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भूमि अधिग्रहण बिल को लोकसभा की हरी झंडी

खाद्य सुरक्षा बिल के बाद अब लोकसभा ने किसानों को उनकी जमीन के उचित मुआवजे का अधिकार दिलाने वाले विधेयक को भी मंजूरी दे दी है।

बृहस्पतिवार को लोकसभा में भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन विधेयक पेश किया गया। हालांकि तृणमूल कांग्रेस ने इस बिल का विरोध किया, जिसके बाद इस पर मतदान कराना पड़ा।

बिल के पक्ष में 216 और विरोध में 19 मत पड़े और बिल पास हो गया। राज्यसभा से यह बिल पास होने के बाद नया भूमि अर्जन कानून 119 वर्ष पुराने भूमि अधिग्रहण कानून की जगह लेगा।

हालांकि विभिन्न पार्टियों ने लोकसभा में इस विधेयक में बदलाव के लिए कई संशोधन पेश किए। लेकिन संशोधन प्रस्तावों को सदन की मंजूरी नहीं मिल सकी।

ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने विधेयक पर सांसदों की चिंताओं को नकारते हुए कहा कि नया कानून हर हाल में किसानों की जमीन के जबरन अधिग्रहण की इजाजत नहीं देता।

लेकिन यदि रक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सरकार उनकी भूमि का अधिग्रहण करेगी तो उन्हें उचित मुआवजा पाने का हक होगा।

इस बिल में किस तरह की भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा इसका अधिकार राज्यों को दिया गया है। साथ ही राज्यों को अपना भूमि अधिग्रहण कानून बनाने की भी छूट होगी। मगर राज्यों के कानून में मुआवजा और पुनर्वास किसी भी सूरत में केंद्रीय कानून से कम नहीं होगा।

इस तरह खाद्य सुरक्षा बिल के बाद लंबे अर्से से अटके भूमि अधिग्रहण बिल को लोकसभा से पारित कराकर यूपीए सरकार ने कांग्रेस के राजनीतिक एजेंडे के साथ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के उत्तर प्रदेश के किसानों से किए गए वादे पर अमल किया है।

यूपी में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विद्रोह की आवाज उठाने वाले किसानों से राहुल ने करीब ढाई साल पहले भट्टा पारसौल में कानून में बदलाव कराने का वादा किया था।

लोकसभा में बिल पर हुई बहस का जवाब देते हुए जयराम ने कहा कि दो वर्ष पूर्व लोकसभा में पेश किए गए भूमि अधिग्रहण बिल के मुकाबले मौजूदा भूमि अर्जन विधेयक में लगभग 158 छोटे बड़े संशोधन किए हैं। जिसमें 28 बड़े संशोधन हुए हैं।

इसमें 13 संशोधन स्थायी समिति और 13 संशोधन शरद पवार की अध्यक्षता वाली समिति और दो संशोधन विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की संस्तुति पर किए गए हैं।

उन्होंने कहा कि यह विधेयक पूरी तरह से किसानों की जमीन की रक्षा करने वाला है। उन्होंने विपक्ष की उन आशंकाओं को भी दरकिनार किया, जिनमें कहा गया था कि आकस्मिक कार्यों के नाम पर किसानों की बहुफसली जमीन का जबरन अधिग्रहण किया जा सकता है।

रमेश के मुताबिक कानून में न सिर्फ जमीन के उचित मुआवजे का प्रावधान किया गया है बल्कि भू स्वामियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन की पूरी व्यवस्था की गई है।

ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहण पर किसानों को बाज़ार भाव से चार गुना दाम मिलेंगे जबकि शहरी इलाकों में जमीन अधिग्रहण पर भू स्वामी को बाजार भाव से दोगुने दाम मिल सकेंगे।

इसके बाद जमीन का जबरन अधिग्रहण भी नहीं किया जा सकेगा। प्राइवेट कंपनियां अगर जमीन अधिग्रहीत करती हैं तो उन्हें वहां के 80 स्थानीय लोगों की रजामंदी जरूरी होगी।

फिलहाल देश में जमीन अधिग्रहण 1894 में बने कानून के तहत होता है। बहुफसली सिंचित भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। जमीन के मालिकों और ज़मीन पर आश्रितों के लिए एक विस्तृत पुनर्वास पैकेज की व्यवस्था की गई है।

इस कानून में अधिग्रहण के कारण जीविका खोने वालों को 12 महीने के लिए प्रति परिवार तीन हज़ार रुपये प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का प्रावधान है।

पचास हजार का पुनर्स्थापना भत्ता, प्रभावित परिवार को ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर में मकान, शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर ज़मीन पर बना बनाया मकान दिए जाने का प्रावधान भी इस कानून में किया गया है।

NCR Khabar News Desk

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