गुजरात के अहमदाबाद में हुआ इशरत जहां एनकाउंटर फर्जी था। इस मुठभेड़ के नौ साल बाद बुधवार को कोर्ट में दाखिल पहली चार्जशीट में सीबीआई ने यह दावा किया है। चार्जशीट के मुताबिक मुंबई की 19 वर्षीय इशरत और उसके तीन साथियों की अगवा कर सोची समझी साजिश के तहत हत्या की गई।
जांच एजेंसी ने चार्जशीट में कहा है कि उसे ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला है, जिससे पता चलता हो कि इशरत और उसके साथी गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी की हत्या करने के मिशन पर थे।
जांच एजेंसी ने 15 जून, 2004 की सुबह हुए इस फर्जी एनकाउंटर के लिए निलंबित डीआईजी डीजी वंजारा सहित गुजरात पुलिस के सात अधिकारियों को अपहरण और हत्या का आरोपी बनाया है। चार्जशीट में इस फर्जी मुठभेड़ को गुजरात पुलिस और सब्सिडियरी इंटेलीजेंस ब्यूरो (एसआईबी) की मिलीभगत का परिणाम बताया गया है।
सीबीआई की इस चार्जशीट को गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार को असहज करने वाला माना जा रहा है।
अहमदाबाद की विशेष सीबीआई अदालत में दायर चार्जशीट में विवादास्पद आईबी अधिकारी राजेंद्र कुमार का नाम आरोपी के तौर पर शामिल नहीं किया गया है।
चार्जशीट के मुताबिक राजेंद्र कुमार की इस फर्जी एनकाउंटर की साजिश में भूमिका की जांच चल रही है। इसमें इशरत और उसके साथियों के आतंकवादी होने या नहीं होने पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है।
इस पहली चार्जशीट में हत्या के पीछे के मकसद यानी मोटिव की चर्चा भी नहीं की गई है। साथ ही इसमें किसी राजनेता का नाम भी शामिल नहीं किया गया है।
खास बात यह है कि सीबीआई ने चार्जशीट में गुजरात पुलिस के इन अधिकारियों के साथ आईबी की राज्य इकाई एसआईबी की भूमिका पर गंभीर उंगली उठाई है। सीबीआई के मुताबिक एनकाउंटर की साजिश की जांच एक महीने के भीतर पूरी कर अतिरिक्त चार्जशीट दायर की जाएगी।
जांच के दायरे में राजेंद्र कुमार के अलावा आईबी के तीन अन्य अधिकारी भी हैं, जिनमें एमके सिन्हा, पी मित्तल और राजीव वानखेड़े का नाम शामिल है। सीबीआई के मुताबिक चार्जशीट करीब 40 गवाहों के बयानों, फोन कॉल्स के पुख्ता रिकार्ड और अन्य तकनीकी सबूतों के आधार पर तैयार की गई है।
सीबीआई ने साफ किया है कि इसके पीछे किसी तरह का कोई राजनीतिक मकसद नहीं है।
एसआईबी ने रखवाए हथियार
चार्जशीट में कहा गया है कि इशरत, जीशान जौहर, अमजद अली और जावेद शेख को आतंकवादी साबित करने के लिए उनकी लाशों के पास एके-57 जैसे हथियार रखे गए, जो उसे राजेंद्र कुमार की अगुवाई वाली एसआईबी ने ही मुहैया कराए थे।
पहले ही कर लिया था अगवा
सीबीआई के मुताबिक जीशान को 2004 के अप्रैल, अमजद को मई और इशरत व जावेद को 11 जून को अगवा कर लिया गया था। इन्हें अहमदाबाद के पास तीन फार्म हाउस में अलग अलग रखा गया।�
इशरत को मारने पर थे मतभेद
13 जून को डीआईजी वंजारा के दफ्तर में राजेंद्र कुमार, मामले के फरार आरोपी पीपी पांडे और वंजारा की मीटिंग हुई जिसमें यह तय किया गया कि इन्हें फर्जी एनकाउंटर में मार दिया जाए। हालांकि इशरत को मारने को लेकर इन अधिकारियों में मतभेद था।
कुछ अधिकारियों का मानना था कि इशरत को छोड़ दिया जाए। लेकिन कुछ अधिकारियों का मानना था कि चूंकि इशरत इस मामले की चश्मदीद गवाह है लिहाजा उसे जिंदा छोड़ना ठीक नहीं होगा।
हालांकि चार्जशीट में यह साफ नहीं है कि कौन से अधिकारी इशरत को मारने के पक्ष में थे और कौन विरोध में।
चार्जशीट में इनके हैं नाम
सीबीआई के मुताबिक यह पहली चार्जशीट सिर्फ फर्जी एनकाउंटर और इसमें शामिल अधिकारियों पर केंद्रित है। इसमें गुजरात पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों डीजी वंजारा, जीएल सिंघल, पीपी पांडे, तरुण बरोत, जेजी परमार, एनके अमीन और अनाजू चौधरी को मुख्य आरोपी बनाया गया है।
इनमें पीपी पांडे भगोड़ा घोषित हैं और सिंघल जमानत पर बाहर हैं। बाकी आरोपी न्यायिक हिरासत में हैं। इनमें मोहन कलवारे नाम के एक और आरोपी हैं जिनकी मौत हो चुकी है।
इशरत आतंकी थी या नहीं
सीबीआई ने चार्जशीट में मुंबई के पास मुंब्रा की रहने वाली इशरत जहां और उसके साथियों के आतंकी होने या नहीं होने पर कुछ भी नहीं कहा है।
सीबीआई अधिकारियों की सफाई यह है कि हाईकोर्ट ने उसे सिर्फ यह जांच करने का आदेश दिया है कि मुठभेड़ फर्जी थी या असली। इस दायरे से आगे जाकर जांच करने का अधिकार उसके पास नहीं है।
मालूम हो कि मुठभेड़ के बाद गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि मारे गए चारों लोग लश्कर-ए-ताइबा के आतंकवादी थे।