
नई दिल्ली । भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में राजधानी में चल रहे ब्लड बैंकों के प्रबंधन और उनमें ब्लड की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। 68 में से 32 ब्लड बैकों के पास वैध लाइसेंस नहीं हैं। इसके अलावा ज्यादातर ब्लड बैंकों में रक्तदान में मिले ब्लड में एचआइवी व हेपेटाइटिस बी व हेपेटाइटिस सी जैसी गंभीर बीमारियों के संक्रमण का पता लगाने के लिए एनएटी (न्यूक्लिक एसिड टेस्ट) जांच नहीं की जाती, इसलिए गुणवत्ता भी संदेह के घेरे में है।
सरकार ने वर्ष 2014-17 के बीच स्वैच्छिक रक्तदान 90 फीसद सुनिश्चित करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। जबकि वर्ष 2014-15 में स्वैच्छिक रक्तदान से 54.55 ब्लड एकत्रित किया गया था। वर्ष 2016-17 में स्वैच्छिक रक्तदान घटकर 45.20 फीसद रह गया। दिल्ली सरकार के लोकनायक अस्पताल में स्थिति ज्यादा खराब है।
इस अस्पताल में स्वैच्छिक रक्तदान की भागीदारी दो फीसद भी नहीं है। लोकनायक अस्पताल ने तर्क दिया है कि रक्तदान वाहन खराब होने के कारण रक्तदान शिविर का आयोजन नहीं किया जा सका। लाइसेंस के बगैर चलने वाले ब्लड बैंकों में 10 सरकारी व 16 निजी अस्पतालों के हैं। इसके अलावा तीन निजी ब्लड बैंकों व तीन स्वैच्छिक संगठनों के हैं।
इनमें से दो ब्लड बैंक चार वर्षों से, एक छह महीने से अधिक समय व शेष 27 ब्लड बैंक 25 दिन से छह महीने से लाइसेंस का नवीनीकरण कराए बगैर चल रहे थे। दो ब्लड बैंकों का लाइसेंस छह वर्ष के बाद व एक ब्लड बैंक का लाइसेंस 10 वर्ष बाद नवीनीकरण किया गया था। लाइसेंस नवीनीकरण में देरी का कारण ब्लड बैंक की कमियों को दूर करने के लिए दिए गए निर्देश का पालन नहीं करना है।
दिल्ली के ड्रग्स कंट्रोलर ने कैग को बताया कि ब्लड बैंकों ने लाइसेंस नवीनीकरण के लिए निर्धारित समय (17 जून 2017) तक आवेदन किया था, उनके आवेदन पर लाइसेंस के नवीनीकरण होने तक उन्हें कार्य करने की स्वीकृति दी गई थी।
संक्रमण का खतरा
ब्लड बैंक विभिन्न तरीकों से सिफिलिस, मलेरिया, एचआइवी, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी की जांच कर रहे हैं। केंद्र सरकार के नौ में से पांच व निजी अस्पतालों के 17 ब्लड बैंकों में ही इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। दिल्ली सरकार ने वर्ष 2009 में ब्लड बैंकों में यह सुविधा शुरू करने की योजना बनाई थी पर इसे लागू नहीं किया जा सका है। संक्रमण की जांच के लिए एलिसा-4 किट्स का इस्तेमाल जरूरी है, जबकि स्वामी दयानंद अस्पताल में एलिसा-3 किट्स का इस्तेमाल किया जा रहा है।
आयुष व होम्योपैथिक अस्पतालों में डॉक्टरों व कर्मचारियों की भारी कमी
दिल्ली सरकार के होम्योपैथिक व आयुष चिकित्सा पद्धति के मेडिकल कॉलेजों व डिस्पेंसरियों में डॉक्टरों व कर्मचारियों की भारी कमी है। तिबिया कॉलेज, डॉ. बीआर सुर होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज व चौ. ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेदिक चरक संस्थान में डॉक्टर, फार्मासिस्ट व नर्सिग कैडर के 37 से 52 फीसद पद रिक्त पड़े हैं। इसके अलावा आयुष की डिस्पेंसरियों में डॉक्टरों के 28 व फार्मासिस्टों के 61 पद खाली हैं। दिल्ली में होम्योपैथी की मौजूदा 103 डिस्पेंसरियों में से सिर्फ 24 डिस्पेंसरियों में ही मरीजों के समुचित देखभाल की सुविधा है। इन डिस्पेंसरियों में दवाओं की भारी कमी है।
सरकार की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्नः भाजपा
भाजपा का कहना है कि कैग की रिपोर्ट के बाद यह स्थापित हो गया है कि केजरीवाल सरकार की स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे मुद्दों पर उसके सभी दावे केवल हवा-हवाई हैं। आयुष एवं खाद्य सुरक्षा से जुड़े सरकार के काम में भ्रष्टाचार हो रहा है। दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा है कि यदि सरकार नगर निगमों को चौथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिशों अनुसार फंड उपलब्ध करा दे तो ऐसी स्थिति नहीं होगी। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने अपनी सरकार की विफलताओं पर चुप्पी साध ली और नगर निगमों पर अक्षमता के आरोप लगाने का प्रयास किया।