शीतला सप्तमी शनिवार को मनाई जाएगी। इस दिन माताजी को ठंडा नैवेद्य चढ़ाकर ठंडा खाने की परम्परा है। घरों में चूल्हे नहीं जलेंगे। महिलाएं शीतला माता स्थानकों पर सवेरे ठंडा जल, दही, खट्टा-मीठा ओलिया आदि चढ़ाकर पूजा-अर्चना कर घर में सुख – शांति की कामना करेंगी। राजस्थान के साथ उत्तर भारत में शीतलाष्टमी पूजन की ही परम्परा है। सप्तमी पूजने वाले परिवारों ने शुक्रवार को भोग के लिए घरों में व्यंजन बनाए। इनमें खट्टा-मीठा ओलिया, राबड़ी, पूड़ी, की सब्जी, कैरी की सब्जी, मक्का के पापड़, पपडिय़ां, गेहूं का खींच, लापसी, दही बड़े आदि शामिल है। सुबह से ही महिलाएं सज धजकर शीतला माता मंदिर व शीतला माता स्थानकों पर पहुंचेंगी व पूजा- अर्चना करेंगी। शीतला माता को ठंडा नैवेद्य चढ़ाएंगी। इस दौरान माता जी को कोरा दीपक व बिना जली अगरबत्ती चढ़ाई जाती है। माताजी को महिलाएं आटे से बने जेवर, चूडिय़ां आदि चढ़ाती है। माता की पूजा के बाद पथवारी की पूजा भी की जाती है।
यह रहेगा पूजन का मुहूर्त
सुबह 4 से 6.28 तक रहेगा इसके बाद सुबह 8.01 से 9 बजे तक शुभ रहेगा।
शीतला सप्तमी तिथि और मुहूर्त
- शीतला सप्तमी पूजा 3 अप्रैल 2021 शनिवार
शीतला सप्तमी पूजा समय - सप्तमी तिथि 03 अप्रैल को 6:00 बजे प्रारंभ होगी और
सप्तमी तिथि 4 अप्रैल को 4 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगी
जानिए क्यों शीतला माता को लगाते हैं बासी भोजन का भोग
बासोड़ा का मतलब है कि आज से बासी भोजन बंद, गर्मियां शुरू होने के कारण बासी भोजन न खाने का संदेश देता है त्यौहार
इस बार शीतला अष्टमी 4 अप्रैल को है जो 5 अप्रैल को सुबह 2:29 तक रहेगी। अगर आप सर्वार्थ सिद्धि योग में मां शीतला की पूजा करना चाहते हैं तो आपको 5 अप्रैल को सुबह 2:00 बजे के बाद माता शीतला को प्रसाद चढ़ाना होगा। इस बार 4 से 5 अप्रैल के बीच मनाई जाने वाली अष्टमी को कई महत्वपूर्ण योग बन रहे हैं। जिनमें आप अपने मनचाहे कार्यों की शुरुआत कर सकते हैं। माता शीतला की पूजा के बाद घरों में बासी खाने का सेवन बंद करने का संदेश भी यह त्यौहार देता है। क्योंकि मौसम में गर्मी होने के कारण बासी खाना सेहत को नुकसान पहुंचाने लगता है। शीतला अष्टमी को ऋतु परिवर्तन का संकेत भी माना जाता है। क्योंकि इस दिन के बाद से ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु शुरू हो जाती है और गर्मियों में बासी भोजन नहीं खाया जाता है। यही इस त्यौहार का वैज्ञानिक कारण भी है। हिंदू संस्कृति के सभी त्योहारों का कोई ना कोई वैज्ञानिक कारण अवश्य होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, शीतला माता की पूजा हर साल चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की जाती है। इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन लोग माता शीतला को बासी खाने का भोग लगाते हैं। बाद में इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
शीतला अष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त-
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – 06:08 सुबह से 06:41 शाम तक।
अवधि – 12 घण्टे 33 मिनट।
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 04, 2021 को 04:12 सुबह बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अप्रैल 05, 2021 को 02:59 बजे शाम।
शीतला अष्टमी के दिन बन रहे ये शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- 5 अप्रैल सुबह 04:24 से 05:09 तक।
अभिजित मुहूर्त- सुबह11:47 से 12:37 शाम तक।
विजय मुहूर्त- सुबह 02:17 पी एम से 03:07 शाम तक।
गोधूलि मुहूर्त- 06:14 पी एम से 06:38 पी एम तक।
अमृत काल- रात 09:24 से 10:58 रात तक।
निशिता मुहूर्त- 11:48 रात से सुबह12:34 , अप्रैल 05 तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग- सुबह 02:06 अप्रैल 05 से 05:55 सुबह तक।
शीतला अष्टमी को क्यों लगता है बासी खाने का भोग
एक पौराणिक कथा के अनसुसार, एक दिन बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा। मान्यता के मुताबिक अष्टमी के दिन बासी चावल माता शीतला को चढ़ाए व खाए जाते हैं। लेकिन दोनों बहुओं ने सुबह ताजा खाना बना लिया। क्योंकि हाल ही में दोनों की संताने हुई थीं, इस वजह से दोनों को डर था कि बासी खाना उन्हें नुकसान ना पहुंचाए। सास को ताजे खाने के बारे में पता चला तो उसने नाराजगी जाहिर की। कुछ समय बाद पता चला कि दोनों बहुओं की संतानों की अचानक मृत्यु हो गई है। इस बात को जान सास ने दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया।
शवों को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गईं। बीच रास्ते वो विश्राम के लिए रूकीं। वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली। दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी। उन बहुओं को दोनों बहनों को ऐसे देख दया आई और वो दोनों के सिर को साफ करने लगीं। कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला। शीतला और ओरी ने बहुओं को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए।
ये बात सुन दोनों बुरी तरह रोने लगीं और उन्होंने महिला को अपने बच्चों के शव दिखाए। ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है। ये बात सुन वो समझ गईं कि शीतला अष्टमी के दिन ताजा खाना बनाने के कारण ऐसा हुआ है।
ये सब जान दोनों ने माता शीतला से माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने को कहा। इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया। इस दिन के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने लगा।
जानिए मां शीतला और उसके स्वरूप के बारे में
मां शीतला का उल्लेख सर्वप्रथम स्कन्दपुराण में मिलता है. इनका स्वरूप अत्यंत शीतल है और कष्ट-रोग हरने वाली हैं. गधा इनकी सवारी है और हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते हैं. मुख्य रूप से इनकी उपासना गर्मी के मौसम में की जाती है. इनकी उपासना का मुख्य पर्व “शीतला अष्टमी” है.
मां शीतला के हाथ में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते सफाई और समृद्धि का सूचक हैं. इनको शीतल और बासी खाद्य पदार्थ चढ़ाया जाता है, जिसे बसौड़ा भी कहते हैं. इन्हें चांदी का चौकोर टुकड़ा जिस पर इनकी छवि को उकेरा गया हो, अर्पित करते हैं. अधिकांश लोग इनकी उपासना बसंत औप ग्रीष्म में करते हैं. या जब रोगों के संक्रमण की संभावना सर्वाधिक होती हैं.
शीतलाष्टमी का वैज्ञानिक आधार क्या है?
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतलाष्टमी के रूप में मनाया जाता है. रोगों के संक्रमण से आम व्यक्ति को बचाने के लिए शीतला अष्टमी मनाई जाती है. इस दिन आखिरी बार आप बासी भोजन खा सकते हैं. इसके बाद से बासी भोजन का प्रयोग बिल्कुल बंद कर देना चाहिए. अगर इस दिन के बाद भी बासी भोजन किया जाए तो स्वास्थ्य की समस्याएं आ सकती हैं. यह पर्व गर्मी की शुरुआत में पड़ता है. गर्मी के मौसम में आपको साफ-सफाई, शीतल जल और एंटीबायटिक गुणों से युक्त नीम का विशेष प्रयोग करना चाहिए.
कैसे करें शीतला मां की उपासना
मां शीतला को एक चांदी का चौकोर टुकड़ा अर्पित करें. साथ में उन्हें खीर का भोग लगाएं. बच्चे के साथ माँ शीतला की पूजा करें. चांदी का चौकोर टुकड़ा लाल धागे में बच्चे के गले में धारण करवाएं.
ऋतु परिवर्तन के इस अवसर पर समस्त रोगों, महामारी को शमन करने वाली देवी भगवती शीतला के पावन पर्व शीतलाष्टमी की आप सभी देशवासियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।
दशा माता पूजन मुहूर्त- 06/04/2021 मंगलवार को दशा माता पूजन मुहूर्त है- प्रात: 9 से 1:30 बजे तक इस दिन आप पीपल का पूजन कर दशा माता व्रत की कथा सुन सकते हैं ।
रविशराय गौड़
ज्योतिर्विद