.. हेमामालिनी का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है .. उन्होंने कहा कि बंगाल और बिहार की विधवाएं अपने राज्यों के मंदिरों में आसरा लें, वृदांवन आकर भीड़ न बढ़ाएं ..
.. राष्ट्रवाद का दावा करने वाली पार्टी की एक ताकतवर सांसद की दृष्टि भी अपनी ठीक सामने की समस्या (शहर, मंदिरों और आश्रमों में अनियंत्रित भीड़ ) से आगे नहीं देख पाती .. सांसद महोदया क्या यह बताएंगी कि बिहार, बंगाल और दूसरे राज्यों से आने वाले चंदों, चढ़ावों और सस्ते मजदूरों के लाभों को लेने से भी क्या वह इनकार करेंगी ..
.. क्या वह अपने धार्मिक- सांस्कृतिक राष्ट्रवादी साथियों से अपील करेंगी कि वे राजनीति में नाहक रूचि लेना कम करें, और सामाजिक- सेवा जो धर्म का पारंपरिक रूप से एक प्रकार्य रहा है उसमें रूचि लें और सामाजिक रूप से परित्यक्त लोगों के आश्रय और पुनर्वास की संस्थाएं ज्यादा- से- ज्यादा विकसित करें .. लोगों की चंदाओं का कितना प्रतिशत ऐसी संस्थाओं के विकास में लगाया जा रहा, इसपर ध्यान लगाएं .. हम धर्म- परिवर्तन का रोना रोते हैं, पर हिंदू धर्म समाज- कार्य की खूब सारी विकेंद्रकीकृत संस्थाएं विकसित करने में क्यों असफल रहा है .. ‘शक्ति’ मंदिरों- मठों के अन्दरखाने की राजनीतियों से बाहर निकलकर समाज में ठोस काम करने वाली संस्थाओं के रूप में क्यों नहीं फैलती ..
.. सदियों से वृंदावन की ब्रांडिंग परित्यक्त विधवाओं के ठौर के रूप में हुई है .. हिंदू धर्म में एक- एक सामाजिक सेवा के लिए कोई- कोई केंद्र मशहूर हुए, पर वह केंद्र प्रतीकात्मक अधिक रहे, ठोस संस्थाएं कम विकसित हुईं और उन सेवाओं का विकेंद्रीकरण बहुत कम हुआ .. वृदांवन के पंडितों और एलीट ने सदियों की इस ब्रांडिंग का ऐतिहासिक रूप से खूब लाभ उठाया है .. इसलिए अब जब चुनौती सामने है तो वह भाग नहीं सकता . .. हिंदू धर्म स्वयं खूब सारे वृदांवन जैसे केंद्र विकसित करे, और इस एक वृंदावन के ख्ाूब सामर्थ्य विकसित करे ..
.. समाज के बड़े तबके में विधवा होना अभी भी एक सोशल स्टिग्मा है जहां सामाजिक तंत्र विधवाओं को उलीच कर बाहर कर देता है .. ड्रीम गर्ल सांसद महोदया ने वृदांवन में बढ़ती भीड़ में छुपे इस सत्य को पढ़ा होता और इस स्थिति के विरूद्ध अपनी संवेदना दिखातीं तो अधिक बड़ी बात होती ..
ड्रीम गर्ल सांसद महोदया विधवाओ के मामले मैं अपनी संवेदना दिखातीं तो अधिक बड़ी बात होती ..