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बैरागी की नेकदृष्टि : कथा तो बहाना है, उद्देश्य दर्शन पाना है


राजेश बैरागी । यदि कल के दिव्य दरबार में शामिल लोगों की संख्या से तुलना करें तो आज भीड़ थी ही नहीं। लाखों लोगों के बैठने के लिए बनाए गए तीनों पंडालों में आधी आधी जगह भी भरी नहीं।कल किंकर्तव्यविमूढ़ की भूमिका में रही पुलिस को आज फुर्सत ही फुर्सत रही। पंडाल और उसके बाहर और सड़क तक मेले जैसा दृश्य था।जितने लोग आ रहे थे,उतने ही जा भी रहे थे।

वास्तविकता यह है कि बहुत कम या गिनती के लोग ही कथा सुनने आते हैं। बाबा बागेश्वर को भी यह बात पता है। इसलिए शाम चार बजे प्रारंभ होने वाली कथा आज चौथे दिन भी पौने सात बजे प्रारंभ हुई।तब तक क्या हुआ होगा?

दर्शन मात्र से कृत्य कृत्य होने वाले भक्तगण बाबा की प्रतीक्षा में पंडाल में जमे बैठे रहे। जैसे ही बाबा का आगमन हुआ, आरती हुई, आयोजकों और आज के विशेष आमंत्रित अतिथियों के नाम दर्शन हुए कि भक्तों ने अपने घर की राह ली। मैंने अनुभव किया कि भक्तों का आगमन दो हिस्सों में होता है। कथा प्रारंभ होने के निर्धारित समय पर आने वाले भक्त बाबा के दर्शन पश्चात पलायन करने लगते हैं। दूसरे हिस्से में घरेलू कामकाज और नौकरी पेशा निपटाकर आने वाले भक्त हैं।

कथा प्रारंभ हुई। बाबा बागेश्वर धाम फेम पं धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहना शुरू किया,-भगवान के प्रति समर्पण, श्रद्धा, विश्वास रखने वाले भक्त ही उन्हें पा सकते हैं।’ मैंने पंडाल में पानी की बोतल बेच रहे एक युवक, सेक्टर से आई तीन महिलाओं और गांव नियाना सलेमपुर से अपनी मां को लेकर आए परंतु पंडाल से बाहर बैठे एक युवक से पूछा,-बाबा कौन सी कथा सुना रहे हैं? मेरे प्रश्न पर ये सभी लोग चौंक गए।

बाबा अपनी धुन में कभी रामचरितमानस से किसी प्रसंग को उठा रहे थे और कभी कृष्ण काल में पहुंच जाते थे। धर्म कथाओं का कोई ओर-छोर नहीं होता। अच्छा व्यास कथा का कोई सूत्र पकड़ कर मानव जीवन के उद्धार की कथा कहने लगता है।बाबा की और कोई बात स्मरण रहे न रहे परंतु उनके द्वारा बीच बीच में ‘ठठरी’ और ‘नककटा’ कहना सबको याद हो जाता है।

हालांकि उनका साथ दे रही साधुनुमा लोगों और साजिंदों की टोली समा बांध रही थी। मैं वापस लौटते हुए सोच रहा था कि और कुछ न सही, इस दौड़ते भागते किंतु नीरस शहर में बाबा के आगमन से कुछ दिनों की रौनक तो हो ही गई है।

NCRKhabar Mobile Desk

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