राजेश बैरागी । चुप रहने में क्या जाता है। शोक प्रकट करने के लिए मौन रहना सबसे अच्छा उपाय है। इसमें तेरा मेरा क्या है। स्त्री की इज्जत मणिपुर में लुटे अथवा राजस्थान में, इंडिया भारत भाजपा कांग्रेस राष्ट्रवाद हिंदू मुस्लिम सभी को शर्म आनी चाहिए। परंतु राजनीति इस शर्म से परे होती है। राजनीति में अपने पराये की शर्म भी नहीं होती।बस मैं और मेरे स्वार्थ से आगे राजनीति की आंखों को कुछ नहीं सूझता।
यदि है तो भी और नहीं है तो भी, सरकार का दायित्व वहशी नागरिकों से आम नागरिकों की रक्षा का ही है। इसमें राजनीति की कहां गुंजाइश है। परंतु भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को आज एक महिला की अस्मत के लिए द्रवित होते, आक्रोशित होते और टसुए बहाते देखना बहुत दिलचस्प है। हो सकता है उन्हें महिला अस्मिता का अहसास अब हुआ हो। मणिपुर में महिला निर्वस्त्रिकरण के समय उन्हें यह बोध न रहा हो।
इसी प्रकार मणिपुर की घटना के समय आपे से बाहर आयी कांग्रेस को आज यह सब सामान्य लग रहा है तो कैसा अचंभा? राजस्थान के मुख्यमंत्री ने यह कहकर मणिपुर और राजस्थान की महिलाओं की अस्मिता के बीच स्पष्ट विभाजक रेखा खींच दी है कि इस घटना की तुलना उस घटना से न करें।
बात सही भी है। विद्वान लोग देश काल परिस्थिति को घटनाओं के लिए जिम्मेदार मानते आए हैं। तो तैयार रहें। तथाकथित सभ्य समाज की पशुता कहीं नहीं गई है।वह पीढ़ी दर पीढ़ी अक्षुण्ण चली आ रही है। महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने से इस पशुता का अहं संतुष्ट होता है। स्वार्थी राजनीति की पशुता ऐसे मौकों पर कुलांचे भरने लगती है।