प्रतापगढ़ के कुंडा क्षेत्र में मारे गए सीओ जियाउल हक के परिवारीजनों एवं ससुरालियों में सरकारी नौकरी लेने के मुद्दे पर गहरे मतभेद उभर आए हैं। इसका कारण नौकरी के लिए डीएसपी की पत्नी परवीन आजाद द्वारा तैयार की गई आठ लोगों की वह सूची है जिसमें उन्होंने अपने साथ मायके के लोगों के सर्वाधिक नाम लिखे हैं। सूची में डीएसपी के चचेरे भाई रुस्तम का नाम सबसे नीचे आठवें नंबर पर है। सूची की जानकारी मिलने पर जियाउल के पिता एवं भाई ने आपत्ति जताई है कि सरकारी नौकरी परवीन के साथ सिर्फ घर वालों [जियाउल के] को मिलनी चाहिए।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सोमवार को देवरिया के नूनखार के टोला जुआफर पहुंचकर जियाउल की पत्नी परवीन एवं पिता को 25-25 लाख रुपये के दो चेक सौंपे थे। काबीना मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी, शहरी विकास मंत्री आजम खां व डीजीपी एसी शर्मा की उपस्थिति में की गई मांगों को स्वीकार करते हुए परिवार के पांच सदस्यों को योग्यता के अनुरूप सरकारी नौकरी देने का आश्वासन दिया था। मुख्यमंत्री के लौटने के बाद अगले दिन से ही शासन ने नौकरी के लिए जरूरी कार्रवाई शुरू कर दी। देवरिया जिला प्रशासन ने मंगलवार को ही डीएसपी की पत्नी परवीन एवं उनके छोटे भाई सोहराब सहित तीन सदस्यों का बायोडाटा शासन को भेजा तथा परवीन से शेष लोगों का बायोडाटा भी उपलब्ध कराने को कहा। बुधवार को जानकारी मिली कि परवीन ने नौकरी के लिए पांच की बजाय आठ लोगों की सूची प्रशासन को दी है। यही सूची मायके व ससुरालियों के बीच रस्साकसी का कारण बन गई है।
सूची पर हमें आपत्ति है :
डीएसपी के भाई सोहराब अली ने बताया कि भाभी परवीन परिवार की सम्मानित सदस्य हैं। उन्हें प्रथम वरीयता मिलनी जानी चाहिए। उनके बाद मेरे परिवार के सदस्यों को महत्व दिया जाना चाहिए लेकिन भाभी ने जो सूची सौंपी है उसमें अपनी बहन व रिश्तेदारों को वरीयता दी है। चचेरे भाई का नाम सूची में सबसे नीचे है। इतिहास गवाह है कि मुगल शासन से अब तक विरासत का लाभ परिवार के सदस्यों को दिया जाता है। भाभी द्वारा मायके के लोगों व रिश्तेदारों का नाम सूची में दिए जाने पर हमें आपत्ति है। उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा ठीक है। चाहे जिसे भी नौकरी मिले, उसमें परिवार के सदस्यों को वरीयता मिलनी चाहिए। सोहराब ने बताया कि पिता शमशुल हक ने भाभी द्वारा नौकरी के संबंध में प्रशासन को मुहैया कराई सूची पर लिखित आपत्ति दर्ज करा दी है।
डीएसपी के पिता शमशुल हक से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि परवीन मेरी बहू है। वह पढ़ी-लिखी है। पति को खोने के बाद से अवसाद में है। हो सकता है किसी के बहकावे में ऐसा किया हो, लेकिन जहां तक मेरी इच्छा का सवाल है तो बेटे के बाद भतीजे को नौकरी मिलनी चाहिए। यह बात लिखित तौर पर प्रशासन को दे चुका हूं। उनका कहना है कि जियाउल बचपन से होनहार व प्रखर तो था लेकिन उसे आगे बढ़ाने में मेरे भाइयों व परिवार के अन्य सदस्यों के योगदान से इन्कार नहीं किया जा सकता है। गरीबी में किस तरह से बेटे को मुकाम दिलाया, यह मेरा दिल ही जानता है। इस संबंध में परवीन आजाद से जब बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि नौकरी के लिए सूची मैंने अपने विवेक से बनाई है, किसी के बहकावे या प्रभाव में आकर नहीं।
परवीन की बनाई सूची :
परवीन ने नौकरी के लिए जो वरीयता सूची प्रशासन को दी है, उनमें खुद के अलावा देवर सोहराब अली, अपनी छोटी बहन बीटेक की छात्रा फरहीन आजाद, ननद के पति मुजीबुर्रहमान व बहन के पति इस्माइल अहमद, ननद कनीज फातिमा व राजिया खातून और चचेरे देवर रुस्तम अली का नाम शामिल किया है।
मायावती मिलने जा सकती हैं जिया के परिवार से
लखनऊ। मुस्लिम वोटों की बिसात पर बसपा, समाजवादी पार्टी को मात देने की तैयारी में है। डीएसपी जियाउलहक की हत्या और उससे पहले अलग-अलग जिलों में हुए साम्प्रदायिक दंगों से मुसलमानों में सपा सरकार को लेकर पैदा हुई नाराजगी को बसपा अपने पक्ष में भुनाना चाहती है। शायद यही वजह है कि बसपा प्रमुख मायावती का देवरिया जाने का कार्यक्रम बन रहा है, जहां वह डीएसपी जियाउलहक के परिवारीजन से मुलाकात कर सकती हैं तो दंगा पीड़ित परिवारों से मुलाकात कर उनके आंसू पोछने के लिए नसीमुद्दीन की ‘ड्यूटी’ लगाई जा रही है।
सूत्रों के अनुसार बसपा सपा की इस सरकार में और उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में मुसलमानों के खिलाफ होने वाली प्रमुख घटनाओं का संकलन पुस्तक की शक्ल में भी जारी करने के मूड में है। इसके लिए पार्टी के मुस्लिम नेताओं से बसपा प्रमुख मायावती की बातचीत भी हुई है। शुरुआती विचार-विमर्श में तय हुआ है कि इस पुस्तक को ‘सरकार सपा की, एजेंडा संघ का’ नाम दिया जाए ताकि मुसलमानों को यह समझाने में आसानी हो सके कि सपा सरकार में सबसे ज्यादा नुकसान उनका (मुसलमानों का) ही होता है। जिन जिलों में सपा सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल में दंगे हुए हैं, वहां की जिला इकाइयों से कहा गया है कि वह मुसलमानों को हुई जानी-माली नुकसान का विवरण भेजें, उसे भी पुस्तक में शामिल किया जा सके ताकि मुसलमानों को बताया जा सके कि विधानसभा चुनाव में सपा को वोट देने की कितनी बड़ी कीमत सिर्फ एक साल के अंदर उन्हें चुकानी पड़ गई है और अभी चार साल का सपा शासन अभी बाकी है।