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तंगदिल दिल्ली

दुनियाभर में रंगभेद और नस्लीय भेदभाव के सबसे प्रखर विरोधी व ‘अफ्रीका के गांधी’ नेलशन मंडेला ने एक बार अदालत में बयान देते हुए कहा था कि “…मैंने गोरों के प्रभुत्व के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और मैंने काले के प्रभुत्व के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी है। मैं एक जनतांत्रिक और सद्भाव की आदर्श स्थित के लिए संघर्षरत हूँ और रहूँगा जहां सभी के लिए समान अवसर और हक हों”। बर्ष 1964 में गोरों के न्यायालय में इतना प्रखर बयान देने वाले मंडेला भी जानते थे कि यह बयान उन्हें फांसी तक पहुँचा सकती है परंतु न्यायाधीश ने उन्हें फांसी से भी कई गुणा अधिक दर्दनाक, आजीवन सश्रम कारावास की सजा दी।

आज से 50 साल पहले अफ्रीका जैसे पिछड़े देश में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ आवाज इतनी प्रखर थी। परंतु 21वीं सदी के भारत में जिस प्रकार की नस्लीय भेदभाव और असहिष्णुता दिख रही है वह शर्मनाक है।

ताजा मामला दिल्ली में अरूणाचल के छात्र नीदो तनियन की हत्या का है। उसके हेयर स्टाईल के कारण स्थानीय युवकों ने उसका मजाक उड़ाया, खुलेआम नस्लीय टिप्पणी की और सरेआम पीटा। किसी तरह बचकर जब नीदो स्थानीय थाना पहुँचा तो पुलिस कारवाई कि जगह दोनो पक्षों में मांडवाणी(समझौता) करवा दिया। इसके बाद पुलिस के हटते ही स्थानीय युवकों ने नीदो की निर्ममता पूर्वक पिटाई की जिससे उसकी मौत हो गई।

इस घटना से पहले पूर्वोतर भारतीयों के साथ हो रहे नसलीय भेदभाव को लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग के समर्थन से सेंटर फॉर नॉर्थ ईस्ट स्टडीज एंड पॉलिसी रिसर्च (सीएनईएसपीआर) ने एक सर्वेक्षण किया था। रपट के मुताबिक दिल्ली सहित इन शहरों में देश के चारों प्रमुख महानगरों में पूर्वोतर भारत की महिलाओं के साथ छेड़खानी और बदसलूकी की जाती रही है। पूर्वोतर भारत के वाशिंदों से टैक्सी और तिपहिया चालकों द्धारा मनमाना किराया वसूलने की दैनिक घटनाओं का भी जिक्र है।

इस सर्वेक्षण में शामिल तीन सौ महिलाओं में से सोलह फीसद महिलाओं ने बताया कि उनके मकान मालिक उनकी जीवनशैली, कामकाज, खानपान और घर के बारे में अभद्र और असहज करने वाले सवाल करते हैं वही उन्नीस फीसद महिलाओं का कहना है कि उन्हे दिल्ली के लोग किराए पर घर देने से कतराते हैं। पूर्वोतर भारतीयों के साथ अपशब्द और गलीज भाषा का इस्तेमाल की बात भी इस रपट में सामने आई है।

आज देश में सरकार की विफलताओं की वजह से ऐसी घटनाये बढ़ी है। ज्यादातर राज्य सरकारें रोजगार सृजन में विफल रही हैं। 4-5 महानगर रोजगार के टापू के रूप में विकसित हो गये हैं। इन शहरों पर अत्यधिक दबाब है। इन महानगरों के स्थानीय युवा इसे अपने रोजगार का खतरा मानते हैं। सरकारें भी वोट की खातिर स्थानीय दबाब में दिखती हैं। बीते जनवरी दिल्ली की नई सरकार स्टेट फंडेड कालेजों में सीटों को 90 प्रतिशत तक स्थानीय बच्चो के लिए रिर्जव करने का निर्णय लिया। यह खतरनाक संकेत है। इससे लगभग 1200 बाहरी बच्चे निराश होंगे। एक संवैधानिक निर्वाचित सरकार के स्तर पर इस तरह की क्षेत्रियता फैलाना देश को विघटन की ओर ले जा रहा है।

समय-समय पर क्षेत्रीय प्रभाव बनाये रखने के लिए मुंबई में उतर भारतीयों के साथ प्रायोजित गुंडागर्दी की जाती है। 2011 में देश भर में उतर पूर्वी लोगों के खिलाफ हिंसा होने का भ्रामक प्रचार किया गया। इससे भयभीत होकर देश भर के उतर-भारतीयों में सुरक्षित अपने प्रदेश लौटने की आपाधापी मच गई। यकीन मानें तो भारत के लोग आज बिहारी, मराठी, उतर-पूर्वी, द.भारतीय सहित दर्जनों भाग में क्षेत्रानुसार बँट चुके हैं। बेहतर शिक्षा, रोजगार और आजीविका की संभावनाओं के कारण वे इन कुछ महानगरीय टापू पर बसते हैं। लेकिन वर्तमान दौर में हर स्वदेशी इसी देश के दूसरे प्रदेश में खुद को असुरक्षित समझता है।

नीडो की हत्या सिर्फ और सिर्फ नस्लीय कारणों से हुई। इतनी घृणा, इतना भेदभाव, इतनी असहिष्णुता…यह शर्मनाक है। यह भारत की विविधता पर, उसकी एकता पर चोट है। कौस्मोपोलिटन तमगे वाली दिल्ली की तंगदिली पर सवाल है।

 

अमित सिन्हा

अमित सिन्हा अपने 6 वर्षों के अनुभव के साथ साथ द्विभाषी पत्रकार है. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस और अन्य मीडिया हाउस के साथ काम किया है और नियमित रूप से राजनीतिक खबर और अन्य मुद्दों पर लिखते रहते हैं .अमित सिन्हा बिहार में पटना में रहते है और एन से आर खबर के साथ अपने मिशन मैं शामिल हैं . आप इन्हें फेसबुक पर भी फालो कर सकते हैं https://www.facebook.com/indianxpress

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