राजेश बैरागी l प्रथम सूचना रिपोर्ट की टाइमिंग को लेकर मैं बहुत हैरान नहीं हूं। मैंने कल की पोस्ट में लिखा था कि जिलाधिकारी के साथ दो दिन पहले वार्ता विफल होने के बाद ही संभवतः ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर चल रहे किसानों के धरने को उखाड़ने का निर्णय पुलिस प्रशासन और प्राधिकरण द्वारा ले लिया गया था।दो दिन में केवल तैयारी की गई।
धरने के 43 वें दिन किसानों ने प्राधिकरण पर ‘घेरा डालो डेरा डालो’ का कॉल दिया था। इसके लिए प्राधिकरण क्षेत्र के पचासों गांवों के स्त्री पुरुष धरना स्थल पर इकट्ठा हुए। प्राधिकरण के गेट संख्या एक पर भी स्त्री पुरुष धरना देकर बैठ गये थे। शक्ति प्रदर्शन और भाषण बाजी के बाद शाम चार बजे उस दिन के विशेष धरने को समाप्त कर दिया गया था।इस सब के एक घंटे बाद पुलिस ने 35 किसान नेताओं को हिरासत में लेकर 43 दिनों से चल रहे धरने को उखाड़ दिया।
इस संबंध में प्राधिकरण के सर्वे अमीन देवेन्द्र प्रताप सिंह की अगुवाई में तीन सर्वे अमीनों ने थाना सूरजपुर में रिपोर्ट दर्ज कराई। यहां ध्यान देने योग्य यह है कि यह रिपोर्ट रात्रि 23 बजकर 49 मिनट पर दर्ज कराई गई है। जबकि पुलिस किसान नेताओं को शाम 5 बजे ही हिरासत में ले चुकी थी। रिपोर्ट में सर्वे अमीनों द्वारा गत 25 अप्रैल से चल रहे धरने का ब्यौरा देते हुए उस दिन के समूचे घटनाक्रम का वर्णन किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आज 6 जून 2023 को किसानों ने गेट संख्या एक को भी घेरे रखा और अंदर घुसने का प्रयास किया जिससे प्राधिकरण में भय का माहौल बना रहा तथा कामकाज पूरी तरह ठप्प हो गया। हालांकि इस रिपोर्ट में शाम 5 बजे हुई पुलिस कार्रवाई का ब्यौरा नहीं दिया गया है।इस रिपोर्ट में दो बातें अति महत्वपूर्ण हैं। एक तो सर्वे अमीनों ने धरना में नेताओं के भाषणों में आगामी मंगलवार को आर-पार की लड़ाई की घोषणा के मद्देनजर किसी अप्रिय घटना से भय का संदेह जताया है। दूसरी और अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि रिपोर्ट में किसान नेताओं पर मजदूरों आदि को किसान बनाकर धरना स्थल पर रोजाना भीड़ इकट्ठा करने का आरोप लगाया गया है। इस रिपोर्ट को पढ़कर और इसे दर्ज कराने के समय को लेकर स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस प्रशासन और प्राधिकरण द्वारा पूरी तैयारी करने के बाद धरना उखाड़ दिया गया और 33 किसान नेताओं को विभिन्न धाराओं के तहत जेल भेज दिया गया। इनमें से एक धारा आपराधिक कानून(संशोधन) अधिनियम 1932 की धारा 7 का एक अर्थ यह भी है ‘कानून सबके लिए समान है’। क्या इस मामले में ऐसा ही हुआ है?