लोग हैं वह जमीनों के बेचे जाने के बाद आए हुए पैसे के बल पर यहां राजनीतिक गतिविधियों में आगे होने की कोशिश करते हैं और जमकर प्रचार और बाकी काम और पैसा खर्च करते हैं जिसके कारण शहर को अच्छे राजनेता भी नहीं मिल पा रहे है ऐसे में आम आदमी की समस्याओं को उठाने वाला कोई नेता या समाजसेवी कैसे आएगा ।
आज नोएडा ग्रेटर नोएडा में नेतागिरी के नाम पर आप अधिकांश गांव के ऐसे लोगों को नेता बनते हुए देखेंगे जो इसी तरह के अवैध दुकानों मार्केट या किराए के मकानों के पैसों से अपनी नेतागिरी चला रहे हैं ऐसे में नोएडा अथॉरिटी हो या उत्तर प्रदेश सरकार दोनों को ही इसके लिए कदम उठाने पड़ेंगे या फिर इस जनता को इस तरीके के राजनेताओं की राजनीति को बदलना पड़ेगा और नए सामाजिक आधार वाले नेताओं को चुनना पड़ेगा