ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की बोतल से सेवाओं के आनलाइन करने मामले में 300 करोड़ के भ्रष्टाचार का निकला जिन्न क्या जांच के बाद अधिकारियों के ट्रांसफर और अन्य निष्कर्षों के बाद वापस बंद हो गया है या फिर यह पूर्व और वर्तमान अधिकारियों के बीच एक अघोषित युद्ध का आरंभ है ।
आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस तरीके का सवाल क्यों पूछा जा रहा है तो उससे पहले इस मामले को लेकर कई बातों को समझना पड़ेगा पूर्व सीईओ नरेंद्र भूषण पर निशाना लगाकर 300 करोड़ के जिस कथित घोटाले की जानकारी जितनी तेजी से सामने आई उतनी ही तेजी से जांच अधिकारी सौम्य श्रीवास्तव की जांच के बाद ठंडे बस्ते में भी जाती दिखी ।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सूत्रों की माने तो जांच में यह पाया गया कि यह टेंडर 300 करोड़ की जगह 65 करोड़ का था जिसमें अभी तक सिर्फ 18 करोड़ ही टेक महिंद्रा को दिए गए, ऐसे में मीडिया में आई जानकारी के अनुसार, कोई गलत आधार नहीं पाया गया की रिपोर्ट को वरिष्ठ अधिकारियों को भेज दिया गया लेकिन इस मामले में ही पूर्व सीईओ के करीबी कहे जाने वाले 3 अधिकारियों का ट्रांसफर हुआ जिसमें जी एम प्लानिंग मीना भार्गव भी शामिल है । महत्वपूर्ण यह भी है कि मीना भार्गव के स्थानांतरण के बाद अथॉरिटी में कर्मचारियों और अधिकारियों के एक हिस्से में जिस तरीके से खुशी मनाई गई उससे अधिकारियों के बीच बढ़ती गुटबाजी के चरम पर आने की आशंका भी बढ़ गई है
वही प्राधिकरण के सूत्रों की माने तो इस पूरे मामले में अपनी गर्दन बचाने के लिए दूसरे के केस को बड़ा बना कर जान बचाने वाली स्थिति भी सामने आ रही है ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में निवर्तमान और वर्तमान अधिकारियों के बीच चल रही वर्चस्व की जंग सतह पर आ गई है। आने वाले दिनों में कुछ और अधिकारियों को बिना मौसम इधर से उधर किया जा सकता है। लेकिन सवाल फिर भी यह वही है कि आखिर इस घोटाले की जांच का मुख्य आधार क्या था क्या 300 करोड़ की जगह सिर्फ 65 करोड का टेंडर होने से और सिर्फ 18 करोड़ का पेमेंट होने से जांच पूरी हो गई या फिर जानबूझकर 300 करोड़ की जगह 65 करोड़ का मामला दिखाकर असली मुद्दे से बात को भटकाया जा रहा है
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर लगातार सवाल उठते रहे हैं बीते 15 सालों में यहां आए तमाम सीईओ काम को करने की जगह काम को टालते ज्यादा नजर आएं । पूर्व सीईओ भी बीते 4 साल में किसी भी कार्य को अंजाम तक पहुंचाने में असफल रहे । किसानों की समस्याओं के हल होने की बात हो यह ग्रेटर नोएडा और ग्रेटर नोएडा वेस्ट में अधूरे पड़े कार्यो को पूरा करने के बाद सबको पैसे की कमी के नाम पर टाला जाता रहा या फिर उनकी जांच और पूरा करने के नाम पर एक नई कमेटी का गठन कर दिया गया । नाम ना छापने की शर्त पर प्राधिकरण के एक कर्मचारी ने एनसीआर खबर को बताया कि पूर्व सीईओ को काम पूरा करने की जगह उसे टालने में ज्यादा मजा आता था
जांच के बहाने अब तक टेंडर के काम पूरा ना होने पर उठते सवाल
ऐसे में सेवाओं को ऑनलाइन करने के नाम पर हुए इस टेंडर की जांच पर कई सवाल खड़े होते है । 2018 में टेक महिंद्रा कंपनी को टेंडर की शर्तों के अनुसार टेंडर आवंटित किया गया ऐसे में जांच के आधार पर भले ही यह साबित हुआ कि 65 करोड़ के टेंडर में सिर्फ अभी तक 18 करोड़ दिए गए लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि 4 साल के इंतजार के बाद ग्रेटर नोएडा के लोगो को कितनी सेवाएं अभी तक ऑनलाइन दी जा सकी हैं इस महत्वपूर्ण सवाल का जवाब इस जांच में नहीं है जानकारी के अनुसार अभी तक सिर्फ 20 सेवाओं को ऑनलाइन और ईआरपी से जोड़ा जा चुका है लेकिन इस पूरे टेंडर में कितनी सेवाएं ऑनलाइन की जानी थी और उनको अभी आने वाले कितने समय में किया जाएगा इस पर सवाल बाकी है
65 करोड़ के टेंडर में सिर्फ 18 करोड़ का भुगतान यह बताता है कि लगभग 20 से 25% काम ही पूरा हुआ हो सकता है ऐसे में देश में प्रदेश में शो विंडो कहे जाने वाले ग्रेटर नोएडा के इस महत्वपूर्ण काम में अभी और कितने साल लगेंगे इसका जवाब प्राधिकरण के अधिकारियों के पास नहीं है ।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की आनलाइन सेवाएं कितनी हाईटेक है इस बात को आप उसके सोशल मीडिया डिपार्टमेंट से भी समझ सकते हैं कहने को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में सोशल मीडिया का एक पूरा डिपार्टमेंट बनाया गया लेकिन ट्विटर और फेसबुक के जरिए जनता द्वारा उठाई गई मांगों का संबंध अधिकारियों तक पहुंचाने की प्रक्रिया का कोई भी लिखित या ऑनलाइन डॉक्यूमेंटेशन अभी तक उपलब्ध नहीं है प्राधिकरण के सूत्रों की मानें तो सिर्फ ट्विटर पर ही की गई शिकायतों के मामले में प्राधिकरण का सोशल मीडिया डिपार्टमेंट लोगों को यह कह देता है कि आपकी शिकायत संबद्ध अधिकारी तक पहुंचा दी गई है लेकिन इस मामले को लेकर शिकायत संख्या शिकायत संख्या के बाद शिकायत के निवारण को लेकर कोई भी प्रक्रिया फिलहाल मौजूद नहीं है ऑनलाइन शिकायत के बाद शिकायतकर्ता को प्राधिकरण के चक्कर लगाने ही पड़ते हैं और यही इस तथाकथित घोटाले की जांच के बाद सामने आया सच है
ऐसे में जहां कुछ अधिकारी जी एम प्लानिंग मीना भार्गव के ट्रांसफर के बाद खुशियां मना रहे हैं तो अथॉर्टी के ही कुछ लोग सिर्फ इस बात पर मायूस हैं कि वह इस जांच के बहाने बलि का बकरा बन गए मगर लोगों के लिए सेवाओं को ऑनलाइन किए जाने और ईआरपी स्थापित किए जाने का काम कितना बाकी है और कब तक पूरा होगा इस पर उठते सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है । लेकिन जांच के बहाने फिलहाल प्राधिकरण में वर्चस्व की जंग का आरंभ हो चुका है