ग्रेटर नोएडा वेस्ट की चमक दमक के बीच शाहबेरी अव्यवस्थाओं और लालच के बीच बसे एक अभिशप्त गांव की तरह हैं । यहां 100 से ज्यादा बिल्डर फ्लोर और मेन सड़क के साथ बसे अवैध बाजार के साम्राज्य को चलाने वाले भू-माफिया और बिल्डर के खिलाफ प्राधिकरण बेबस दिखाई देता है।
अक्सर यहां होने वाले विवादों और दुर्घटनाओं पर समय-समय पर शोर मचाने के बाद लोग मीडिया और प्राधिकरण दोबारा सो जाते हैं लेकिन इस गांव के अभिशप्त होने और पुनरुद्धार का कोई प्रयास नहीं होता । एक बार फिर शनिवार कि सुबह एक बिल्डर फ्लोर के बेसमेंट में आग लगने के बाद यह सवाल सर से जुड़ अंत हो गए हैं अवैध तरीके से बसे इन बिल्डर फ्लोर और बाजार के गठजोड़ के बीच तंत्र को प्राधिकरण की जिम्मेदारी है या फिर गौतम बुध नगर पुलिस कमिश्नरेट की लेकिन इस सब के बीच यहां रह रहे लोगों की जिंदगी किसी नर्क के समान ही है
अभिशप्त होने के 15 साल
21वीं सदी के आरंभ में एक छोटा सा गांव शाहबेरी चर्चा में 2007-8 के बाद आया जब नोएडा और गाजियाबाद के साथ NH24 से सटा यह गांव अचानक सबसे सस्ती फ्लैट देने की परियोजना के अधिग्रहण क्षेत्र में आ गया । मायावती काल में इस जगह को पहले औद्योगिक क्षेत्र के तौर पर जाना जाता था और तमाम बड़े घोटालों के बाद इसका लैंड यूज चेंज करके आवासीय परियोजना में बदल दिया गया जिसकी जांच सीबीआई से आज तक चल रही है
कदाचित शाहबेरी NH24 के साथ लगे होने के कारण परियोजना में सबसे बेहतर लोकेशन पर बसा क्षेत्र हो सकता था लेकिन भू माफियाओं के गठजोड़ स्थानीय राजनेताओं की बड़ी महत्वाकांक्षाओं और लालच ने इस क्षेत्र को दुर्भाग्य से भरपूर और अभिशप्त बना दिया है । भूमाफिया और स्थानीय नेताओ के कहने पर प्राधिकरण के अधिग्रहण के दौरान गांव के कुछ लोग प्राधिकरण के खिलाफ अदालत में चले गए ।
अदालत में गांव वालों ने आवासीय क्षेत्र के नाम पर अधिकृत की गई जमीन को ग्रामीण बने रहने के लिए वापस मांगा और अदालत ने उनकी मांग को देखते हुए उन्हें वापस भी दे दिया लेकिन यहीं से लालच और शायरी के अभिशप्त होने की कहानी शुरू हो गई । 2014 के बाद नोएडा और ग्रेटर नोएडा के गांव में दिल्ली की तर्ज पर बिल्डर फ्लोर बनाने और लालडोरा की जमीन को वायवसायिक उपयोग के लिए चालू करने के योजनाएं जन्म लेने लगी जिसके बाद नोएडा सेक्टर 73 से लेकर ग्रेटर नोएडा वेस्ट के शाहबेरी पटवारी और बिसरख के तमाम गांव में ऐसे बिल्डर फ्लोर बनने लगे जो किसी भी तरीके से सही नहीं किए कहे जा सकते।
लेकिन लोगों को यह बता करके दिल्ली की तरह एक बार आबादी बस जाएगी फिर इन्हें वोटों के लालच में सरकार रेगुलर कर देगी बताकर बिल्डरों ने आनन-फानन में ये फ्लैट बेचे और यहां की सड़क से लगी जमीनों पर बड़े-बड़े फर्नीचर मार्केट खड़े कर दिए और हमेशा कितने प्राधिकरण और पुलिस इनकी तरफ से आंखें मूंदकर सोती रही । हालात इतने खराब हैं कि ग्रेटर नोएडा वेस्ट से गाजियाबाद क्रॉसिंग रिपब्लिक को जोड़ने वाली मुख्य सड़क महज 10 मीटर चौड़ी है जिस पर रोजाना सुबह और शाम जाम लगता है मगर स्थानीय नेताओं और प्राधिकरण दोनों ही अपनी आंखें बंद रखते हैं
आज शाहबेरी और ऐसे तमाम गांव में रहने वाले लोगों के सामने समस्या बड़ी हो गई है अवैध बिल्डर फ्लोर में फ्लैट ले चुके लोगों की सुनवाई अब कहीं नहीं है ना उन को सीवर लाइन मिल पाती है ना ही पर्याप्त बिजली कनेक्शन मिल पाता है और ना ही इनके लिए प्राधिकरण द्वारा कोई सड़के बनाई जाती है ।
लोगों का तर्क है कि हम को अंधेरे में रखकर फ्लैट्स बेचे गए इसलिए प्राधिकरण यहां पर सुविधाएं दी जबकि प्राधिकरण के अधिकारी इस पूरे ही क्षेत्र के फ्लैट्स को अवैध मानकर नोटिस भेज चुका है
सत्ता बदली मगर समस्या वही रही
2017 में जब सत्ता बदली तब लोगों को एक बार फिर से यहां न्याय की उम्मीद जागी ।
2017 में आई भाजपा सरकार को 5 साल पूरे करने के बाद दोबारा 2022 में सत्ता पाने के बावजूद स्थानीय नेताओं और भूमि माफियाओं के गठजोड़ ने सत्ता को बेबस कर दिया । हालात यह है कि जब भी कहीं अतिक्रमण हटाया जाता है तो उसमें सत्ता और विपक्ष दोनों के नेताओं के लोग खड़े नजर आते हैं ऐसे में शाहबेरी के साथ-साथ शाहबेरी में रह रहे लोग अभिशप्त जिंदगी जीने को मजबूर हैं शनिवार को लगी आग भले ही बहुत बड़ी दुर्घटना होने से बच गई लेकिन सवाल एक बार फिर से खड़े हो गए हैं कि गांव को लेकर प्राधिकरण की नीति अभी तक स्पष्ट क्यों नहीं है गांव के विकास की परिभाषा प्राधिकरण के नियमों में क्या है ?
न्याय की परिभाषा में जो लोग फ्लैट खरीद चुके हैं वह चाहते थे कि यह लीगल कर दी जाए जबकि जो आम जनता चाहती है कि यह सारे फ्लैट तोड़े जाएं और इनको वापस या तो गांव का स्वरूप दिया जाए या फिर प्राधिकरण इनको नई अधिग्रहण पॉलिसी के अंतर्गत गांव को वापस अधिग्रहण करके डेवलप करके गांव वालों को ही बेचने का अधिकार दे । इससे ना सिर्फ गांवों में सीवर, सड़क और बिजली के साथ साथ अन्य सुविधाएं विकसित होंगी बल्कि प्राधिकरण को भी अतिरिक्त आय होगी ।
प्राधिकरण का गांव के साथ सौतेला व्यवहार क्यों?
कदाचित गांव में रहने वाले लोग प्राधिकरण पर प्रश्न उठाते हुए पूछते हैं कि जब नोएडा से प्रधानी खत्म कर दी गई तो गांव के विकास के लिए प्राधिकरण के पास योजनाएं क्यों नहीं है आखिर गांव की सड़कें और नालियां आज तक दुर्दशा का शिकार क्यों है 2016 में प्रधानी खत्म करने के बाद आज 2023 के आरंभ तक प्राधिकरण कोई स्पष्ट पॉलिसी क्यों नहीं बना सका है ।
2018 में बरसात में बिल्डर फ्लोर के गिर जाने के बाद इन फ्लैटों को गिराने की मांग शुरू हुई जिसके बाद प्राधिकरण ने नोटिस जारी करके अपने कार्यों की इतिश्री कर ली मगर इसके बावजूद फ्लैट बनते रहे लोग आते रहे न फ्लैट रोके गए नाही प्राधिकरण ने इन सभी बिल्डर फ्लोर को गिराया शायद वह किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार कर रहे हैं
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से लगे गांवों में अवैध बाजार और बिल्डर फ्लोर की भरमार है और इन को लेकर प्राधिकरण फिलहाल आंखें मुझे हुए है
प्राधिकरण के पास गांव के विकास के लिए योजना ना होने का एक बड़ा कारण यहां मौजूद भूमाफिया और नेताओं का गठजोड़ दिया भी है जानकारों की माने तो स्थानीय भाजपा के बड़े नेता के संरक्षण में इस क्षेत्र के सभी भूमाफिया लगातार अवैध बाजार खड़े करते जा रहे हैं और बिल्डर फ्लोर या प्लॉटिंग करने में लगे हुए हैं।
ऐसे में लीजबैक और आबादी की जमीन के नाम पर ग्रेटर नोएडा वेस्ट के समानांतर एक नई व्यवस्था जन्म लेती है जहां बिना किसी की रेंट एग्रीमेंट के लोगों को घर और दुकानें किराए पर दी जा सकती हैं जिसकी परिणति अंत में शाहबेरी में बिल्डर फ्लोर के नीचे बने लकड़ी के गोदाम में लगी आग के रूप में सामने आनी शुरू हो गई है
ऐसे में प्रदेश सरकार प्राधिकरण और पुलिस कमिश्नरेट के साथ मिलकर आने वाले दिनों में कोई कदम उठाएगा या फिर यहां के ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोग ऐसे ही अभिशप्त जिंदगी जीने को मजबूर होंगे यह देखना बाकी रहेगा