खेल

जब एक मजदूर का बेटा बना मैदान का ‘सुपरस्टार’

सोनाली मंडल, बैरकपुर। ‘मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है..पंखों से कुछ नहीं होता ऐ दोस्त, हौसलों से उड़ान होती है।’ ये लाइनें भारतीय फुटबॉल की एक नई प्रतिभा पर बिलकुल फिट बैठती हैं। इंडियन सुपर लीग (आइएसएल) के पहले संस्करण में एटलेटिको डी कोलकाता को अपने शानदार गोल से चैंपियन बनाने वाले मुहम्मद रफीक एक जूट मिल मजदूर का बेटा जरूर हैं लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत से अपने सपनों को उड़ान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस खिलाड़ी ने दिखाया कि प्रतिभा अमीरी-गरीबी के दायरे में बंधी नहीं होती।

रफीक के पिता अबुल कासिम कमरहट्टी जूट मिल में काम करते हैं। रफीक के अंतिम क्षणों में गोल से कोलकाता ने केरल ब्लास्टर्स एफसी को शिकस्त दी थी। शनिवार रात उसके पूरे परिवार ने टीवी पर फाइनल मैच देखा। रफीक के गोल के साथ ही पिता कासिम और मां रबिया बीबी की आंखों से आंसू की धारा फूट पड़ी। बेटे के उस गोल ने उन्हें आम से खास बना दिया। बेटे की सफलता पर उनके घर में मिठाइयां बांटी गईं।

कासिम ने बताया कि वह भी फुटबॉल खेलते थे, लेकिन गरीबी उनके पैरों की जंजीर बन गई। पारिवारिक दायित्व का निर्वाह करने के लिए वह फुटबॉल छोड़कर रोजगार में लग गए। एक वर्ष बाद वह जूट मिल से सेवानिवृत्त हो जाएंगे। उनके बेटे ने आइएसएल में जीत दिला कर उनके कलेजे को ठंडक पहुंचाई है। फुटबॉलर नहीं बन पाने की उनकी सारी कसक मिट गई। अबुल कासिम के दो बेटे और दो बेटियां हैं। बेटियों की शादी हो चुकी हैं। छोटा बेटा मुहम्मद शरीफ कालीघाट एमएस टीम के लिए खेलता है।

NCR Khabar News Desk

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