
इस वर्ष जून से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल (क्रूड) की कीमत में करीब 40 फीसदी की कमी हुई, लेकिन घरेलू बाजार में ग्राहकों को उस अनुरूप फायदा नहीं मिला। इस दौरान डीजल की कीमतों में जहां महज 8 फीसदी की कटौती हुई है वहीं पेट्रोल में 11 फीसदी और रसोई गैस के वाणिज्यिक सिलेंडरों की कीमतों में 17 फीसदी की कटौती हुई है।
दुनिया भर के बाजारों में बेहतरीन माने वाले ब्रेंट क्रूड को ही पैमाना मानें, तो जून 2014 से पिछले नवंबर तक इसकी कीमतों में करीब 40 फीसदी की कटौती हुई है। लेकिन इसका पूरा फायदा घरेलू उपभोक्ताओं को नहीं मिल पाया। इस दौरान डीजल की कीमत में सबसे कम 8 फीसदी की कटौती दर्ज की गई।
पेट्रोल की कीमतों में भी 11 फीसदी की कटौती हुई। रसोई गैस के वाणिज्यिक सिलेंडरों के उपयोगकर्ता थोड़े भाग्यशाली रहे कि उन्हें करीब 17 फीसदी की राहत मिली। हवाई जहाज के ईंधन (एटीएफ) के उपभोक्ताओं को भी इस दौरान बस 14 फीसदी की ही राहत मिली।देश में पेट्रोलियम पदार्थों का विपणन करने वाली सबसे बड़ी कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी से जब इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि इसे विदेशी बाजार से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए।
विदेशी बाजारों में क्रूड का जो दाम होता है, उसके हिसाब से घरेलू बाजार में डीजल या पेट्रोल का दाम तय नहीं होता है। उनका यह भी कहना है कि क्रूड की कीमत को प्रोडक्ट की कीमत से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए।
हालांकि विशेषज्ञों की राय है कि घरेलू बाजार में डीजल या पेट्रोल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल या डीजल की कीमतों से जुड़ी है। इसलिए यदि बाहर पेट्रोल की कीमत में कटौती होती है तो यहां भी होगी और बाहर नहीं होती है तो यहां भी नहीं होगी।मंत्रालय एवं पेट्रोलियम क्षेत्र के वरिष्ठ आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि डीजल, पेट्रोल के दाम में जितनी कमी हुई है, उससे ज्यादा कटौती की गुंजाइश थी।
उनका कहना है कि नवंबर के मध्य में इन उत्पादों की कीमतों में प्रति लीटर 2 रुपये तक की कटौती की पूरी संभावना थी, लेकिन खुदरा कीमतों को घटाने के बदले सरकार ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी करना ज्यादा उचित समझा।
इसी तरह अभी दिसंबर के मध्य में भी कटौती की संभावना रहती, लेकिन इससे पहले ही सरकार ने फिर से उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी कर दी।
पेट्रोल पंप के डीलरों का कहना है कि इस समय तेल विपणन करने वाली सरकारी कंपनियां भी अपना पुराना घाटा पाट रही हैं। इस समय सभी कंपनियों का रिफाइनिंग मार्जिन प्रति बैरल चार से पांच डॉलर तक पहुंच गया है। यदि इसमें से कुछ उपभोक्ताओं को भी मिल जाए, तो क्या दिक्कत है।