
बड़ी आफ़त टूटी है घाटी पर, तबाही और मानवीय नुकसान का अंदाजा अभी धीरे-धीरे सामने आएगा। सेना और पैराफ़ोर्स के साथ राज्य सरकार के लोग लगे हैं। देश के अन्य भागों से भी मदत शुरू हो चुकी है, केंद्र सरकार के साथ। कुछ राजनैतिक लोगों और राज्यसरकार के प्रति स्थानीय लोगों की तरफ से गुस्सा निकाले जाने की ख़बरें हैं तो उसी के साथ, सेना और बचाव टीम के लिये दुवा करते लोग भी खबर में हैं। भारी दुःख और तकलीफ झेल रहे लोगों का यह आक्रोश जायज है…और राहत मिलने पर धन्यवाद भी, साथ ही अपनी बात जाहिर करना हमारा नागरिक अधिकार भी है।
इन्ही ख़बरों के साथ पुंछ तथा कुछ एक और इलाकों में बिजली की बंद सप्लाई के विरोध में स्थानीय लोगों के बिजली केंद्र और CISF के कैम्प पर पत्थरबाज़ी की खबर भी दिखी। देखिये साहेब, आज़ादी के बाद ”राष्ट्रीय खुरापात” की जगह पहली बार कश्मीर ने ”राष्ट्रीय आपदा” देखी है। देश इस आपदा, पीड़ा में राज्य के साथ है, समूचे देश के बहुत से लोगों के राज्य में फँसे होने के साथ और मदत के साथ भी। दो-तीन समूची पीढ़ी में पहली मर्तबा ऐसा मंजर देख रहे राज्य में, पत्थरबाज़ी के पुराने पसर भर, नामाकूल शौकीनों को यह समझने और बूझने की जरुरत है कि ऐसी आपदा से सम्हलने में वक्त लगता है। और जहाँ इस समय लाखों आबादी को रेस्कू किया जाना शेष हो, वहाँ निर्बाध बिजली सप्लाई का नंबर पहली लिस्ट में रखना जरुरी नहीं… खाना -पानी की मदत के साथ जिंदगी बचाना प्राथमिकता होनी चाहिए। शायद इसका अंदाजा इन्हें नहीं है।
दुःख / तकलीफ के इस समय में इन हरकतों / नकारात्मक बातों से बाज़ आयें हम और इस आपदा से हिम्मत के साथ बाहर निकलने में हाथ दें.. निर्माण की नींव में पत्थर दें।