दिल्ली में एक एनजीओ के निदेशक रहे खुर्शीद अनवर की कथित आत्महत्या का मामला हाईप्रोफाइल बनता जा रहा है और उसके रहस्य गहराते जा रहे हैं. एक इमोशनल आत्महत्या के मामले रूप में बहुप्रचारित इस केस की गुत्थियां हत्या की ओर भी इशारा कर रही हैं…
खुर्शीद अनवर ने 18 दिसम्बर की सुबह आत्महत्या की, लेकिन वह 17 दिसंबर की रात अपने बसंत कुंज स्थित घर ( सेक्टर बी – 9) पर नहीं थे. 17 की रात वह दिल्ली के द्वारका इलाके में अपने किसी अज़हर नाम के दोस्त के यहाँ रुके थे.
वहीँ उन्होंने टीवी चैनल पर खुद के बलात्कारी होने के आरोपों वाली खबर देखी, जिसके बाद वह परेशान और हताश हुए, लेकिन वह रात में अज़हर के यहाँ ही रुके. इस मामले की जाँच कर रहे वसंत कुंज थाने के अधिकारी ने एक अंग्रेजी अखबार से आगे कहा कि सुबह घर मालिक यानी अजहर को बिना बताये उनके घर से खुर्शीद निकल गए. जाते वक्त खुर्शीद अपनी दो मोबाइल, फ़्लैट की चाबी अजहर के यहाँ ही छोड़ गए. द्वारका से वसंत कुंज वह अपनी कार से नहीं गए, क्योंकि कार ड्राईवर के पास थी. किसी को नहीं मालूम कि खुर्शीद अपने घर कैसे पहुंचे. वहाँ जब उन्होंने आत्महत्या कर ली तो पास में पेंट कर रहे कारीगर ने उनकी लाश जमीन पर पड़ी देखी. सवाल है कि जाँच अधिकारी का बयान क्या किसी मर्डर मिस्ट्री की ओर नहीं ले जाता और सनसनाते हुए कुछ सवाल नहीं छोड़ जाता.
आखिर मातम मना रहे रहनुमाओं ने अबतक इन सवालों पर गौर ही नहीं किया है. सम्भव है यह मर्डर मिस्ट्री बाद में सिर्फ सनसनी ही साबित हो, लेकिन इस वारदात से उठ रहे स्वाभाविक सवालों को अबतक क्यों दरकिनार किया गया ? क्यों इस कथित आत्महत्या का सारा स्वरुप सहानुभूति हासिल करने का रहा? क्यों एक मौत को पुलिसिया जाँच पर केंद्रित किये जाने की बजाय फेसबुकिया पंचायती में नचाया जाता रहा. नाचने वालों में कोई लालबुझक्कड़ नहीं थे, बल्कि इनमें ज्यादातर वो हैं, जो दूसरों को दिया दिखाने का दावा करते हैं. अब खुर्शीद अनवर इस दुनिया में नहीं हैं, इसलिए उनकी गवाहियां नहीं हो सकतीं. अब सिर्फ साक्ष्य और घटनाक्रम ही तय करेंगे कि उन्होंने आत्महत्या की या उनके नाम पर आंसू बिसार रहे लोगों का भी उनकी हत्या में कोई रोल है. क्योंकि लोभ-लालच, पद-पदवी आदि के चक्कर में न तो हत्याओं का चलन नया है, न ही आंसू बिसराने की परम्परा नयी है और न ही इमोशनल दंगाइयों की भीड़ नयी है, न ही मामले को दूसरी और मोड़ देने की तरकीब नयी है और न ही नयी है किसी के बहाने किसी को साध लेने की चाल.
ऐसे में पुलिस और उनके दोस्तों को खोजने होंगे कुछ सवालों के जवाब,
1.वह कितने बजे सुबह निकले, उन्हें निकलते हुए किसने देखा.
2. निकलने से पहले अगर घर मालिक को बताया नहीं तो कैसे पता चला कि कब गए.
3. वह रात में नहीं निकलें हों, यह कैसे माना जाये.
4. मोबाइल-चाबी बिना वह गए, क्या पर्स साथ ले गए.
5. अगर नहीं ले गए तो किराये का इंतज़ाम कैसे किया.
6. हताशा की हालत में क्या वह पैदल वसंत कुंज गए.
7 . द्वारका से बसंत कुंज की दुरी, पैदल जाने में लगने वाला समय और कथित आत्महत्या का समय
8. ऑटो से लगने वाला समय और कथित आत्महत्या का समय
9. वह कूदे कहाँ से. छत से कूदे तो क्या सीढ़ी में ताला नहीं लगता. अपनी बालकनी से कूदे तो क्या उसका रास्ता फ़्लैट से होकर नहीं जाता.
10. वह आत्महत्या के लिए अपने घर से कूदने का रास्ता ही क्यों चुने? खुद को बेइज्जत महसूस कर रहा, आत्महत्या को अंतिम रास्ता मान रहा इंसान मरने के लिए छत या बालकनी क्यों पसंद करेगा. उसके लिए सुबह-सुबह ट्रक से मरना भी वही है जो छत से कूदना और सुबह ट्रक पहले मिले होंगे.
साभार:जनज्वार