काशी की दुर्गा पूजा में टूटी 49 साल पुरानी परंपरा

मिनी बंगाल के रूप में मशहूर काशी की दुर्गा पूजा में अहम स्थान रखने वाली सार्वजनिक दुर्गोत्सव समिति टाउनहाल की 49 वर्षों की परंपरा मंगलवार को टूट गई। दुर्गोत्सव समिति ने प्रतिमा की जगह पहली बार कलश की स्थापना की। कलश पूजन के साथ नौ दिनी अनुष्ठान शुरू कर दिया गया।
समिति के अध्यक्ष राम अवतार पांडेय ने बताया कि गंगा में विसर्जन को लेकर उपजे विवाद के चलते ऐसा किया गया। प्रशासन की जिद पर मां की प्रतिमा तालाबों में नहीं प्रवाहित की जा सकती। शारदीय नवरात्र की प्रमुख पूजा समितियों में से एक सार्वजनिक दुर्गोत्सव की शुरुआत 1967 में की गई थी।
गंगा में मूर्ति विसर्जन को लेकर प्रशासन और पूजा समितियों के बीच टकराव का असर नवरात्र के पहले ही दिन दिखने लगा। टाउनहाल में प्रतिमा की जगह विधिविधान से कलश की स्थापना कर पूजा आरंभ हुई।
आचार्य रमेश चंद्र मिश्र ने मंत्रोच्चार के साथ कलश की स्थापना कराई। कार्यकारी अध्यक्ष विजय सिंह, महामंत्री बैकुंठ नाथ मिश्र समेत अन्य पदाधिकारियों ने मां से मंगल की कामना की। इस पंडाल में प्रतिष्ठापित करने के लिए प्रतिमा का निर्माण हो चुका था लेकिन गंगा में विसर्जन के सवाल पर राहत न मिलने की वजह से यहां कलश स्थापित किया गया।
मंच तो बनाया गया है लेकिन जहां मूर्ति स्थापित होती थी, वह स्थान खाली छोड़ दिया गया है। कलश के दर्शन के लिए शाम को महिलाएं-बच्चे टाउनहाल पहुंचते रहे। शाम को भगवती की महिमा पर राममूर्ति द्विवेदी ने प्रवचन किया।
‘मां दुर्गा की मूर्ति हम तालाबों में नहीं फेंक सकते। गंगा में प्रतिमा विसर्जन की परंपरा है लेकिन प्रशासन मूर्तियों को नहीं ले जाने दे रहा है। ऐसे में हमारे पंडाल में कलश की स्थापना कर पूजा की जा रही है।’
— राम अवतार पांडेय, अध्यक्ष, सार्वजनिक दुर्गोत्सव समिति, टाउनहॉल
केंद्रीय पूजा समिति के संयोजक महंत बालक दास ने मंगलवार की शाम काशी की पूजा समितियों से विसर्जन मसले पर एकजुटता बनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि अभी हमें कोर्ट से राहत मिलने का इंतजार है।
नवरात्र शुरू होने के बाद भी अभी तक इस दिशा में सार्थक सफलता न मिलने पर उन्होंने कहा कि अभी धैर्य रखने की जरूरत है। गंगा में विसर्जन की अगर अनुमति नहीं मिलती है तब पंडालों में कलश स्थापना कर समितियां अपना संकल्प पूरा करें, इसलिए कि तालाबों-गड्ढों में मां की प्रतिमा ले जाने का कोई औचित्य नहीं है। गंगा निर्मलीकरण के सवाल पर तो हम सरकार के साथ हैं लेकिन हम अपनी परंपराओं के पालन के लिए भी संकल्पित हैं।