शुभ’मंगल’: पहला पड़ाव कामयाब, देश भर में खुशी

भारत ने मंगल अभियान के लिए अपना महात्वाकांक्षी मंगलयान आज लॉन्च कर दिया। और पहला पड़ाव कामयाबी के साथ्‍ा पूरा करते हुए वह पृथ्वी की कक्षा में भी पहुंच गया।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने मिशन को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) सी25 के जरिए श्री हरिकोटा से 2 बजकर 38 मिनट पर रवाना किया।

मिशन के 20 से 25 दिनों तक धरती की कक्षा में घूमने और फिर नौ महीने के सफर के बाद मंगलयान 24 सितंबर 2014 को मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करेगा।

वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक मंगल यान सफलतापूर्वक आगे कदम बढ़ा रहा है।

नामचीन वैज्ञानिक और शिक्षाविद यशपाल ने कहा, ‘हमने जो हासिल किया वह अतुलनीय है। वैज्ञानिकों ने वह हासिल किया जो वे चाहते हैं। यह मेरे लिए इसलिए बेहद खास है क्योंकि मैंने जीते जी इसे देखा है। उन्होंने मजकिया अंदाज में कहा कि अरे यार अब तो दूसरे ग्रह के लोगों से बात कराओ।’

इसरो के निदेशक डॉ. राधाकृष्‍णन ने इस अवसर पर अपनी पूरी टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा, ”मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि यह पीएसएलवी की 25वीं उड़ान है। मैं समस्त इसरो परिवार को बधाई देता हूं, जिन्होंने बेहद कम वक्‍त में यह मुमकिन कर दिखाया।”

इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री और पीएम पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने कहा, “हम सभी वैज्ञानिक साथियों को भाजपा की ओर से बधाई देते हैं। उनके सफल प्रयासों के कारण भारत अंतरिक्ष में भी काफी ऊंचाइयों तक पहुंच रहा है।”

माना जा रहा है कि उड़ान भरने के बाद रॉकेट को पृथ्वी की कक्षा में उपग्रह को छोड़ने में करीब 40 मिनट का समय लगेगा।

मंगलयान पर नजर रखने के लिए पोर्ट ब्लेयर, बंगलुरु के नजदीक बायलालू, ब्रुनेई और दक्षिणी प्रशांत महासागर में शिपिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया के पोत एससीआई नालंदा और एससीआई यमुना को केंद्र बनाया गया है।

ये मिशन अगर सफल रहता है तो भारत ऐसा करने वाला अमेरिका, रूस और यूरोप के बाद चौथा देश बन जाएगा।

यूरोपीय संघ की यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी, अमेरिकी एजेंसी नासा और रूस की रॉसकोसमॉस ऐसा करने में सफल हो चुकी है। अभी तक मंगल पर 51 मिशन भेजे गए हैं जिनमें से केवल 21 सफल हुए हैं। मिशन का खर्च 450 करोड़ रुपए है।

स्वदेशी स्तर पर तैयार पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) का नया वर्जन, एक्सटेंडेड रॉकेट के साथ मंगलयान को पृथ्वी के आखिरी छोर तक ले जाएगा।

इसके बाद सैटेलाइट के ‌थ्रस्टर छह छोटे फ्यूल बर्न वाली प्रक्रिया शुरू करेंगे, जो उसे और बाहरी परिधि में ले जाएगा। और आखिरकार गुलेल जैसी प्रक्रिया से इसे लाल ग्रह की ओर रवाना किया जाएगा।

सवाल उठता है कि इतना खर्च करने के बाद हमें हासिल क्या होगा? मंगलयान पर लगने वाले पांच सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण यह पता लगाएंगे कि मंगल पर मौसम की प्रक्रिया किस तरह काम करती है।

साथ ही वह इस बात की तफ्तीश भी करेंगे कि उस पानी का क्या हुआ, जो काफी पहले मंगल ग्रह पर बड़ी मात्रा में हुआ करता था।