अक्सर मैं भिखारियों को पैसा नहीं देता , हमारे देश में यह अब संगठित व्यवसाय बन चुका है , अतः मैं इस उद्योग की कोई मदद नहीं करता और चिल्लर गाड़ी में नहीं रखता ! मगर यदि मुझे कोई हिजड़ा, चौराहे पर भीख मांगता दिख जाये तो मैं उसे भीख न देकर, १०-५० रुपये तक की मदद हमेशा करने की कोशिश करता हूँ !
परमपिता परमात्मा से भी उपेक्षित, शारीरिक विकलांगता से ग्रसित यह इंसान ,पुरुष और महिला वर्ग में न होने के कारण, जानवरों से भी बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर है ! शायद यही एक वर्ग ऐसा है जिसे परिवार से लेकर, बाज़ार तक भी कहीं कार्य नहीं दिया जाता ! पूरा समाज इन इंसानों की जो मज़ाक उड़ाता है वैसा जानवरों के साथ भी नहीं होता ! क्या आपने कभी सोचा हैं कि …..
- इन्हें हम घर में नहीं घुसने देते और इनसे बिना दोष, नफरत करते हैं ! भिखारियों को खाना देते समय तक , हम इन्हें खिलाने की कल्पना तक नहीं करते ! समाज में गरीबों और भूखों को खाना खिलाने में , पुण्य मिलने की बात कही गयी है ! मगर हिजड़ों को खाना खिलाते, आपने किसी को नहीं देखा होगा !
- इन्हें कोई मजदूरी का कार्य नहीं मिलता अतः आपने किसी दुकान ,माल में भी इन इंसानों को काम करते नहीं देखा होगा !
- शरीर के अस्वस्थ होने की स्थिति में, इनका इलाज़ कौन करेगा ? समाज में हिकारत की द्रष्टि से देखे जाते यह लोग , बीमारी की स्थिति में अच्छे प्राइवेट डाक्टर की सुविधा से लगभग वंचित हैं ?
- किसी इंस्टीटयूशन में पढाई हेतु दाखिला इनके लिए एक स्वप्न ही है ? अच्छे परिवार के बच्चों के मध्य यह मानसिक विकलांग बच्चे, किसी कालेज में शिक्षा ले सकें, आधुनिक भारत में अभी यह केवल एक कल्पना मात्र ही है !
- किसी मंदिर में इनके लिए विधिवत पूजा का कोई प्रावधान नहीं है ! अतः अक्सर इनकी ईश आराधना एवं पूजा कार्य, अपने घर में ही सीमित होती है शायद इसीलिए इनकी प्रथाएं एवं अनुष्ठान लगभग गोपनीय होते हैं !
- अपने खुद के परिवार में इनका स्थान बेहद दयनीय है ! अक्सर परिवार के लोग, यह बताते हुए शर्मिंदा महसूस करते हैं कि यह उनके परिवार में पैदा हुए हैं ! अतः जन्म से लेकर म्रत्यु तक अपने परिवार, समाज से लगभग कटे रहते हैं !
- सामाजिक स्थल जैसे पार्क,रेस्टोरेंट, कम्यूनिटी सेंटर, स्टेडियम, आदि में, आम व्यक्तियों के साथ इन्हें हिस्सा नहीं लेने दिया जाता ? सामान्य जन के लिए बनाए पब्लिक स्वीमिंग पूल में कोई हिजड़ा स्नान करने की सोंच ही नहीं सकता !
इन अभागों का पूरा जीवन, अपने लिए रोटी और बुढ़ापे के इंतजाम करने में बर्बाद हो जाता है ! पहले किसी जमाने में नवाबों,सुल्तानों ने इन्हें सिर्फ हरम की चौकीदारी के लिए ही योग्य पाया था या फिर ये लोग सिर्फ नाच गाने कर अपना पेट पालते थे ! आज समय के साथ, इनके यह दोनों काम भी ख़त्म हो गए ! अब जब दूसरों की खुशियों , शादी विवाह जैसे मौकों पर, अपना पारंपरिक कार्य नाच गाने का आयोजन करने का प्रयत्न करते हैं तो हम लोगों को लगता है कि धन उगाहने के लिए, यह अनचाहे मेहमान यहाँ क्यों कर आगये !
अधिकतर ऐसे मौकों पर यह लोग धन की मांग करने के लिए घेरा बंदी करते हैं ! इनकी दलील रहती है कि और किसी मौकों पर, उन्हें किसी प्रकार का धन नहीं दिया जाता अतः शादी अथवा बच्चा पैदा होने की ख़ुशी में ही दानस्वरूप उचित पैसा मिलना ही चाहिए जिससे कि वे अंत समय तक के लिए, कुछ आवश्यक धन बचा सकें ! और अक्सर इसी कारण लोग इन्हें और भी हिकारत की नज़र से देखते हैं !
अफ़सोस है कि सरकार ने भी इनके पुनर्वासन के लिए अभी तक समुचित ध्यान नहीं दिया है !
कृपया बताएं , यह रोटी कहाँ से खाएं ??
-सतीश सक्सेना ()