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मोहन भागवत से बेहतर केजरीवाल

दिल्ली मे पानी और बिजली के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल जब अनशन कर रहे थे। तब केजरीवाल के अनशन से मुंह फ़ेर चुकी भारतीय मीडिया मोदी और राहुल मे से कौन बहस पर जुटी हुई थी। यह बहस  जिस मध्यमवर्ग वोट बैंक से मुखातिब थी उसकी सोच का बेहतर आईना सोशल मीडिया उस समय दो तरह की विचारधाराओ के बीच युद्ध मे मुलव्वज था। यह युद्ध था केजरीवाल के अनशन का मखौल उड़ाने वाले हिंदुत्ववादी धड़े और केजरीवाल समर्थको के बीच। अरविंद केजरी वाल को खुजलीवाल से लेकर कांग्रेस का एजेंट, जिंदल का चमचा करार देनी वाली पोस्ट हर एक समूह में नुमाया हो रही थी। केजरीवाल के समर्थको और “आप” पार्टी के कार्यकर्ताओ को प्रतिदिन भाषा विशेष से संबोधित किया जा रहा था। सवाल यह नही था कि केजरीवाल का आंदोलन कारगर है या नही। सवाल यह भी नही था कि बिजली के बिल कम किये जा सकते है या नही। बिना मुद्दे और विचारधार पर चर्चा किये केजरीवाल को अपमानित करने का सतत अभियान जारी था।

असहिष्णुता भारतीय राजनीती और आम जनता के लिये कोई नया विशॆषण नहीं है। अमूमन दक्षिण एशिया के लोग भावुक होते है और जिस विचारधारा या नेता का समर्थन करते है उसके खिलाफ़ बात सुन नही सकते और विरोधियो की अच्छी बातो का सम्मान करना भी स्वभाव मे शामिल नही होता।  नरेन्द्र मोदी भी इसी तर्ज पर सतत अतिरेक पूर्ण आलोचना के शिकार होते रहते है। लेकिन विरोधी दल के समर्थको के लिये अपशब्दो का प्रयोग एक असमान्य व्यहवार है और इसे फ़ासिस्ट विचारधारा की विशेषता माना जाता है। भारत की सभ्यता अपनी तहजीब के लिये जानी जाती रही है। यहा हिंदुत्व, हिंदुधर्म के गौरव, संस्कृती संस्कार का ठेकेदार होने का दंभ भरने वालो का ऐसा व्यहवार निश्चित ही अनपेक्षित है। भाजपा अब एक राजनैतिक दल के रूप मे कांग्रेस की ही तरह डिस्क्रेडिट हो चुकी है। सोशल मीडिया में उसको मिलने वाला समर्थन दो तरह का है। एक नरेन्द्र मोदी के वे समर्थक है जो विकास, सुशासन और ईमानदारी के कारण मोदी के मुरीद है। दूसरे हिंदुत्व की कट्टरवादी विचारधारा के अनुयायी संघ को आदर्श मानने वाले समर्थक। यही कट्टरवादी धड़ा अरविंद केजरीवाल के विरूद्ध अभियान छेड़े हुये था। अभियान का मकसद साफ़ था सोशल मीडिया मे केजरीवाल की छवि धूमिल करना। कारण था केजरीवाल द्वारा दिल्ली चुनाव में भाजपा को नुकसान पहुंचने का भय।

किसी भी दल से न जुड़े हुये भारतीय के तौर पर मुझे इस बात से कोई परेशानी नही है कि चुनाव कौन जीतता है। हिंदुत्ववादी समूह द्वारा केजरीवाल का विरोध भी मेरे लिये किसी परेशानी का सबब नही है। लेकिन सवाल यह है कि केजरीवाल उन मुद्दो पर संघर्ष कर रहे है जो आज आम भारतीय के सामने मुह बाये खड़ी समस्याओ से संबंद्धित है। हिंदुत्व से हमारा पेट तो भरना नही है। बिजली की दरो पर भाजपा के घड़ियाली आंसू की असलियत तो सबके सामने है। अगर श्री मोहन भागवत के सिद्धांतो को देश भक्ती मानने वालो को किसी दूसरे के आंदोलन से दिक्कत है तो श्री भागवत हमारी समस्याओ का समाधान करें। फ़िर उनका हिंदुत्व सर आंखो पर। ये कैसा हिंदुत्व है जो हमारे पसीने की कीमत पर ऐश करे भ्रष्टाचार को रोकने मे नाकाम है। श्री भागवत के सिद्धांतो पर वोट चाहिये तो उनके संगठन की क्षत्रक्षाया में चल रही राज्य सरकारो मे व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने की अपेक्षा भी हम उन्ही से करेंगे। लेकिन हम देख रहे है कि भागवत जी के भ्रष्टाचार के विरूद्ध उपाय गाय पालने से चरित्र निर्माण योजना पर आधारित है।  भाजपा के चरित्रवान नेताओ द्वारा  “चार काम हम  उनके करते है  चार काम वो  हमारे  करते है” के सिद्धांत पर गमन भी किसी से छुपा हुआ नही है। ऐसे मे एक आम भारतीय के लिये मोहन भागवत से अरविंद केजरीवाल लाख गुना बेहतर शख्स है। बाकि नरेन्द्र मोदी और भाजपा  के लिये समर्थन मांगना कोई गलत बात नही है। मै खुद भी आज नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहता हूं। लेकिन  सभ्यता का तकाजा यह बताता है कि अपने दल या प्रत्याशी के लिये वोट मांगना हो तो उनकी खूबिया और विशेषताये जनता के बीच गिनाई जाये। घटिया भाषा, अपशब्दो का प्रयोग किसी चाल चेहरा चरित्र वाले सुसंस्कृत, देशभक्त, हिंदु धर्मरक्षक को शोभा नही देता। पप्पू और फ़ेंकू जैसे विचार युद्ध किसी भी प्रगतिशील समाज की निशानी नही है। और ना ही इस तरह की बहस हमारे नेताओ पर दबाव डाल उन्हे सही रास्ते पर चलने के लिये मजबूर कर सकती है।

अरविंद केजरीवाल भारत की राजनीती मे एक नये चेहरे है। राष्ट्रीय राजनीती में कदम जमाने के लिये उन्हे अभी बहुत समय लगने वाला है। लेकिन वे एक ऐसा फ़ैक्टर जरूर बन गये है जो मुख्यधारा के राजनीतिक दलो को अपने मे सुधार लाने के लिये मजबूर कर सकते है। उनका समर्थन भले न किया जाये लेकिन उन्हे अपमानित करने का कोई कारण मौजूद नही है।

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