राजेश बैरागी ।क्या लोकतंत्र सत्ता की दुर्बलता से आता है।आज मैंने इस प्रश्न पर विचार करते हुए अनुभव किया कि सत्ता की दुर्बलता तो अराजकता को जन्म देती है। पूर्व में गठबंधन की सरकारों ने यह सिद्ध किया है।तब देश के नागरिकों के एक वर्ग से यह आवाज क्यों सुनाई दे रही है कि गठबंधन की सरकार अच्छी होती है।
दरअसल लोग सरकार की तानाशाही से दुखी होकर गठबंधन सरकार के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। तो असल समस्या है सरकार का तानाशाह हो जाना। वर्तमान मोदी सरकार के अनेक और ऐतिहासिक कार्यों के मुरीद लोग भी सरकार की कथित तानाशाही से रुष्ट हैं। उन्हें लगता है कि यदि सरकार अपने पांवों की अपेक्षा बैसाखी पर टिकी हुई हो तो उसके द्वारा मनमाने निर्णय नहीं लिए जा सकेंगे।
इसके विपरित आमधारणा यह है कि एक सशक्त सरकार ही कठोर निर्णय लेने में सक्षम होती है इसलिए सरकार चाहे जिसकी हो,होनी चाहिए पूर्ण बहुमत की सरकार। जहां तक लोकतंत्र के फलने फूलने के लिए आवश्यक खाद पानी का प्रश्न है तो वह भी एक सशक्त सरकार से ही मिल सकता है। सत्ता की दुर्बलता से नहीं बल्कि सत्ता की उदारता से लोकतंत्र का क्रमिक विकास होता है। शक्तिशाली सत्ता नागरिकों, समाचार माध्यमों, न्यायालयों को अपना काम स्वतंत्रता से करने का अवसर प्रदान करे तो यह उसकी उदारता है।
परंतु यदि सत्ता बोलने की स्वतंत्रता दे और उसे सुने ही नहीं तो ऐसी स्वतंत्रता का क्या अर्थ? यह तानाशाही का एक अन्य स्वरूप है जो छद्म लोकतंत्र का निर्माण करता है। अधिकांश सरकारें इसी छद्म लोकतंत्र को पालती पोसतीं और जवान करती हैं।इसी छद्म लोकतंत्र का प्रमाण पत्र अन्य देशों और तथाकथित अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से प्राप्त किया जाता है जिनका काम ही केवल प्रमाण पत्र बांटना है।
स्वतंत्रता के आंदोलन में महात्मा गांधी का सबसे बड़ा योगदान क्या था? उन्होंने अंग्रेज सरकार को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसी आधार पर बदनाम कर दिया था कि सरकार जिन लोगों को राजद्रोही बताकर लाठीचार्ज कर रही थी वे पूरी तरह निहत्थे थे।आज वह समय नहीं है।आज चहुंओर फर्जी लोकतंत्र की जय जय है और अन्य देशों की सरकारें और उनकी स्वनामधन्य संस्थाएं इसलिए लोकतंत्र की रक्षा के प्रमाण पत्र जारी कर रही हैं क्योंकि उनके यहां भी ऐसा ही लोकतंत्र है और उन्हें भी ऐसे ही प्रमाण पत्रों की आवश्यकता है।