नेहरु को हरित क्रांति चाहए थी, तो उन्होंने किसानो को त्याग और बलिदान की वो कहानी पढ़ाई की बेचारे तमाशा बन कर रह गए I किसानो को अन्नदाता और टैक्स ना देने के बोझ से ही बेकार कर दिया गया I दरअसल कोई भी पंचवर्षीय योजना में काम इस बात पर नहीं हुआ की कृषि कैसे उधोग बने , बस हर बार कुछ खैरात बाँट कर उनको भिखारी बना दिया
Narendra Modi जब तक सत्ता में नहीं थे तब तक पूंजीवादी थे, बड़े बड़े दावे किये लेकिन सत्ता में आने के बाद नेहरु से बड़ी समाजवादी लाइन खीचने के चक्कर में आज कहा है कुछ पता नहीं चल रहा है I
हर घर मोदी से जुम्लेंद्रू बाहुबली तक के सफर में किसानो के लिए आज भी वही कर्ज माफ़ी की एक सौगात से इतर कुछ नहीं I
अरे जनाब किसानो को हर साल फसल बोने से पहले तय करने दीजिये वो रकम जिसके बाद वो तय करें की उन्होंने उसकी खेलती करनी है या नहीं जैसे एक उधोगपति करता है, फसल के बाद आप तय करते हो की ज्यदा है तो २ रूपए कुंतल और कम है तो १०० रूपए , आप रेट तय कीजिये किसानो को छुट दीजिये की वो अपना लागत का फायदा देख कर बोये ना बोये I
और हाँ लागत ज्यदा दिखने पर किसानो को त्यागी और बलिदानी बन्ने की सीख ना दें , दुनिया का कोई उधोग घाटे में नहीं होता , किसानो को भी उससे हटाईये
कर्ज माफ़ी की जगह उत्पादन लागत का ५०% पहले दीजिये वही सही है , कृषि को उधोग बनाइये मोदी जी नहीं तो बैंक आपको ऐसे ही किसानो को कर्ज ना देने की वकालत करते रहेगे
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