कट्टर अलगाववादी मसर्रत आलम की रिहाई को लेकर मचा बवाल थम नहीं पा रहा है। इस बीच, रियासत सरकार द्वारा कुछ और राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की चर्चाओं के चलते संसद में भी केंद्र सरकार को विपक्ष को जवाब देते नहीं बन रहा।
कुछ अन्य राजनीतिक कैदियों को रिहा करने की अटकलों को खारिज करते हुए मंगलवार को राज्य के गृह सचिव सुरेश कुमार ने साफ किया कि और राजनीतिक कैदियों को रिहा नहीं किया जाएगा।
हालांकि, मसर्रत आलम की रिहाई के बाद ही पुलिस विभाग की ओर से स्पष्ट कर दिया गया था कि वर्तमान में मसर्रत आलम के सिवा जेलों में कोई भी राजनीतिक बंदी नहीं है।
मसर्रत आलम को रिहा किए जाने के संबंध में गृह सचिव सुरेश कुमार का कहना था कि प्रशासन और सरकार देश का कानून मानने के लिए बाध्य हैगृह सचिव ने कहा कि मसर्रत आलम 2010 से ही पीएसए के तहत जेल में बंद था। कहा कि किसी को भी कितनी देर तक पीएसए के तहत जेल में बंद रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक किसी को भी बार बार एक ही आरोप में जेल में बंद नहीं रखा जा सकता।
गृह सचिव का कहना था कि मसर्रत की रिह्राइ कानूनी प्रक्रिया के तहत हुई है और मीडिया ने इसको मुद्दा बना दिया है। वहीं, पाकिस्तानी कैदियों को जेलों से रिहा करने के संबंध में सुरेश कुमार का कहना था कि यह सामान्य प्रक्रिया के तहत किया जाता है।
उनकी सजा पूरी होने के बाद उन्हें पाकिस्तान को सौंप दिया जाता है। इसको आतंकियों को रिहा करने की तरह नहीं लिया जाना चाहिए, इसका उससे कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले तीन से चार पाकिस्तानियों को रिहा किया गया था।
कुछ बांग्लादेशियों को रिहा करने के दस्तावेज मिले हैं, उनको अप्रैल में रिहा किया जाएगा। जो भी पाकिस्तानी और बांग्लादेशी अपनी सजा पूरी कर लेते हैं, उनको एक तय प्रक्रिया के तहत बाघा सीमा अथवा अन्य तय स्थानों से उनके देश भेजा जाता है।