पटना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को भाजपा और नरेंद्र मोदी पर काफी तीखे प्रहार किए। गांधी मैदान में भाजपा की हुंकार रैली पर पहली बार कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि आतंकियों ने सहायता कर दी वर्ना फ्लाप थी हुंकार रैली। जिस तरह से रैली को ले संसाधनों का इस्तेमाल हुआ और दावे किए गए उस हिसाब बहुत ही कम उपलब्धि थी। आतंकी घटना नहीं होती तो सब लोग रैली की संख्या पर बात करते। धमाका नहीं होता तो रैली के आयोजकों की ऐसी खिंचाई होती कि पूछिए मत। जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम में संवाददाताओं से बातचीत के क्रम में मुख्यमंत्री ने यह बात कही।
नरेंद्र मोदी का नाम लिए बगैर मुख्यमंत्री ने कहा कि झूठ की खेती करने वाले लोगों को सभी जानते हैं। जिस दिन धमाके हुए उस दिन उन्होंने मुंगेर और राजगीर के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम को रद कर दिया, सभी जानते हैं। पर भाजपा नेताओं द्वारा इस बारे में किस तरह से वक्तव्य दिए जा रहे हैं? वे लोग गोएबल्स के सिद्धांत का अनुकरण कर रहे हैं। इतना झूठ बोलो कि झूठ भी सच लगने लगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि मंच से कहा गया कि राजगीर में जदयू के सम्मेलन में छप्पन भोग परोसे गए। पहली बात की हमलोगों की औकात छप्पन भोग की नहीं और दूसरी यह कि हमारा यह संस्कार ही नहीं है। अतिसाधारण व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं हम। फाइव स्टार कल्चर में बैठकें नहीं होती हमारी। संस्कारवश भी न्यूनतम और आवश्यक सुविधाओं के हिसाब से अपने कार्यक्रम को चलाते हैं। दरअसल हुआ यह कि राजगीर के सम्मेलन से उक्त नेता को जब आइना दिखाया गया तब वह तिलमिला गए।
झूठ की खेती की बात को आगे बढ़ाते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि एक झूठ भाजपा के लोगों द्वारा यह कहा जा रहा कि आतंकी भटकल से पूछताछ के लिए सरकार ने पुलिस को मना कर दिया। उन्हें मालूम होना चाहिए कि इस तरह के मामले में सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करती है यहां। यहां तक कह दिया कि कोई पूछताछ करने जा रहा था, सरकार के स्तर से उसे रोक दिया गया। कितना बड़ा झूठ है यह। यह भी बताया जाना चाहिए कि किसने रोका? झूठ भी ऐसा बोलें कि पच जाए पर यहां तो हाल यह है कि हर रोज प्रेस कांफ्रेंस कर कुछ बोलना है। छठ के दिन भी बयान देने से परहेज नहीं किया। इसके बगैर भाजपा नेताओं को खाना हजम नहीं होता है। भाजपा नेता के एक झूठ का तो रविवार को पुलिस ने खंडन किया है। हाल तो यह है कि एक दल विशेष के लोगों द्वारा बिहार पुलिस के मनोबल को तोड़ने का हरसंभव प्रयास किया जा रहा है। जबकि बिहार पुलिस की प्रशंसा की जानी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी संवेदनशीलता पर भी प्रश्न किया गया है। जबकि तथ्य यह है कि हमने तो घटना के दिन रात में एक-एक घायलों से बात की। अनुग्रह राशि का भुगतान अगले ही दिन कर दिया गया। लोगों के मना किए जाने के बावजूद गांधी मैदान और स्टेशन पहुंच घटनास्थल का जायजा लिया। भाजपा के नेता को यह बताना चाहिए कि रैली में काल कवलित हुए कितने लोगों से मिलने गए वह? वर्ष 2008 में अहमदाबाद में जब ब्लास्ट हुआ था तब कितने लोगों के परिजनों से मिलने गए थे? अस्पताल भी तब गए जब प्रधानमंत्री आए। दूसरे पर असंवेदनशील होने का आरोप लगाने वाले लोगों को इस पर भी सोचना चाहिए। आक्षेप लगाने वालों को यह बताना चाहिए कि वह मणिनगर गए थे या नहीं? रैलियों में पानी की तरह पैसा बहाने वाली पार्टी ने रैली में मारे गए परिजनों के लिए सिर्फ पांच लाख रुपये दिए। वह भी जब सरकार ने अनुग्रह राशि उन तक पहुंचा दी तब दिया गया पैसा।
नसीहत वाले अंदाज में मुख्यमंत्री ने कहा कि झूठ का सहारा नहीं लें। आतंकवाद देश के खिलाफ अपराध है। कोई भी व्यक्ति बड़े पद की इच्छा रखे इस पर कोई शिकायत नहीं पर उस हिसाब से अपने को दिखाना चाहिए। गरिमा का ख्याल रखना चाहिए। देश उसकी सामाजिक, आर्थिक व विदेश नीति पर स्पष्ट राय सुनना चाहता है। यह भी कहा गया कि हमने हंसते-हंसते अपनी बात कही। दरअसल यह संभव नहीं है कि कोई जो मर्जी आए बोल दे और हम सुनते रहें। वैसे हम उत्तेजना में कभी अपनी बात नहीं रखते।