नई दिल्ली।। पवन बंसल और अश्विनी कुमार के इस्तीफों के साथ ही कांग्रेस के एक धड़े ने यह संदेश दिया कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने दोनों इस्तीफे लेने में अनावश्यक देरी की, पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी तो शुरू से दोनों मंत्रियों की विदाई चाहती थीं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि पिछला चुनाव मनमोहन के नाम पर लड़ने वाली कांग्रेस में ही अब उनका कद छोटा करने की कोशिश हो रही है। यानी यूपीए-टू की सभी विफलताएं एक तरह से डॉ. सिंह पर डाल कर अगले चुनाव और राहुल गांधी के लिए स्टेज तैयार की जा रही है। इस सबके बीच लाख टके का सवाल है कि कि कोयला ब्लॉक आवंटन में डॉ. मनमोहन सिंह ने क्या कोई निजी फायदा उठाया?
बंसल के भांजे की गिरफ्तारी से पहले अश्विनी कुमार द्वारा सीबीआई की जांच रिपोर्ट देखने और बदलाव कराने का मामला भी गरम हो चुका था। दोनों ही मामलों में कांग्रेस कोर ग्रुप ने इंतजार करने का फैसला किया। संसद के अंदर भी कांग्रेस नेताओं के तेवर यही थे कि इस्तीफे किस लिए? क्या वजह थी? अश्विनी कुमार के मामले में तो कह सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई का इंतजार था, लेकिन बंसल के मामले में क्या था? क्या बंसल ने पीएम और कांग्रेस लीडरशिप को रेल रिश्वतकांड में अपने बारे में जो सफाई दी, वह पूरी भरोसे लायक थी? यदि इतनी भरोसे लायक थी, तो कल शुक्रवार आते-आते क्या हो गया? यदि लीडरशिप को गुमराह करने की कोशिश थी, तो पहले ही दिन सही रुख क्यों नहीं अपनाया गया? कम से कम बयान और संसद में कार्यवाही के लिहाज से तो सावधानी हो सकती थी?
इस तरह के कई सवाल हैं, जो कांग्रेस के अंदर भी चर्चा में हैं। एक सप्ताह के दौरान कांग्रेस का कोर ग्रुप कई बार मिला और हर बार एक नया रुख दिखा? उसी बीच यह संकेत भी दिए गए कि पीएम डॉ. सिंह अपने करीबी और चंडीगढ़ निवासी दोनों मंत्रियों को बचा रहे हैं या नरम हैं।
पार्टी चीफ सोनिया गांधी और पीएम के बीच मतभेदों की बात भी हवा में तैराई गई। आखिर में इस्तीफे तब लिए गए, जब सोनिया गांधी पीएम से शुक्रवार को मिलीं। इस सबमें सोनिया गांधी की इमेज तो बेशक बन गई, लेकिन राजनीतिक जानकारों के मुताबिक बेदाग छवि के मालिक डॉ. सिंह की इमेज को काफी झटका लगा है।
क्या यह बस अनजाने में हुआ है? जो भी हो, जानकारों के मुताबिक डॉ. सिंह पर यूपीए-टू की बुराइयों की जिम्मेदारी डाल कर यदि यह राहुल गांधी के लिए आग की स्टेज सेट करने की कोशिश है, तो इसमें एक बड़ा पेच भी है। क्या कांग्रेस खुद यूपीए-टू की कमियों औैर विफलताओं की जिम्मेदारी से बच सकती है? क्या अपने मिस्टर क्लीन पीएम के नाम को दांव पर लगाने का बोझ समूची कांग्रेस और राहुल पर नहीं पड़ेगा?
क्या यह कहा जा सकेगा कि 2006 से 2008 तक कोयला मंत्रालय का भी काम देख रहे डॉ. सिंह को खदान आवंटन में कोई निजी लाभ हुआ होगा? यदि नहीं, तो वह लाभ किसे हुआ, किसके कहने पर आवंटन हुए, यह भी सवाल रहेंगे? हालांकि, आवंटन की संवैधानिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी तो संबद्ध मंत्री की ही बताई जाती है, लेकिन असल फायदा किसे हुआ, यह जांच से पता चलता है। जांच सीबीआई कर रही है।
पार्टी का सवाल है कि अश्विनी कुमार ने किसे बचाने के लिए सीबीआई रिपोर्ट में बदलाव कराए? इसका जवाब कांग्रेस की तरफ से भी आज शाम तक आ सकता है। पार्टी हमेशा की तरह पीएम के साथ खड़ी नजर आएगी। लेकिन जानकारों के मुताबिक कोयला और रेल रिश्वत, दोनों ही मामलों में अभी कई चैप्टर बाकी लगते हैं। कोयले की आंच यदि पीएम की तरफ बढ़ाई जाती है, तो वह जाएगी दूसरी तरफ भी।