शाहजहांपुर,-नाबालिग लड़कियों से दुष्कर्म के लिए आसाराम बापूतरह-तरह के हथकंडे अपनाते थे। इसके लिए धार्मिक कर्मकांड का भी सहारा लेते। रुपयों के ‘प्रसाद’ से आबरू का आकलन होता और हैसियत के मुताबिक ‘शिकार’ के परिजनों को रुपये सौंप दिए जाते। इस हिदायत के साथ कि दिए गए रुपये तिजोरी आदि में रखें, समृद्धि कदम चूमेगी। दरिद्रता दूर हो जाएगी। अनजान साधक आसाराम की चाल को समझ नहीं पाते और बापू का आशीर्वाद समझकर बेटी को दांव पर लगा बैठते।
आसाराम के एक पूर्व साधक ने बताया कि दुष्कर्म के आरोप में फंसे आसाराम बापू की करतूत में जितना साथ उनके गुर्गे देते थे, उससज् ज्यादा बेटियों के परिजनों को साधने की कोशिश की जाती। सत्संग के बहाने आसाराम अभिभावकों के सामने उनकी बेटियों की तारीफ कर एकांतवास के कथित अनुष्ठान की भूमिका तैयार करते थे। बेटियों के परिवार की हैसियत पर नजर रखी जाती। गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय परिवार होने पर उन्हें प्रसाद स्वरूप मोटी रकम दी जाती। यह कहकर इसे तिजोरी में संभालकर रखें। समृद्धि आएगी।
आसाराम के कृत्य का भंडा फोड़ने वाली छात्रा के पिता ने बताया कि अनुष्ठान के दौरान बेटियों के साथ मां-बाप भी पहुंचते थे लेकिन उन्हें आश्रम में टिकने नहीं दिया जाता था। कोई अनुमति मांगता भी था, उसे जबरन बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता। उन्होंने बताया, जिस दिन बापू की बुरी नजर उनकी बेटी पर पड़ी, वे जोधपुर आश्रम में ही थे। उन्हें भी घर भेजने के तमाम जतन आसाराम के गुर्गो ने किए लेकिन उनका मन नहीं माना। जिद करके बापू की कुटिया के बाहर ही बैठे रहे। उन्होंने दावा किया कि गुरुकुल की तमाम छात्राओं के साथ आसाराम ने दुष्कर्म किया है। च्च्चियों ने डर की वजह से आसाराम के कृत्यों को मां-बाप से नहीं बताया।
छात्रा के पिता ने भी स्वीकार किया कि आसाराम के आश्रम में आबरू की कीमत भी लगती। उस कीमत को प्रसाद का रूप दिया जाता था। उन्हें भी आसाराम ने घटना वाले दिन 500 रुपये का नोट दिया था तिजोरी में रखने के लिए। साथ ही कहा था-तू पहले से अमीर है, तुझे और क्या चाहिए।