उत्तर प्रदेश में सहायक अध्यापकों की भर्ती पर फिलहाल रोक लगी रहेगी। सहायक अध्यापकों की भर्ती टीईटी मेरिट पर होगी या शैक्षिक गुणांक पर, इस मामले की सुनवाई की जिम्मेदारी अब तीन जजों की फुल बेंच को सौंप दी गई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई कर रही खंडपीठ ने मंगलवार को वैधानिक दिक्कतों को ध्यान में रखकर, इसे फुल बेंच को भेजने का निर्णय लिया।
गौरतलब है कि बीएड अभ्यर्थियों के एक मामले में सुनाए गए खंडपीठ के आदेश की सुनवाई की जिम्मेदारी भी इसी बेंच के पास है। इस प्रकरण को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष भेज दिया गया है।
मंगलवार को सहायक अध्यापकों की भर्ती के मामले में सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति सुशील हरकौली और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र की खंडपीठ को अवगत कराया गया कि बीएड अभ्यर्थियों से संबंधित प्रभाकर सिंह केस में दिए खंडपीठ के फैसले को स्पष्टीकरण के लिए फुल बेंच को रैफर कर दिया है।
प्रभाकर सिंह केस में खंडपीठ ने बीएड अभ्यर्थियों को बिना टीईटी उत्तीर्ण किए सहायक अध्यापक भर्ती प्रक्रिया में शामिल करने का निर्देश दिया था। कोर्ट का कहना था कि यदि इस स्तर पर मौजूदा याचिका पर कोई आदेश दिया जाता है और वह फुल बेंच के निर्णय, जो कि अभी आना बाकी है, से असंगत होता है तो वैधानिक समस्या खड़ी हो सकती है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस स्थिति में यदि दोनों मामले एक साथ सुने जाएं तो बेहतर होगा।
टीईटी की गड़बड़ी की फिर शुरु हुई जांच
टीईटी-2011 में धांधली में कुछ और अफसरों पर गाज गिर सकती है। इस मामले की एक बार फिर विभागीय जांच कराने की तैयारी हो रही है। इसमें यह पता लगाया जाएगा कि संजय मोहन के साथ धांधली में और कौन-कौन दोषी है।
हाल ही में तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा परिषद की सचिव प्रभा त्रिपाठी से इस बाबत स्पष्टीकरण भी मांगा गया था। उन्होंने स्पष्टीकरण का जवाब तो दे दिया है, लेकिन उच्चाधिकारी उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हैं। विभागीय सूत्रों के मुताबिक, उनके खिलाफ कभी भी कार्रवाई की जा सकती है।
गौरतलब है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद शिक्षक बनने के लिए टीईटी पास होना अनिवार्य कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश में नवंबर 2011 में टीईटी आयोजित कराई गई। इसे कराने में तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा परिषद के निदेशक संजय मोहन और सचिव प्रभा त्रिपाठी की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
बाद में गड़बड़ी के आरोप में संजय मोहन को गिरफ्तार कर लिया गया।