राजेश बैरागी । नोएडा प्राधिकरण पर पिछले चार दिनों से किसानों के चल रहे धरने में आज एक वक्ता दहाड़ रहा था,-आज के वर्तमान समय में और इमरजेंसी में क्या अंतर है। वक्ता थोड़ा और जोश में आकर कहने लगा,-आज और अंग्रेजी हुकूमत में भी क्या अंतर है। दरअसल वह प्राधिकरण द्वारा किसानों की उचित मांगों को पूरा न करने और धरना प्रदर्शन करने पर पुलिस कार्रवाई को लेकर आज से आपातकाल और अंग्रेजी हुकूमत के दौर की तुलना कर रहा था। वहां आठ महिलाएं भी धरने पर बैठी थीं।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर गत 25 अप्रैल से चल रहे किसानों के धरने में महिलाओं की संख्या पुरुषों के लगभग बराबर रहती है। वहां महिलाएं प्रतिदिन के हिसाब से धरने की अध्यक्षता करती हैं, धरने को संबोधित करती हैं और धरना स्थल पर रात्रि में भी डटी रहती हैं। नोएडा प्राधिकरण पर मांगें पूरी न होने पर डेढ़ वर्ष के बाद पुनः धरना शुरू किया गया है। दोनों धरना आयोजनों की खास उपलब्धि क्या है?
इन धरनों का परिणाम क्या निकलेगा यह प्राधिकरणों के अधिकारी और भगवान के अतिरिक्त कोई नहीं जानता। किसान केवल आंदोलन कर रहे हैं। उनकी स्थिरता और दृढ़ता के बावजूद प्राधिकरण और पुलिस उन्हें खाली हाथ लौट जाने को विवश कर सकते हैं। परिणाम का ज्योतिष जानने से महत्वपूर्ण है इन आंदोलनों में महिलाओं की नियमित उपस्थिति। महिलाएं प्राणपण से धरनों पर डटी हुई हैं। ये वो महिलाएं हैं जिन्हें चूल्हा चक्की से अलग कभी महत्व नहीं मिला।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर गत छः जून को पुलिस कार्रवाई के बावजूद यदि वहां धरना जारी है तो उसके पीछे महिलाओं की शक्ति ही है। क्या वे केवल पुरुष आंदोलनकारियों के लिए ढाल के तौर पर बैठी हैं। यह बात सच है परंतु बात केवल इतनी ही नहीं है।
रविवार को धरने पर बैठी धरने के आयोजक और इस समय धरना देने के अपराध में जेल में बंद रूपेश वर्मा की मां तिलक देवी ने कहा,-हमारे विधायक को प्राधिकरण के नौकर की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए था। उन्हें हमारा साथ देना चाहिए था और समाधान निकालना था।’ क्या ये धरने हमारे गांव देहात में महिला सशक्तिकरण के नये संस्करण तैयार कर रहे हैं? मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है।