नोएडा और लखनऊ में बने स्मारकों के निर्माण की लोकायुक्त जांच लगभग पूरी हो गई है। इसमें बसपा सरकार के दो पूर्व मंत्री, तीन तत्कालीन विधायक, लोक निर्माण, राजकीय निर्माण निगम के 72 इंजीनियर और कई निजी कंपनियों की गर्दन फंसनी तय मानी जा रही है।
बसपा सरकार में दलित और पिछड़े वर्ग के महापुरुषों की याद में लखनऊ और नोएडा में स्मारक व पार्क बनाए गए थे। जिनपर तकरीबन 43 अरब रुपये खर्च हुए थे। सपा सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसमें घोटाले होने की आशंका में लोकायुक्त को जांच सौंपी थी। जांच में मदद के लिए आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा (ईओडब्ल्यू) को उनके आधीन किया गया था। जिसने 15 अप्रैल को अपनी रिपोर्ट लोकायुक्त को सौंपी थी। इसके अलावा लोकायुक्त कार्यालय ने भी बड़ी संख्या में लोगों के बयान दर्ज किए थे।
अब दोनों रिपोर्टो के आधार पर जांच का निष्कर्ष निकालने का कार्य भी पूरा हो गया है। इसमें तत्कालीन बसपा सरकार के दो मंत्रियों, तीन तत्कालीन विधायकों, 72 इंजीनियरों, कई निजी कंपनियों को घोटाले के लिए जिम्मेदार माना गया है। स्मारकों का ठेका लेने वाली कई कंपनियों इंजीनियरों के नातेदारों की थीं। जबकि कई कंपनियों ने बिना खनन पट्टे के ही पत्थरों की आपूर्ति कर डाली।
लखनऊ विकास प्राधिकरण के एक बहुचर्चित इंजीनियर की भी इसमें संलिप्तता पाई गई है। जल्दी ही जांच रिपोर्ट सरकार को भेजी जाएगी। लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने स्वीकार किया है कि स्मारक घोटाले की जांच लगभग पूरी हो गई है। जल्दी ही शासन को रिपोर्ट भेजी जाएगी।
इन पर बिना खनन पट्टे-पत्थर बेंचने का आरोप :
एम,एम इंटरप्राइजेज, मेसर्स मरून इंजीनियरिंग, वैभव स्टोंस, राज स्टोंस
अधिकारियों के नातेदारों का फर्म :
अरुण इंटर प्राइजेज, एंकर कांस्ट्रक्शन, ग्लोबल इंटर प्राइजेज, गायत्री स्टोनेक्स, एसएस संस्कृति
निजी क्षेत्र के लोग जिनकी घोटाले में संलिप्तता के साक्ष्य :
राकेश कुमार, राजेश कुमार, जफर उमर, रामशंकर, राजेश दुबे, मिथलेश, जेएन सिंह, पीयूष कुमार, राजेश कुमार, लाल बहादुर, पन्नालाल, नित्या प्रसाद, मंगला द्विवेदी, मुन्नी देवी, च्च्चूलाल समेत कई अन्य।