टेलिविज़न इतिहास में स्टिंग आपरेशन और खोजी पत्रकारिता करने के लिए SPECIAL INVESTIGATION TEAM(SIT) पहली बार आजतक में बनाई गयी. सन २००३ में ये टीम आजतक के तत्कालीन न्यूज़ डाईरेक्टर उदय शंकर साहब ने बनाई. इस टीम के पहले ब्यूरो चीफ प्रबल प्रताप जी और डिप्टी ब्यूरो चीफ मै था. प्रबल जी अब लाईव इन्डिया के मैनेजिंग एडिटर है और मै अभी भी आजतक में SIT का एडिटर हूँ.
उदय शंकर जो अब एशिया के सबसे बड़े नेटवर्क स्टार के बॉस हैं, ने स्टिंग आपरेशन करने के हमें कुछ नियम बताए थे. बाद में इन नियमों, परम्पराओं और उसूलों को उदयजी के जगह आये कमर वाहिद नकवी साहब ने और भी साफ़ किया.
इन उसूलों की बात बाद में पहले मै जिक्र करूँगा की हाल की कुछ खोजी खबरें देश में सुर्ख़ियों में है और अलग अलग तरीके से इन ख़बरों पर राजनीती हो रही है. किसी नेता को चंदा लेते हुए स्टिंग में दिखाया गया तो कोई उम्मेदवार पैसा लेने की बात करते हुए दिखा और किसी को किसी की जासूसी करने का आरोपी बनाया गया . ये सारी ख़बरें प्लांट थी या इनकी टाईमिंग चुनकर इन्हें ब्रेक किया गया या इसके पीछे कोई अजेंडा था इसपर मुझे कहने का कोई हक नही है. लेकिन में अघोषित किन्तु परंपरागत नियमों का ज़िक्र करूँगा. मेहरबानी होगी अगर आप ध्यान से पड़ें. कोई गुस्ताखी हो तो टोकने और तोहमत लगाने का पूरा हक आपको है.
नियम १ ) इलेक्शन के दौरान या इलेक्शन नजदीक होने पर किसी एक पार्टी या एक नेता या किसी निर्वाचन शेत्र के एक ही उमीदवार को टारगेट करना ethical reporting की परम्परा के विरुद्ध है.
नियम २ ) अगर चुनाव अचार सहिंता के उलंघन पर स्टिंग करना है तो व्रहद जनहित में सभी प्रमुख पार्टी के उम्मेदवार/नेता को टारगेट करना चाहिए. किसी एक को चुनकर स्टिंग करने पर प्लांट/अजेंडा पत्रकारिता के आरोप लग सकते हैं.
नियम ३) चुनाव के वक्त किसी नेता/उम्मीदवार की कोई पुरानी खबर/विवाद को उठाना भी अजेंडा पत्रकरिता के आरोप को आमंत्रित कर सकती है और इससे चैनल/समाचार संगठन की साख पर असर आ सकता है.
नियम ४) अगर किसी ताज़ा घपले या भ्रस्टाचार का मामला किसी एक पार्टी या नेता के विरुद्ध सामने आता है तो आरोपी पार्टी के पूरी सफाई/जवाब के साथ खबर चालाई जाए और ये देखा जाए की मतदान के चार या पांच दिन पहले इसे ब्रेक करना सही होगा या बाद में ब्रेक किया जा सकता है .
नियम ५) कोई घटना या अपराध या मतदान के दिन चुनाव से जुडी कोई गंभीर गडबडी की खबर तथ्यों के साथ कभी भी चलायी जा सकती है .
इन नियमों और परम्पराओं को ताक पर रखकर अगर कोई खोजी पत्रकारिता …सच को बेनकाब करने का दावा करती है तो वो सत्य.. अर्ध सत्य भी हो सकता है. और वो खोजी पत्रकार …सुपारी पत्रकार भी हो सकते हैं. जी हाँ अंडरवर्ल्ड के सुपारी हत्यारों की तर्ज पर मीडिया के नये सुपारी किलर्स .