अफ़जल गुरू की फ़ांसी का एक सीधा परिणाम यही निकलता है कि अफ़जल गुरू जीत गया और हमारा लोकतंत्र हार गया। इस फ़ांसी के कई कारण थे। सोशल मीडिया में छाये क्षद्म हिंदुत्व से कांग्रेस नीत सरकार की टांगें खड़क रही हैं। महज चंद करोड़ लोगों की उपस्थिति वाले इस सोशल मीडिया में हिंदुत्व के नाम पर जारी झूठे, तोड़ मरोड़ के बनाये हुये, अर्धसत्य से भरे प्रोपेगैंडा का नौजवान पीढ़ी की मानसिकता पर बहुत गहरा असर पड़ रहा है। इस पूरे प्रचार तंत्र के सामने कांग्रेस विवश है।
मेन स्ट्रीम मीडिया भी किसी भी मामले मे सारगर्भित चर्चा से कोसों दूर है। छद्म देशभक्ति के नाम पर आसानी से मिल रही टीआरपी के बजाय सही तथ्यों के आधार पर गंभीर विचार विर्मश, इनको आर्थिक आत्महत्या नजर आती है। इसके अलावा भी मेन स्ट्रीम मीडिया सोशल मीडिया के स्वयंभू हिंदुरक्षकों के हमलों से परेशान है। हिंदुत्व के इन स्वयंभू ठेकेदारों द्वारा सत्यापित देश भक्ति की परिभाषा से इतर कोई लेख लिखने वाला लेखक, न्यूज एंकर, जर्नलिस्ट, सिविल सोसाइटी का व्यक्ति सीधे नफ़रत भरे हमलों के जद मे आ जाता है।
इस हिंदुत्व के हमले को काउंटर करने का सबसे आसान तरीका तो यही था कि अफ़जल गुरू को फ़ांसी दे दो और खुद को राष्ट्र भक्त साबित कर दो। कांग्रेस का जाना भी कुछ नहीं था। आखिर जब विपक्षी दल ही सारी सच्चाई से मुंह फ़ेर बेशर्मी से अफ़जल गुरू को चुनावी मुद्दा बना ले तो उस बेशर्मी को अपनाने का दोष कांग्रेस पर क्यूं कर डाला जा सकता है भला! अब अफ़जल गुरू को अकेले लटकाने से एक दूसरे तरह के वोट बैंक का नुकसान होता है। जिसका यह तर्क है कि मुसलमान था तो लटका दिया, बाकियों को क्यों नहीं लटकाते! अब निश्चित ही राजोआना का नंबर लगना तय है। बिना उसके धर्म निरपेक्षता साबित भी नहीं की जा सकती। बलात्कारियों को लटकाना भी बढ़िया, महिला वोट बैंक खुश तो कांग्रेस भी खुश। आगे होने वाली किसी भी फ़ांसी का भाजपा विरोध भी नहीं कर सकती। आखिर फ़ांसी देना ही किसी भी देश को मजबूत साबित करता है।
लेकिन अफ़जल गुरू और राजोआना की फ़ांसी की गूंज फ़ांसी घर के लीवर की आवाज के साथ खत्म नहीं होगी। राजोआना की फ़ांसी से खालिस्तान के समर्थकों को कितना लीवरेज मिलेगा यह तो अस्पष्ट है पर जाहिर है अफ़जल गुरू की फ़ांसी का एक प्राइस टैग था। यह कीमत मीडिया और हिंदुत्व के ठेकेदारों को नहीं चुकानी। एक को सनसनी मिलेगी, दूसरे को मुसलमानों के खिलाफ़ जहर उगलने का नया मसाला मिलेगा। कीमत चुकानी होगी भारत के फ़ौजियों को और कश्मीर के बेगुनाह मासूमों को। इस फ़ांसी से अप्रासंगिक पड़ चुके कश्मीरी अलगाव वादियों को पैसा भी मिलेगा और मुफ़्त मे आतंकवादी भी भर्ती होंगे। भारत के लोगों को तो कश्मीर के हालात के बारे में कुछ पता ही नहीं है। देश भक्ति की मीडिया जनित परिभाषा में कश्मीर पर बात न करना ही देश भक्ति है। आतंकवाद में अपनी कई पीढ़ियां गवां चुके कश्मीरी अब पाकिस्तान से भी उतनी ही शदीद नफ़रत करते है, जितनी की भारत से।
भारत के लोगों को कश्मीरियों की समस्या से कोई वास्ता नहीं है। उन्हें केवल कश्मीर चाहिये। अस्सी के दशक से आज तक जितने कश्मीरी हिंदु घाटी से विस्थापित हुये हैं, उससे दस गुना कश्मीरी कब्रों में स्थापित हो चुके हैं। सुरक्षा बलों और आतकवादियों के बीच चल रही जंग मे कश्मीरी लोगों ने न केवल अपना व्यापार, अपनी स्वतंत्रता खोई है बल्कि दहशत भरी जिंदगी के बीच अपनी इस नई पीढ़ी को बड़ा किया है। पर्यटन खत्म हो जाने से बेकार हो चुके नौजवानों को किस मुश्किल से उन्होंने आतंकवाद से दूर रखा यह भारत की आम जनता नहीं जानती है। पिछले एक दशक में हालात सामान्य हुये थे। पर्यटन और रोजगार फ़िर परवान चढ़ रहा था। घाटी में खुशहाली लौटी थी। आतंकवाद नियंत्रण में आ चुका था। पाकिस्तान से आये स्वयंभू कश्मीर रक्षक आतंकवादियों की सूचना स्थानीय लोग सेना को दे रहे थे। पहली बार कश्मीरी पंडितों की घर वापसी का माहौल तैयार हो रहा था।
इस बेहतर होते हालात के बीच हुई इस फ़ांसी ने कई आशंकाओं को जन्म दिया है। आज पूरे कश्मीर में कर्फ़्यू है। जगह जगह हिंसा की वारदात हो रही हैं। अंतिम जानकारी तक 50 से ज्यादा फ़ौजी और नागरिक घायल हुये हैं और तीन स्थानीय निवासियों की मौत हो चुकी है। इस घटनाक्रम से हिंदुत्व के स्वयंभू ठेकेदारों के सीने में जल रही आग तो कुछ ठंडी हो गयी होगी। लेकिन कश्मीर में ठंडी पड़ चुकी आग अब भड़कने को है। कारण सिर्फ़ इतना था कि जेल मे सड़ रहा एक आतंकवादी हमसे देखा नहीं जा रहा था। मतदाताओं को कांग्रेस के खिलाफ़ करने की मुहिम का वह प्रमुख प्रतीक बना दिया गया था। पिछले सालों में कांग्रेस सरकार के इतने घोटाले सामने आए हैं कि भाजपा को उनके इतर किसी भी मुद्दे की जरूरत पड़ना मेरे तो समझ से बाहर है। भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त जनता को अफ़जल गुरू की फ़ांसी से कितनी संतुष्टि मिलेगी यह भी समझा जा सकता है। महज कुछ घंटों की खुशी कई लोगों के जीवन को दुख से भरने कारण बन जाये ऐसा सौदा तो हमारा लोकतंत्र नहीं सिखाता है।
खैर कांग्रेस ने अब वो कर दिया जो बेचारी देश हित में नहीं कर रही थी। आखिर देश हित के सामने खुद का हित आ जाये तो कौन नुकसान उठाता है भला। वैसे भी घोटाला कर कर के थक चुकी कांग्रेस के पास करने को कुछ था भी नहीं। अब कौन जाने अपने को हिंदु हितैषी साबित करने के लिये और क्या कर बैठे। वैसे भाजपा वाले राम मंदिर राम मंदिर खेल रहे हैं। अब राहुल बाबा बनवा दे त सोने में सुहागा न हो जायेगा।