बैरागी की नेकदृष्टि: ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर धरना उखाड़ने के प्रकरण में पुलिस कार्रवाई और एफआईआर की टाइमिंग पर सवाल
राजेश बैरागी l प्रथम सूचना रिपोर्ट की टाइमिंग को लेकर मैं बहुत हैरान नहीं हूं। मैंने कल की पोस्ट में लिखा था कि जिलाधिकारी के साथ दो दिन पहले वार्ता विफल होने के बाद ही संभवतः ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर चल रहे किसानों के धरने को उखाड़ने का निर्णय पुलिस प्रशासन और प्राधिकरण द्वारा ले लिया गया था।दो दिन में केवल तैयारी की गई।
मंगलवार को जब हम (मैं और दो साथी पत्रकार) ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर पहुंचे तो वहां दो काम साथ साथ चल रहे थे। कुछ नेता हजारों की संख्या में धरने पर मौजूद किसान पुरुष और महिलाओं को बारी बारी संबोधित कर रहे थे और चावल छोले का खाना वितरित किया जा रहा था। विभिन्न विपक्षी राजनीतिक दलों के नेताओं का भाषण धरनारत किसानों में जोश और उन्माद का संचार कर रहा था। प्राधिकरण को ठप्प कर देने, प्राधिकरण की ईंट से ईंट बजा देने और आगामी एक सप्ताह में आर पार का फैसला कर देने की घोषणाएं की जा रही थीं। कुछ युवा नेता अपनी जुबान पर नियंत्रण रख पाने में विफल रहे और उन्होंने सभ्यता की सीमा भी लांघी। संभवतः 43 दिन से चल रहे इस धरने में पहली बार रितु माहेश्वरी मुर्दाबाद के नारे भी लगाए गए। हालांकि लोकतंत्र में जिम्मेदार पदाधिकारी के विरुद्ध इस प्रकार के नारे लगाया जाना कोई विशेष बात नहीं है परंतु फिर भी महिला के सम्मान का ध्यान रखना चाहिए। मैंने देखा कि धरना स्थल पर ड्यूटी कर रही पुलिस फोर्स का व्यवहार अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक विनम्र था। मुझे खटका हुआ कि कहीं यह तूफान से पहले की शांति तो नहीं है। इस विचार को वहीं नकारकर हम वहां से चले आए। कहानी यहां समाप्त नहीं हुई है। कहानी में यहां से ट्विस्ट आता है।शाम 5 बजे पुलिस धरना उखाड़ देती है और लगभग तीन दर्जन किसानों को हिरासत में लेकर पुलिस लाइन चली जाती है।देर रात भारी विरोध के बावजूद 33 किसानों को जेल भेज दिया गया। इससे क्या हासिल हुआ? क्या धरना समाप्त हो गया? आज और संगठित होकर किसान प्राधिकरण पहुंचे। रात्रि में महिलाएं धरने पर डटी हैं। प्रश्न यह है कि क्या किसानों की मांगें अनुचित हैं? मैं समझता हूं कि दो दिन पहले जिलाधिकारी के साथ वार्ता विफल रहने पर किसानों के धरने को बलपूर्वक उखाड़ने की योजना बना ली गई होगी। इससे किसानों की उचित मांगों का समाधान नहीं हुआ। इससे प्रशासन की नासमझी और सरकार की किरकिरी ही हुई है।
कल की पोस्ट
धरने के 43 वें दिन किसानों ने प्राधिकरण पर ‘घेरा डालो डेरा डालो’ का कॉल दिया था। इसके लिए प्राधिकरण क्षेत्र के पचासों गांवों के स्त्री पुरुष धरना स्थल पर इकट्ठा हुए। प्राधिकरण के गेट संख्या एक पर भी स्त्री पुरुष धरना देकर बैठ गये थे। शक्ति प्रदर्शन और भाषण बाजी के बाद शाम चार बजे उस दिन के विशेष धरने को समाप्त कर दिया गया था।इस सब के एक घंटे बाद पुलिस ने 35 किसान नेताओं को हिरासत में लेकर 43 दिनों से चल रहे धरने को उखाड़ दिया।

इस संबंध में प्राधिकरण के सर्वे अमीन देवेन्द्र प्रताप सिंह की अगुवाई में तीन सर्वे अमीनों ने थाना सूरजपुर में रिपोर्ट दर्ज कराई। यहां ध्यान देने योग्य यह है कि यह रिपोर्ट रात्रि 23 बजकर 49 मिनट पर दर्ज कराई गई है। जबकि पुलिस किसान नेताओं को शाम 5 बजे ही हिरासत में ले चुकी थी। रिपोर्ट में सर्वे अमीनों द्वारा गत 25 अप्रैल से चल रहे धरने का ब्यौरा देते हुए उस दिन के समूचे घटनाक्रम का वर्णन किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आज 6 जून 2023 को किसानों ने गेट संख्या एक को भी घेरे रखा और अंदर घुसने का प्रयास किया जिससे प्राधिकरण में भय का माहौल बना रहा तथा कामकाज पूरी तरह ठप्प हो गया। हालांकि इस रिपोर्ट में शाम 5 बजे हुई पुलिस कार्रवाई का ब्यौरा नहीं दिया गया है।इस रिपोर्ट में दो बातें अति महत्वपूर्ण हैं। एक तो सर्वे अमीनों ने धरना में नेताओं के भाषणों में आगामी मंगलवार को आर-पार की लड़ाई की घोषणा के मद्देनजर किसी अप्रिय घटना से भय का संदेह जताया है। दूसरी और अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि रिपोर्ट में किसान नेताओं पर मजदूरों आदि को किसान बनाकर धरना स्थल पर रोजाना भीड़ इकट्ठा करने का आरोप लगाया गया है। इस रिपोर्ट को पढ़कर और इसे दर्ज कराने के समय को लेकर स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस प्रशासन और प्राधिकरण द्वारा पूरी तैयारी करने के बाद धरना उखाड़ दिया गया और 33 किसान नेताओं को विभिन्न धाराओं के तहत जेल भेज दिया गया। इनमें से एक धारा आपराधिक कानून(संशोधन) अधिनियम 1932 की धारा 7 का एक अर्थ यह भी है ‘कानून सबके लिए समान है’। क्या इस मामले में ऐसा ही हुआ है?