केप टाउन सोसाइटी में भागवत कथा के तीसरे दिन व्यास जीवेश कुमार ने भक्तो को बताया कि जीव माया में लीन होकर ईश्वर को भूल जाता है
जिस परमात्मा के सुमिरन से जीव का उद्धार होता है अतः करण पवित्र और निर्मल हो जाता है भय और चिंताएं दूर हो जाती हैं रोगप्रतिकारक शक्ति ओं का विनाश हो जाता है तथा काम क्रोध और लोभ नष्ट हो जाता है इस परमपिता परमात्मा को यह जीव माया में लीन होकर भूल जाता है परंतु प्रभु इतने दयालु हैं जो जीव को अनेकों भात ईश्वरी माया से हटाकर भक्ति मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं ।कभी सत्संग ,प्रेम प्रसाद चक्कर , ध्यान, भजन ,कीर्तन का रस चक्कर तो कभी श्रीमद्भागवत रूपी ज्ञान गंगा में गोता लगाकर कभी मंदिर में प्रभु की झांकी निहार कर अपनी शक्ति का ज्ञान करना चाहते हैं ।वह प्रभु कितना दयालु है, कितना उधार है ,कितना धैर्यवान है ।जो हमें यह विभिन्न प्रकार अपने आत्मस्वरूप का प्रसाद देकर अपने ही स्वरूप का आदान प्रदान करते हैं तो अपने स्वरूप का दान करने के लिए तैयार बैठे हैं ।
जीवेश कुमार ने भक्तो को बताया कि फिर देरी किस बात की मनुष्य को जितना हो सके उतना जल्दी प्रभु की उस शक्ति को पहचानना चाहिए ।और उस शक्ति को पहचानने के लिए किसी संत महापुरुष की शरण में जाना आवश्यक है ।और उनके सत्संग रूपी अमृत का पान करके अपनेबताए हुए मार्ग पर चलकर प्रभु के स्वरूप का दान स्वीकार करना चाहिए ।और उसको प्राप्त करने का सबसे सरल साधन है श्रीमद् भागवत महापुराण का श्रवण करना जो कि अल्प समय में उस प्रभु से मिलने में हमारा सहयोग करते हैं ।