भारत

IAS-IPS बनने के लिए इंग्लिश हुई जरूरी, विपक्ष ने आंखें तरेरीं

नई दिल्ली। यूपीएससी परीक्षा में हुए बदलाव ने सियासी हंगामा खड़ा कर दिया है। परीक्षा प्रणाली में हुई ताजा तब्दीली के मुताबिक अब अंग्रेजी भाषा की परीक्षा देना अनिवार्य होगा जिसके नंबर मेरिट में भी जुड़ेंगे। पहले अंग्रेजी के साथ-साथ किसी एक भारतीय भाषा की परीक्षा में न्यूनतम अंक पाना भी अनिवार्य था लेकिन इसके नंबर मेरिट में नहीं जुड़ते थे। शिवसेना ने इस फैसले को मराठी के खिलाफ बताते हुए आंदोलन छेड़ दिया है। वहीं बाकी विपक्ष भी सरकार के इस फैसले का पुरजोर विरोध कर रहा है।

यूपीएससी की परीक्षा में पास होने वाले ही आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और आईआरएस वगैरह बनकर इस देश का प्रशासन संभालते हैं। लेकिन आयोग की परीक्षा पद्धति में बीस साल बाद कुछ ऐसे परिवर्तन हुए हैं जिससे राजनीतिक माहौल गरमा गया है। शिवसेना ने खासतौर पर मराठी की उपेक्षा का मुद्दा उठाते हुए सड़क से लेकर संसद तक का मसला बना दिया है। उसने चेताया है कि अगर मराठी को वैकल्पिक विषय के रूप में मान्यता नहीं दी गई तो वो महाराष्ट्र में आईएएस की परीक्षा होने ही नहीं देगी। गुरुवार को शिवसेना ने राज्यसभा में इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया।

परीक्षा पद्धति में हुए परिवर्तनों को प्रधानमंत्री ने हाल ही में मंजूरी दी है। इसके बाद तमाम बदलावों से जुड़ी अधिसूचना जारी हुई जिसके आधार पर 2013 की परीक्षा होगी। इसके मुताबिक अब अंग्रेजी की परीक्षा अनिवार्य होगी। अंग्रेजी परीक्षा में मिलने वाले अंक मेरिट में भी जोड़े जाएंगे। इसके अलावा किसी भाषा के साहित्य को बतौर वैकल्पिक विषय वही लोग चुन सकेंगे, जिन्होंने बीए में वो विषय पढ़ा होगा। पुराने पाठ्यक्रम में अंग्रेजी के साथ-साथ एक भारतीय भाषा में न्यूनतम अंक पाना ही जरूरी था। इन परीक्षाओं के नंबर मेरिट में नहीं जुड़ते थे।

विपक्ष इसे जनविरोधी फैसला बता रहा है। उसने चेताया है कि भारतीय भाषाओं को उपेक्षित करने का खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ेगा। लेकिन सरकार इस आरोप को खारिज कर रही है कि उसका इरादा भारतीय भाषाओं की उपेक्षा का है।

गौरतलब है कि परीक्षा प्रणाली में बदलाव का फैसला विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर अरुण एस निगवेकर के नेतृत्व में गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर किया गया है। लेकिन शिवसेना ने जिस तरह मराठी की उपेक्षा का सवाल उठाया है, वो सवाल दूसरी भाषाओं से जुड़े लोग भी कर सकते हैं।

जानकारों का मानना है कि इस फैसले से अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल-कॉलेजों से निकले लोगों को फायदा होगा जबकि भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा पाने वालों को नुकसान होगा। दलित, पिछड़े समाज को खासतौर पर नुकसान होगा। ये अभिजात्य वर्ग का फैसला है जो प्रशासन को अपनी मुट्ठी में बनाए रखना चाहता है।

NCR Khabar News Desk

एनसीआर खबर.कॉम दिल्ली एनसीआर का प्रतिष्ठित और नं.1 हिंदी समाचार वेब साइट है। एनसीआर खबर.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय,सुझाव और ख़बरें हमें mynews@ncrkhabar.com पर भेज सकते हैं या 09654531723 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं

Related Articles

Back to top button