‘बंधु दिल्ली में कोई हमें घर देने को तैयार नहीं है।’ यह ना तो मुंबई की तर्ज पर किसी मुस्लिम का कथन है और ना ही घर ढूंढने वाले किसी बेरोजगार का। जिससे किराया मिलेगा या नहीं इस डर से मकान मालिक घर देने से इंकार कर दे। यह शब्द अरविन्द केजरीवाल के हैं। जी, वही केजरीवाल जिन्होंने दिल्ली में बेघरों को घर दिलाने की जद्दोजहद की। ठंड भरी रातों में खुले आसमान तले रात बेघरों को गुजारनी ना पड़े इसके लिये केजरीवाल के मंत्री जद्दोजहद करते रहे। उसी केजरीवाल को दिल्ली में कोई किराये पर मकान देने को तैयार नहीं है।
केजरीवाल ने दिल्ली का सीएम बनने के बाद डीटीसी बसों को रैन बसेरा में तब्दील किया। दो हजार से ज्यादा बेघरों के लिये छत की व्यवस्था ४९ दिनों की सत्ता के दौरान कर दी गयी। जिन बस्तियों में सिर्फ घर थे लेकिन घर बिजली -पानी से महरूम हुआ करते थे, वहां बिजली पानी व्यवस्था कराकर घरों को आबाद किया। बच्चों की किलकारियां घुप्प अंधेरे में समाये घरों में लौटी क्योंकि बल्ब जगमगाने लगे। मां-बाप खुश हुय़े कि उनकी जेब पर कोई डकैती नहीं डाल रहा है। रसोई में चूल्हा बंद कराने वाले बिजली के बिल कम हुये। कुछ के माफ हुये। बिलों के सौदागरो की दुकानें बंद हुई। लेकिन इसी केजरीवाल को कोई मकान देने को तैयार नहीं है।
तिलक लेन के सरकारी आवास को खाली कराने के लिये केजरीवाल के खिलाफ प्रदर्शन भी हुये और नारे भी लगे। लेकिन ना तो किसी नारे लगाने वाले को पता था ना ही तख्तियों पर केजरीवाल के खिलाफ घर खाली करो के शब्द लिखने वालों को कि घर के भीतर जो दर्द पसरा है, उसमें पत्नी परेशान है कि घर खाली कर कहां जाएं। बच्चों के दोस्त पहले स्कूल में अब अड़ोस-पड़ोस के खेलते वक्त पूछ लेते हैं। घर खाली कर कब जा रहे हो य़ा फिर क्या कोई घर मिला। पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार में एक शख्स घर देने को तैयार हो गया तो केजरीवाल का पूरा परिवार ही सामाने की गठरी बांधने में लग गया कि दो दिन के भीतर घर खाली कर देंगे। शनिवार-रविवार को सामान चला जायेगा। और फिर सोमवार को मयूर विहार में मिलेंगे।
शुक्रवार को टेलीफोन पर यही कुछ केजरीवाल ने कहा। और यह भी कहा कि अब मयूर विहार में मिलेंगे। वक्त हो तो आइयेगा। मैंने भी कहा चलिये जो लोग आपको सरकारी मकान छोडने के लिये नारे लगा रहे थे उन्हें अब सुकुन होगा। और जिक्र सरकारी मकान के ८४ हजार रुपये किराये का नहीं होगा। सुकुन की राजनीति का नहीं होगा। बात आयी-गयी हो गयी। मुझे भी लगा कि यह तो खबर है कि केजरीवाल सरकारी घर छोड़ कर किसी किराये के घर में जा रहे हैं। तो न्यूज चैनल के स्क्रीन पर खबर चल पडी-केजरीवाल घर खाली करेंगे । रविवार को झटके में मैंने सोचा कि केजरीवाल घर खाली कर रहे हैं तो आखिरी बार उन्हें सरकारी घर में मिल लिया जाये। भरी दोपहरी में तिलक लेन के सरकारी घर में पहुंचा। तो केजरीवाल अकेले घर में मिले। कुछ इधर उधर की बात होती रही। राजनीतिक तौर पर देश के हालात पर भी चर्चा हुई।
लेकिन कुछ देर बाद ही केजरीवाल की पत्नी पहुंची। और शांत बैठे केजरीवाल से कुछ गुफ्त-गू करने लगीं। फिर अचानक मेरी तरफ देख कर बोली हम किराये के घर के बारे में बात कर रहे हैं। लेकिन अब आप इसे खबर ना बनाइएगा। क्यों क्या हुआ। आपका सामान तो शिफ्ट हो रहा होगा। अरे नहीं। केजरीवाल बोले । आपने खबर दिखायी और मकान मालिक ने घर देने से ही मना कर दिया। क्यों। क्योंकि घर मालिक को लगा कि केजरीवाल को मकान देंगे तो फिर मीडिया भी आयेगा और नगर निगम को दिखाये नक्शे से इतर एक कमरा जो बना लिया है, उस पर सभी की नजरें जायेंगी। तो फिर बेवजह सफाई देते रहनी होगी। केजरीवाल की पत्नी दुखी थीं। चेहेरे पर हताशा थी।
खुद दो महीने बाद प्रमोट होकर इनकम टैक्स कमीशनर के पद पर होंगी। लेकिन आम आदमी के लिये संघर्ष करते केजरीवाल की फितरत ने पत्नी को भी उसी संघर्ष के बीच ला खड़ा किया, जहां राजनीति करते हुये एक चल रही व्यवस्था को चुनौती देते हुये सामान्य जिन्दगी जीना कितना मुश्किल हो सकता है, उसके जख्म हर क्षण पूरा परिवार खामोशी से आज सीने पर ले रहा है। पत्नी खुद आईआरएस अधिकारी हैं। एक महीने बाद प्रमोट भी हो जायेंगी। फिर इन्कम टैक्स कमिश्नर हो जायेंगी। यानी अभी भी कोई छोटा पद नहीं है। लेकिन ना कोई क्वार्टर है ना कोई विभाग। दिल्ली में सत्ता बदली है। केजरीवाल ने और किसी को मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को वाराणसी जाकर चुनौती दी थी तो क्या यह चुनौती लोकतंत्र के दायरे से इतर थी। कौन सा डर केजरीवाल परिवार को खामोश किये हुये है। जो केजरीवाल दिन में बैटरी रिक्शा वाले के हक के लिये दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग से तर्क करते हैं। शाम होते होते मोहल्ला सभा में हर बस्ती हर कालोनी वालो के दर्द के निपटारे का रास्ता निकालने में भिडे रहते है। और शाम ढलने के बाद घर पर पहुंचने वाले हर दुखियारे की गुहार को सुन कर जल्द ही कुछ कर देने का आश्वासन देते हों।
वही शख्स एक अदद किराये के मकान को लेकर परिवार को भी भरोसा ना दे पा रहा है। और पत्नी बच्चों को अपने पति अपने पिता पर गर्व हो। सरकारी घर के एक कमरे में बूढे मां बाप भी हर आने जाने वाले को देखते हों। घर के बाहर कतारों में खड़े लोगों की बेटे केजरीवाल से काम कराने की तसल्ली पाकर ही लौट जाते हों। वह खुद किस मानसिकता में होगा इसका अहसास शायद खामोश कमरे में पत्नी के शब्दों से ही टूटता है या कहे कही ज्यादा खामोशी ओढ कर निकलने के हालात पैदा करता है। क्योंकि जिस दिल्ली के लिये सबकुछ छोड़ा उसी दिल्ली में घर किराये पर देने से पहले कोई पूछता है, आपके यहा तो बहुत लोग आयेगें । तो कोई राजनीतिक नेताओ का खौफ दिखाता है। आपको घर दे दिया तो मोहल्ले के छुटमैया नेता ही सही लेकिन परेशान करेंगे।
किसी को लगता है केजरीवाल को घर किराये पर दे दिया तो इलाके के नगर निगम अधिकारी से लेकर कांग्रेस-बीजेपी के नेताओ के भी निशाने पर वह आ जायेगा। आपने तो दिल्ली को ताकत दी। ल़डना सिखाया । तो क्या दिल्ली कमजोर और डरे हुये लोगो का शहर है। नहीं मै यह तो नहीं कह सकता। लेकिन फिलहाल तो एक अदद किराये का घर चाहिये। तो फिर केजरीवाल क्या करें । क्या दिल्ली छोड यूपी में डेरा डाल दें। जहा कानून -व्यवस्था चाहे चौपट हो लेकिन नोयडा या गाजियाबाद में तो घर मिल जायेगा। इन इलाको में घर मिल रहे हैं। नहीं नहीं दिल्ली की सियासत इतनी भी अंधेरी नहीं है। यहां राजनीति इतनी भी जहरीली नहीं हुई है। सबकुछ है। इसलिये मैंने बार बार व्यवस्था बदलने का जिक्र किया था। डरे हुये लोगो को उनकी ताकत का एहसास कराना चाहता था। लेकिन आम आदमी को जबतक ताकत मिलती ताकतवर लोग ही डर के साथ एकजुट हो गये । और वही डराते हैं। शायद संघर्ष करने की राजनीति का क्या मोल होता है या क्या क्या चुकाना पडाता है यह सब हम देख रहे हैं। लेकिन हर कोई शामोश है । किसी को केजरीवाल में मसालेदार खबर चाहिये। किसी को केजरीवाल का संघर्ष में सबकुछ लुटाना ताकत देता है। किसी को केजरीवाल का अतीत सुकुन देता है। किसी राजनेता को खामोश केजरीवाल से राजनीतिक ताकत मिलती है । तो सत्तादारी को बिना मांगे केजरीवाल को सरक्षा दे कर सुरक्षा के कटघरे में अलग थलग खड़ा कर देना राहत देता है। क्योंकि कोई भी अवस्था केजरीवाल को आम आदमी नहीं मानती। और केजरीवाल भी हट किये हुये है कि वह संघर्ष आम आदमी को लेकर ही करेंगे। चाहे चारदीवारी के बाहर यह सवाल का आ पाये कि कौशांबी का क्वार्टर दिल्ली को संभालने के लिये छूटा।
पत्नी के छत से सरकार क्वार्टर का हक दिल्ली के आम आदमी के हक के लिये छूटा। क्योंकि दिल्ली का सीएम बना तो कौशंबी का घर छोड दिल्ली आना ही पडा । अब बेटी की परीक्षा समाप्त हो चुकी है रिजल्ट निकल चुका है । तो सरकारी घर छोड तो दें लेकिन कमाल है कोई घर ही नहीं दे रहा । यह आखिरी लफ्ज केजरीवाल ने जिस सरलता घर से निकलते निकलते कह दिया, उतनी ही दुविधा थी इस सरल शब्दो को पचाने में लगे क्योकि जिस वक्त केजरीवाल ने राजनीति शुरु की कमोवेश हर मोहल्ले में महज एक रुपये की टोकन किराये पर दर्जन भर लोग घर देने को तैयार थे । और अब केजरीवाल मुस्कुराते हुये कहते है बंधु दिल्ली में हमें कोई किराये का मकान देने को तैयार नहीं है।
वरिष्ठ और चर्चित पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी के ब्लाग से.