राजेश बैरागी । यह संभवतः 2003 की बात है। नोएडा प्राधिकरण के उद्यान विभाग में बगैर काम किए एक फर्जी फर्म को नब्बे लाख रुपए का बिल भुगतान कर दिया गया था। मामला उजागर होने पर उद्यान विभाग के वरिष्ठ लेखाधिकारी को बिना जांच लंबे समय तक निलंबित रखा गया जबकि खेल प्राधिकरण के केंद्रीय लेखा विभाग में तैनात दो लेखाधिकारियों ने किया था। भुगतान चेक के माध्यम से हुआ था।भुगतान पाने वाले को आजतक पकड़ा नहीं जा सका।उन दो लेखाधिकारियों की प्राधिकरण में जमा भविष्य निधि आदि जब्त कर खाना पूर्ति की गई।
बीते जून माह के अन्तिम दिनों में प्राधिकरण के खाते से लगभग चार करोड़ रुपए निकल जाना ऐसे ही गबन की श्रृंखला का ताजा उदाहरण हो सकता है। संबंधित बैंक ने आधा पैसा लौटा दिया है। पुलिस की विशेष टीमें जांच कर रही हैं। एक आरोपी अब्दुल खादर को गिरफ्तार भी किया गया है। इस मामले में जालसाजों के साथ बैंक कर्मियों की सांठगांठ से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है परंतु प्राधिकरण के केंद्रीय लेखा विभाग से सटीक जानकारी मिले बिना ऐसा होना संभव नहीं है।इसके बाद?
प्राधिकरण में जिस प्रकार की अफरातफरी, भ्रष्टाचार और लापरवाही है, उसमें निचले स्तर पर कुछ भी होना असम्भव नहीं है।कुछ कोनों से प्राधिकरण के लेखा विभाग का अंकेक्षण कराने की मांग की गई है। हालांकि यह कोई समाधान नहीं है।लालच की कोई सीमा नहीं होती और समुद्र में से एक दो लोटा पानी निकाल लेने में किसी की नैतिकता भी आड़े नहीं आती।