डॉ. चैतन्य सिंह, दिलसुख नगर (हैदराबाद)। ना हिंदू मरता है ना मुसलमान मरता है, धमाकों में सिर्फ इंसान मरता है। कुछ इसी राह पर चलते हुए हैदराबाद धमाकों के बाद पाशा पीड़ितों के लिए फरिश्ता बन कर आए। आतंक को किसी खास मजहब से जोड़कर देखने वालों को हैदराबाद के दिलसुख नगर का हादसा बड़ा सबक दे गया। जब तक सरकारी मशीनरी मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंची, तब तक इकहरे बदन के अधेड़ मुस्लिम ऑटो रिक्शा चालक पाशा घायलों के लिए फरिश्ता बने रहे।
हाल ही में उन्होंने नया ऑटो रिक्शा लिया है। वह शाम को दिलसुख नगर बस स्टैंड के समीप सवारी का इंतजार कर रहे थे। तभी हादसे की सूचना मिली। हादसे के बाद सबसे पहले मौके पर पहुंचने वालों में पाशा थे। मौके पर लाशें और घायल पड़े देखे, तो खुद घायलों को उठाने-संभालने में जुट गए। लोगों की मदद से पास के उस्मानिया अस्पताल घायलों को पहुंचाया।
अस्पताल के कई फेरे लगाए। रात नौ बजे तक वे तीमारदारी में जुटे रहे। उस्मानिया अस्पताल में जब उनसे बात करने की कोशिश की गई तो दुआ के लिए हाथ उठा दिए। दिलसुख नगर में पहला धमाका सात बजने के कुछ ही देर बाद हुआ। उस समय वेंकट ऑटो पकड़कर रवाना ही होने वाले थे कि जोरों की आवाज हुई। धुएं का गुबार उठा। एक गाड़ी का टूटा टुकड़ा उनके पैर में आ धंसा। कुछ समझ पाते, इससे पहले फिर धमाके की आवाज। वेंकट के पांव की हड्डी कई जगहों पर टूट गई। बताते हैं कि हादसे के पंद्रह मिनट तक कोई मदद नहीं मिली। सौ मीटर के दायरे में सिर्फ खून ही खून दिख रहा था। पंद्रह मिनट के बाद पुलिस की गाड़ियां, एंबुलेंस पहुंची। मौके पर चीख पुकार मची थी। दिलसुख नगर के समीप उस्मानिया और यशोदा अस्पताल हैं। जिसे जहां सहूलियत हो रही थी घायलों को पहुंचा रहा था। दिलसुख नगर के आसपास बसी लगभग सौ कॉलोनियों के लोगों ने घायलों के लिए अपनी गाड़ियां तक दे दीं।