उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में आरक्षण के नए नियम लागू करने से नाराज छात्रों ने सोमवार को जमकर उपद्रव किया। नाराज छात्रों ने सिविल लाइंस में जगह-जगह तोड़फोड़ की।
साथ ही कई जगहों पर आगजनी की भी कोशिश हुई। आयोग कार्यालय के सामने जमा हुए छात्रों ने पुलिस पर भी पथराव किया। पुलिस ने छात्रों को वहां से खदेड़ा तो हंगामा शुरू हो गया।
सात से आठ हजार छात्रों का हुजूम सिविल लाइंस की तरफ बढ़ गया और भारी उपद्रव किया। यहां उग्र छात्रों ने सिविल लाइंस बस अड्डे में घुसकर रोडवेज की करीब दर्जन भर बसों को तोड़ डाला।
सड़क पर खड़ी दो दर्जन कारों, बाइकों को भी निशाना बनाया। लाठी-डंडा और पत्थर लेकर सड़क पर दौड़ लगा रहे उपद्रवियों ने पीवीआर, होटल, शोरूमों पर भी पथराव किया। सपा का झंडा लगी गाड़ियों पर जमकर गुस्सा निकाला।
रास्ते में जिस गाड़ी पर सपा का झंडा दिखा, उस पर पत्थर फेंके या डंडे से तोड़ डाला। उपद्रवियों के निशाने पर पुलिस की जीप, चीता और चेतक मोबाइल भी रहे। रोडवेज बसों और सड़क पर चल रही गाड़ियों पर पथराव से यात्रियों में अफरातफरी मच गई।
सिविल लाइंस में लगभग दो घंटे भगदड़ सी स्थिति रही। तोड़फोड़, पथराव में छात्रों समेत दर्जनों राहगीर जख्मी हो गए। पुलिस ने बलवाई छात्रों पर लाठी चलाकर उन्हें खदेड़ा। बवाल की वजह से सिविल लाइंस बाजार बंद हो गया।
हंगामे के दौरान पत्थर लगने से आईजी आलोक शर्मा समेत कई अधिकारी और पुलिसकर्मी जख्मी हो गए। तीन घंटे बवाल के बाद पुलिस किसी तरह छात्रों को नियंत्रित कर सकी।
‘तोड़फोड़, पथराव करने वालों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जा रहा है। शहर में बवाल कर माहौल बिगाड़ने वालों पर कड़ी कार्रवाई होगी। शांतिपूर्ण प्रदर्शन की जगह उपद्रव और बवाल किया गया। इसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वीडियो फुटेज और फोटो से उपद्रव करने वालों की पहचान की जा रही है।’–आलोक शर्मा, आईजी
क्या है विवाद
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के आधार पर राज्य सरकार ने 1994 में लोक सेवा आयोग में चयन के लिए एक अधिनियम तैयार किया। अधिनियम में किसी भी परीक्षा के अंतिम स्टेज में आरक्षण का प्रावधान किया गया। उत्तरप्रदेश लोक सेवा आयोग सहित संघ लोक सेवा आयोग और अन्य राज्यों के लोक सेवा आयोग भी इसी नियम का पालन करते हैं।
बवाल की जड़ है उत्तर प्रदेश लोक सेवा के सदस्य गुरुदर्शन सिंह का एक प्रस्ताव जो 27 मई को आयोग के अध्यक्ष के सामने रखा गया। उन्होंने आरक्षण के प्रावधानों की जो व्याख्या की उसके मुताबिक, परीक्षा के हर चरण में आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए।
आयोग के सदस्य के तर्क पर विधिक राय बिना और राज्यपाल की अनुमति के बगैर इस प्रस्ताव को उसी दिन मंजूरी दे दी गई। इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद आयोग की ओर से चार जुलाई को घोषित पीसीएस मुख्य परीक्षा 2011 के परिणाम में इस नियम को लागू भी कर दिया गया।
नया नियम लागू होने के बाद जारी पहले परिणाम में कुल सफल लगभग 1300 परीक्षार्थियों में सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी लगभग 250 रहे। परीक्षार्थियों ने नए नियमों का विरोध किया, बात करने की कोशिश की, सुनवाई न होने पर विरोध में उतर आए।
क्या है नियम
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के मुताबिक आरक्षण का लाभ किसी भी परीक्षा के अंतिम परिणाम में ही दिया जाना चाहिए। कुल रिक्त सीटों के मुकाबले आरक्षित सीटें तय की जाती हैं और उसी के आधार पर परिणाम में कोटा तय होता है।
आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी यदि सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के समान या अधिक अंक पाते हैं तो उनका चयन आरक्षित कोटे के बजाय सामान्य की सीटों पर ही होता है। आरक्षित कोटे की सीटें न भरने की स्थिति में उन पर बैकलाग के भरने का नियम है।
हाईकोर्ट में 22 जुलाई को होगी सुनवाई
पीसीएस परीक्षा 2011 में लोक सेवा आयोग द्वारा लागू नए आरक्षण नियम पर हाईकोर्ट ने आयोग और प्रदेश सरकार से एक सप्ताह में जवाब मांगा है।
नई व्यवस्था के विरोध में सुधीर कुमार सिंह और अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। इस पर सोमवार को न्यायमूर्ति लक्ष्मीकांत महापात्रा और न्यायमूर्ति राकेश श्रीवास्तव की खंडपीठ ने सुनवाई की। खंडपीठ ने प्रदेश सरकार और लोकसेवा आयोग से एक सप्ताह में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
22 जुलाई को इस मसले पर फिर सुनवाई होगी। याचिका में कहा गया है कि वर्ष 1994 में लोक सेवा आयोग ने प्रावधान किया कि किसी परीक्षा के अंतिम चरण में आरक्षण का लाभ दिया जाएगा।
इसके बाद पचास फीसदी सीटें जनरल की मेरिट से भरी जाएंगी और पचास फीसदी आरक्षण की मेरिट से। मगर 27 मई को आयोग के एक सदस्य ने प्रस्ताव रखा कि प्रारंभिक परीक्षा से ही आरक्षण नहीं लागू करने का अर्थ होगा कि पचास प्रतिशत जनरल की सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित कर देना।
इस प्रस्ताव को उसी दिन स्वीकार कर लागू कर दिया गया। परीक्षा के दौरान हर स्तर पर आरक्षण लागू करके एक जाति विशेष के लोगों को अनुचित लाभ देने की कोशिश की जा रही है।
यह सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों का सरकारी सेवा में अवसर समाप्त कर देने की साजिश है। याची का कहना है कि लोक सेवा आयोग ने संवैधानिक प्रावधानों की गलत तरीके से व्याख्या की है।