अमरोहा- कहीं मुजफ्फरनगर कांड का मातम है तो कहीं सियासत की आग। ऐसे में रामलीला का नाम भी पुलिस के कान खड़े कर देता है, लेकिन इन्हीं अफवाहों और हवाओं के बीच कहीं इसी रामलीला से सद्भाव की शीतल बयार भी बहती है। यह नौगावां सादात की रामलीला है। यहां के मुसलमान 35 साल से रामलीला का मंचन कर इबारत पर इबारत गढ़ रहे हैं। चंदा देने से लेकर विजयादशमी तक कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं। रामलीला प्रबंध कमेटी भी मुस्लिम ही चला रहे हैं।
पिछले दिनों अमरोहा के कैलसा में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद शांति व भाईचारे की कामना के लिए मुस्लिमों ने रामायण पाठ व हवन यज्ञ में नफरत की आहूति देकर सांप्रदायिक सौहार्द कायम करने की मिसाल पेश की थी। दरअसल, यह मुहब्बत अमरोहा की मिट्टी में इस कदर घुली हुई है कि कोई जलजला भी शायद इसे अलग न कर पाए। ठीक इसी तर्ज पर नौगावां सादात में भी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बीते 35 साल से चली आ रही है।
श्री धार्मिक रामलीला कमेटी का गठन 35 साल पहले हुआ तो अहसान अख्तर को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था। 30 वर्ष तक उन्होंने रामलीला के आयोजन में भागीदारी निभाई। फिर पांच साल पहले उनके भतीजे गुलाम अब्बास को अध्यक्ष बनाया गया। अब कमेटी के प्रबंधक नजफ अली हैं, जबकि सदस्य के रूप में शाह रजा शाही, आरिफ अली, अब्बास अली व मीसम अब्बास भी शामिल हैं। इसके अलावा कस्बे के अन्य मुस्लिम भाई रामलीला के आयोजन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।
श्री रामलीला के संचालक धनीराम जाटव बताते हैं कि चंदा की शुरुआत भी मुस्लिम भाई करते हैं और रामलीला का उद्घाटन भी मुस्लिम भाइयों द्वारा कराया जाता है। कलाकार लाने से लेकर सभी प्रकार के प्रबंध मुस्लिमों के हाथ में ही रहते हैं।
श्री धार्मिक रामलीला कमेटी के अध्यक्ष गुलाम अब्बास कहते हैं कि इससे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में समाज में अच्छा संदेश जाता है। इससे हम फिरकापरस्त ताकतों को इंसानियत और भाईचारे का अहसास कराते हैं। जाति-धर्म की दीवारों में बांटने वालों को हम कहीं टिकने नहीं देते, क्योंकि विजय दशमी में सिर्फ राम की ही नहीं, इंसानियत की भी जीत होती है। बोले, रामलीला का आयोजन आगे भी इसी तरह कराया जाता रहेगा। अब चार अक्तूबर से रामलीला का मंचन शुरू किया जाएगा, इसकी तैयारियां लगभग पूरी कर ली गई हैं।