सोमवती अमावस्या के अवसर पर उत्तर भारत के पौराणिक तीर्थस्थल शुक्रताल में हजारों श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा में डुबकी लगाई.
इस पावन दिन के मौके पर पुण्य अर्जित करने की कामना लिए हजारों लोग रविवार से ही शुक्रताल में जुटने लगे थे.
यहां आए श्रद्धालुओं ने सोमवार सुबह गंगा में स्नान किया और मंदिरों में पूजा अर्चना की.
यहां के प्रसिद्ध गणोश धाम, हनुमत् धाम और शुक्रताल मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ रही. श्रद्धालुओं ने इस अवसर पर प्राचीन वट वृक्ष की परिक्रमा के साथ विशेष पूजा भी की.
स्नान का महत्व
सोमवती अमावस्या, यानी सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस दिन गंगा स्नान और दान आदि करने का विधान है. कई स्थानों पर विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत भी रखती हैं.
कहा जाता है कि इस दिन मौन व्रत रखने से हजारों गोदान के बराबर फल मिलता है. शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत भी कहा गया है. अश्वत्थ यानी पीपल का पेड़. कई प्रांतों में विवाहित स्त्रियां इस दिन पीपल के पेड़ की दूध, जल, फूल, अक्षत, चन्दन से पूजा करती हैं और उसके चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करती हैं.
कुछ अन्य जगहों पर पति-पत्नी के साथ प्रदक्षिणा करने का भी विधान होता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व समझा जाता है.
पौराणिक कथा प्रचलित
कहा जाता है कि महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते हुए कहा था कि, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से मुक्त होगा. ऐसा भी माना जाता है कि स्नान करने से पितरों कि आत्माओं को शांति मिलती है.
पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है. इसलिए सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन उसकी परिक्रमा करता है उसके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है.
दान की मान्यता
ऐसी परम्परा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिन्दूर और सुपाड़ी का दान किया जाता है. उसके बाद की सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के हिसाब से फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने कि सामग्री इत्यादि का दान दिया जाता है.