आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने एक बार फिर अपने बयान से लोकतंत्र के महापर्व का माहौल खराब करने की कोशिश की है। स्वस्थ राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता उन्हें शायद रास ही नहीं आती। उन्होंने खुलेआम कहा कि बहुत से हिंदु भी गौमांस खाते हैं। नासमझी की हद तो यह है कि लालू जी ने अपने उसी भाषण में यह भी माना कि गाय हमारी माता के समान है।सवाल यह नहीं है कि सचमुच कुछ हिंदु गौमांस खाते हैं या नहीं। सवाल धार्मिक आस्था का है। गाय हिंदुओं की धार्मिक आस्था का प्रतीक है। किसी भी धर्म के शत-प्रतिशत अनुयायी उस धर्म के विधि-विधानों का शत-प्रतिशत पालन करते हों ऐसा नहीं है।
हम जानते हैं कि शराब पीना कई धर्मों में निषिद्ध माना जाता है। यह भी जानते हैं कि उस धर्म को मानने वालों में से कई लोग शराब का सेवन करते हैं। निषिद्ध कार्यों को करने वाले हर धर्म में होते हैं। इनका हवाला देकर किसी भी संप्रदाय की आस्था पर खुला आघात करना कहां की समझदारी है। लालू जी को बिना विलंब अपना बयान वापस लेना चाहिए और हिंदुओं से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी चाहिए। निजी आस्था पर प्रहार लोकतंत्र की बुनियादी शर्तों के खिलाफ है। सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोगों को इस तरह की नासमझी से परहेज करना चाहिए।
आर के सिन्हा