12 जून वो तारीख है, जिसने भारतीय राजनीति की दिशा ही काफी हद तक बदल दीl एक बड़ी ख़बर सामने आने वाली थी और शेषन बेचैनी से उसका इंतज़ार कर रहे थे। यह वही दिन था, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा एक याचिका पर अपना फैसला सुनाने वाले थे।1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति श्री जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाते हुए उन्हें चुनावों में धांधली का दोषी पाया और उनका चुनाव रद्द कर दियाl
इस फैसले से पहले कई तरह से जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा को ‘मनाने’ की कोशिश की गई. इन बातों का जिक्र कुलदीप नैयर की किताब ‘ इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी’ में है. कुलदीप नैयर अपनी किताब में लिखते हैं-
”श्रीमती इंदिरा गांधी के गृह राज्य उत्तर प्रदेश से एक सांसद इलाहाबाद गए. उन्होंने अनायास ही सिन्हा से पूछ लिया था कि क्या वे पांच लाख रुपये में मान जाएंगे. सिन्हा ने कोई जवाब नहीं दिया. बाद में उस बेंच में उनके एक साथी ने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि ‘इस फैसले के बाद’ सिन्हा को सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया जाएगा.”
जगमोहन लाल सिन्हा को ‘मनाने’ की कोशिश यहीं नहीं रुकी
‘गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव प्रेम प्रकाश नैयर ने देहरादून में उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से मुलाकात की थी और उनसे कहा था कि संभव हो तो इस फैसले को टाल दें. चीफ जस्टिस ने अनुरोध को सिन्हा तक पहुंचा दिया.सिन्हा इस बात से इतने नाराज हुए कि उन्होंने कोर्ट के रजिस्ट्रार को फोन घुमाया और कहा कि वो घोषित कर दे कि फैसला 12 जून को सुनाया जाएगा.’