यूएनएचआरसी ने श्रीलंका में मानवाधिकारों के उल्लंघन के संदर्भ में लाए गए अमेरिकी समर्थित प्रस्ताव को पारित कर दिया है.
भारत सहित 25 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि 47 सदस्यीय परिषद में 13 देशों ने इसका विरोध किया.
प्रस्ताव के विपक्ष में मतदान करने वाले देशों में पाकिस्तान भी शामिल था. आठ देश मतदान से अनुपस्थित रहे. इस प्रस्ताव को लेकर ही भारत में राजनीतिक गहमागमी बढ़ गई है. द्रमुक ने इसी मुद्दे पर केंद्र की संप्रग सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
यूएनएचआरसी के एक सदस्य देश गैबन के मताधिकार के मुद्दे को लेकर विवाद रहा जिस कारण वह मतदान में हिस्सा नहीं ले सका.
इस प्रस्ताव को काफी हल्का किया गया है. लिखित संशोधनों के जरिए भारत ने नयी विषय वस्तु को शामिल करवाया है. इसमें भारत ने आह्वान किया है कि मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों और श्रीलंका की ओर से दूसरी जवादेहियों की स्वीकार्यकता के संदर्भ में स्वतंत्र एवं विश्वसनीय जांच कराई जाए.
भारत ने आह्वान किया है कि मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों और श्रीलंका की ओर से दूसरी जवादेहियों की स्वीकार्यकता के संदर्भ में स्वतंत्र एवं विश्वसनीय जांच कराई जाए.
श्रीलंका में सुलह और जवाबदेही को बढ़ावा देने से जुड़े प्रस्ताव को लेकर भारत के स्थानीय प्रतिनिधि दिलीप सिन्हा ने कहा, ‘‘हमने मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों और नागरिकों के मारे जाने को लेकर स्वतंत्र एवं विसनीय जांच का अपना आह्वान दोहराया है.’’
सिन्हा ने कहा, ‘‘हमने 2009 में मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका की ओर से किए गए वादे को पूरा करने में हुई अपर्याप्त प्रगति का उल्लेख किया है. आगे, हम श्रीलंका का आह्वान करते हैं कि वह अपनी सार्वजनिक प्रतिबद्धताओं पर आगे बढ़े. इनमें 13वें संशोधन के पूर्ण कार्यान्वयन के जरिए राजनीतिक शक्ति के विकेंद्रीकरण की बात भी शामिल है.’’
बहरहाल, सूत्रों ने बताया कि जब भारत ने लिखित संशोधन पर जोर दिया तो प्रस्ताव के प्रायोजकों ने कहा कि इसे अधिक से अधिक व्यापक बनाने का प्रयास था और जटिल संशोधनों से प्रस्ताव का उद्देश्य विफल हो जाएगा.
प्रस्ताव की निंदा करते हुए श्रीलंका ने यूएनएचआरसी में कहा, ‘‘आज जिनेवा में पेश किया गया प्रस्ताव श्रीलंका को स्पष्ट तौर पर अस्वीकार्य है.’’
श्रीलंका के स्थायी प्रतिनिधि ने कहा, ‘‘श्रीलंका की सरकार माननवाधिकार आयुक्त के कार्यालय और इस प्रस्ताव के समर्थकों के प्रयासों को पूरी तरह खारिज करती है.’’
उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव हाल के वर्षों में श्रीलंका में हुई प्रगति को स्वीकार कर पाने में नाकाम रहा है.
प्रस्ताव में श्रीलंकाई सरकार का आग्रह किया गया है कि वह श्रीलंका में मानवाधिकारों का उल्लंघन जारी रहने से जुड़ी रपटों को लेकर निवारण करे जिनमें न्यायिक स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता के खतरे की बातें शामिल हैं.