चुनाव से जुड़ी ये बातें जरूर जानना चाहेंगे आप

NCR Khabar News Desk
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केंद्रीय चुनाव आयोग ने लोकसभा खर्च की सीमा 40 लाख से बढ़ाकर 70 लाख कर दी है। चुनाव अधिकारियों के मुताबिक नामांकन का पर्चा भरने के बाद अगले ही दिन प्रत्याशियों को अपना नया बैंक खाता नंबर जिला प्रशासन के पास लिखवाना होगा।

जिला प्रशासन उन्हें एक चुनाव खर्च रजिस्टर देगा, जिसमें प्रत्याशियों को हर रोज होने वाले खर्च का ब्यौरा देना होगा। इसे किसी भी समय जिला प्रशासन चेक करवा सकता है। यही नहीं 20 हजार से अधिक के खर्च का भुगतान चेक से करना होगा। इस बात की जानकारी जिला उपायुक्त विजय सिंह दहिया ने दी है।

चुनाव की कुछ खास बातें
प्रत्याशी सहित पांच लोग
नामांकन दाखिल करते समय एक प्रत्याशी के साथ उसके केवल चार सहयोगी रहेंगे। यानी कुल पांच व्यक्ति ही रिटर्निंग अधिकारी के समक्ष उपस्थित हो सकेंगे।

सिर्फ तीन गाड़ियां
नामांकन के लिए लघु सचिवालय परिसर की 100 मीटर की परिधि में एक उम्मीदवार की केवल तीन गाड़ियां ही प्रवेश कर सकेंगी। इससे अधिक वाहनों को लेकर आने पर आचार संहिता का उल्लघंन माना जाएगा।

30 दिन में देना होगा खर्च का ब्योरा
यदि उम्मीदवार चाहे तो वह अपना बैंक खाता परिवार के किसी चुनाव एजेंट के साथ संयुक्त रूप से खोल सकता है। चुनाव संबंधी खर्चों की स्टेटमेंट परिणाम घोषित होने के 30 दिन की भीतर जिला निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में प्रस्तुत करना होगा।

होश नहीं, जोश में वोट डालते हैं युवा
हथीन से 1972 से 1977 तक निर्दलीय विधायक रहे रामजीलाल डागर ने बताया ‌‌कि पहले चुनाव समस्याओं और विकास के मुद्दे पर लड़ा जाता था, लेकिन आज केवल पैसे के दम पर चुनाव हो रहा है। हालात ये हैं कि चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक पार्टियों के अलग-अलग मुद्दे होते हैं, वे मीठी-मीठी बातें करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद ज्यादातर मुद्दे गायब हो जाते हैं।

अब चुनाव खर्चीला हो गया है, इससे भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। चुनावों में पहले जहां समाज के मौजिज लोगों की पूछ होती थी, वहीं अब ज्यादातर नेता बाहुबलियों को अपने साथ लगाने का प्रयास करते हैं। आजकल युवा होश की बजाय जोश में वोट डालते हैं, जोकि ठीक नहीं है। आज भले ही मतदाता का प्रतिशत बढ़ा हो, लेकिन नेताओं की विश्वसनीयता में कमी आई है।

जब मैंने 1972 में चुनाव लड़ा था, तो रात-रात जागकर लोगों के पास गांव-गांव जाता था। अब चुनाव हाईटेक हो गया है, जिससे मतदाता से सीधा संपर्क बहुत कम हो पाता है। पहले युवाओं को समझाने के लिए उम्मीदवार जगह-जगह सभा कर उन्हें जागृत करते थे। हमारे जमाने में चुनाव जाति, धर्म से ऊपर उठकर लड़ा जाता था, लेकिन अब इन्हीं मुद्दों पर वोट बटोरे जाते हैं। दुख इस बात को देखकर होता है कि अब चुनाव में केवल पैसे वालों का ही बोलबाला है।

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